विकट संकष्टी चतुर्थी 2024 : भगवान श्री गणेश की पूजा, श्री गणेश कवच, आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
ज्योतिष : सनातन धर्म में कई सारे व्रत त्योहार पड़ते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन विकट संकष्टी चतुर्थी को बेहद ही खास माना गया है जो कि हर माह में एक बार आती है यह तिथि श्री गणेश की पूजा आराधना के लिए उत्तम मानी जाती है इस दिन भक्त उपवास रखकर भगवान गणेश की विधिवत पूजा करते हैं कहा जाता है कि चतुर्थी तिथि पर शिव पुत्र गणेश की पूजा करने से भक्तों को उत्तम फलों की प्राप्ति होती है और सारे कष्ट भी दूर हो जाते हैं, इस बार विकट संकष्टी चतुर्थी का व्रत 27 अप्रैल दिन शनिवार यानी आज किया जा रहा है ऐसे में आज अगर भगवान श्री गणेश की पूजा आराधना के अलावा श्री गणेश कवच का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो भगवान प्रसन्न हो जाते हैं आशीर्वाद प्रदान करते हैं तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
श्री गणेश कवच
धर्मार्थकाममोक्षेषुविनियोग: प्रकीर्तित:।
सर्वेषांकवचानांच सारभूतमिदं मुने।।
ॐ गंहुंश्रीगणेशाय स्वाहा मेपातुमस्तकम्।
द्वात्रिंशदक्षरो मन्त्रो ललाटं मेसदावतु।।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं गमिति च संततंपातुलोचनम्।
तालुकं पातुविध्नेशःसंततंधरणीतले।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्लीमिति च संततंपातुनासिकाम्।
ॐ गौं गंशूर्पकर्णाय स्वाहा पात्वधरंमम।।
दन्तानि तालुकांजिह्वांपातुमेषोडशाक्षर:।।
ॐ लंश्रीं लम्बोदरायेति स्वाहा गण्डं सदावतु।
ॐ क्लीं ह्रीं विघन्नाशाय स्वाहा कर्णसदावतु।।
ॐ श्रीं गंगजाननायेति स्वाहा स्कन्धंसदावतु।
ॐ ह्रीं विनायकायेति स्वाहा पृष्ठं सदावतु।।
ॐ क्लीं ह्रीमिति कङ्कालंपातुवक्ष:स्थलंच गम्।
करौ पादौ सदा पातुसर्वाङ्गंविघन्निघन्कृत्।।
प्राच्यांलम्बोदर: पातुआगन्य्यांविघन्नायक:।
दक्षिणेपातुविध्नेशो नैर्ऋत्यांतुगजानन:।।
पश्चिमेपार्वतीपुत्रो वायव्यांशंकरात्मज:।
कृष्णस्यांशश्चोत्तरेच परिपूर्णतमस्य च।।
ऐशान्यामेकदन्तश्च हेरम्ब: पातुचोर्ध्वत:।
अधो गणाधिप: पातुसर्वपूज्यश्च सर्वत:।।
स्वप्नेजागरणेचैव पातुमांयोगिनांगुरु:।।
इति तेकथितंवत्स सर्वमन्त्रौघविग्रहम्।
संसारमोहनंनाम कवचंपरमाद्भुतद्भुम्।।
श्रीकृष्णेन पुरा दत्तंगोलोके रासमण्डले।
वृन्दावनेविनीताय मह्यंदिनकरात्मज:।।
मया दत्तंच तुभ्यंच यस्मैकस्मैन दास्यसि।
परंवरंसर्वपूज्यंसर्वसङ्कटतारणम्।।
गुरुमभ्यर्च्य विधिवत्कवचंधारयेत्तुय:।
कण्ठे वा दक्षिणेबाहौ सोऽपि विष्णुर्नसंशय:।।
अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
ग्रहेन्द्रकवचस्यास्य कलांनार्हन्ति षोडशीम्।।
इदं कवचमज्ञात्वा यो भजेच्छंकरात्मजम्।
शतलक्षप्रजप्तोऽपि न मन्त्र: सिद्धिदायक:।।