CISF अफसर नहीं भूलते यह ‘मूल मंत्र’, तो थप्पड़ खाने से बच जातीं कंगना रनौत…
क्या चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर अभिनेत्री और नवनिर्वाचित भाजपा सांसद कंगना रनौत को थप्पड़ मारने की घटना के लिए सिर्फ सीआईएसएफ की लेडी कांस्टेबल कुलविंदर कौर ही जिम्मेदार है? या फिर, वह आला अधिकारी भी इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं, जो अपनी प्राथमिकताओं के सामने सीआईएसएफ का मूल मंत्र ही भूल गए, जिसका नतीजा चंडीगढ़ एयरपोर्ट में हुई इस घटना के रूप में सामने आया है.
ऐसा नहीं है कि एयरपोर्ट पर यात्रियों से दुर्व्यवहार की यह पहली घटना है. इससे पहले भी सीआईएसएफ कर्मियों के खराब व्यवहार को लेकर लगातार यात्रियों के बीच शिकायत बनी रही है. चूंकि, वे सभी आम यात्री थे, लिहाजा उनकी सुनने वाला कोई नहीं था. इस घटना में मामला देश की एक जानी-मानी अभिनेत्री के साथ-साथ भाजपा की नवनिर्वाचित सांसद का था, लिहाजा इस मामले को तूल तो पकड़ना ही था.
अब इस मामले में आरोपी लेडी कांस्टेबल कुलविंदर कौर को सस्पेंड कर दिया गया है. उसके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हो गई है और शायद आने वाले दिनों में उसे नौकरी से बर्खास्त भी कर दिया जाए. लेकिन, क्या सीआईएसएफ इस बात की भी समीक्षा करेगी कि इस घटना के लिए असल जिम्मेदार कौन है? क्या वह अधिकारी इस घटना के लिए जिम्मेदार नहीं हैं, जिन्होंने इस लेडी कांस्टेबल की मानसिक स्थिति का आंकलन किए बगैर उसे पब्लिक इंटरेक्शन वाली एक ड्यूटी पर तैनात कर दिया.
अब बात सीआईएसएफ के मूल मंत्र की..
चंडीगढ़ एयरपोर्ट की घटना के बाद सीआईएसएफ की मौजूदा कार्यप्रणाली को लेकर सवाल और भी हैं, लेकिन अभी बात करते हैं सीआईएसएफ के ‘मूल मंत्र’ की. यह बात उस दौर की है, जब उत्तर प्रदेश के पूर्व महानिदेशक ओपी सिंह सीआईएसएफ के महानिदेशक हुआ करते थे. उस दौर में सीआईएसएफ के व्यवहार को लेकर एक खास गाइडलाइन तैयार की गई थी, जिसका मूल मंत्र था ‘ड्यूटी विद स्माइल’.
इस मूल मंत्र का मकसद था कि सीआईएसएफ के जवान न केवल अपनी ड्यूटी को पूरी मुस्तादी के साथ निभाए, बल्कि अपनी मीठी मुस्कान के जरिए यात्रियों के बीच ऐसा भावनात्मक रिश्ता तैयार करें, जिससे वह सुरक्षा जांच के दौरान खुद को सहज महसूस कर सके. इतना ही नहीं, एयरपोर्ट पर किसी को किसी भी प्रकार की दिक्कत होने पर वह खुलकर सीआईएसएफ कर्मियों को अपनी समस्या बता सके.
क्या था मूल मंत्र का असल मकसद?
ड्यूटी विद इस्माइल को लागू करने के पीछे सीआईएसएफ के पूर्व डीजी ओपी सिंह का एक और मकसद था कि जवानों के चेहरे की मुस्कान को देखकर एयरपोर्ट पर यह आसानी से पतला लगाया जा सकता था कि जवान की मानसिक स्थिति क्या है? यानी, एयरपोर्ट पर तैनात इंस्पेक्टर रैंक के शिफ्ट हेड और असिस्टेंट कमांडेंट रैंक के अफसर इस मूल मंत्र के जरिए बेहद आसानी से पता लगा सकते थे कि उनकी जवान की मनोस्थिति कैसी है. उसे हथियार देना या पब्लिक इंटरेक्शन वाली पोस्ट देना सही है या नहीं.
ड्यूटी विद इस्माल को लेकर सीआईएसएफ के पूर्व महानिदेशक ओपी सिंह बताते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान एयरपोर्ट पर तैनात जवानों की बिहेवियरल ट्रेनिंग पर खास ध्यान दिया. साथ ही इस दौर में, साइकोलॉजिक प्रोफाइलिंग के जरिए एयरपोर्ट पर तैनात जवानों की मानसिक स्थित का आंकलन भी शुरू किया गया. उन्होंने बताया कि कोई महिला या पुरुष जवान अचानक हिंसात्मक घटना को अंजाम नहीं देता है. उसके साथ यह मनोदशा लंबे समय से सफर कर रही होती है, जिसे उसके व्यवहार से आसानी से पहचाना जा सकता है.
क्या हुई थी साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग?
चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर नवनिर्वाचित भाजपा सांसद कंगना रनौत के साथ हुई घटना का उदाहरण लेते हुए पूर्व महानिदेशक ओपी सिंह ने बताया कि घटना को अंजाम देने वाली लेडी कॉन्स्टेबल कई महीनों से अपने साथियों या अन्य लोगों से ऐसी बात कर रही होगी. लेकिन, समय रहते डिटेक्ट नहीं किया गया. इसको डिटेक्ट किया जाना बहुत आवश्यक था, इसीलिए पब्लिक इंटरेक्शन वाली पोस्ट में तैनात जवानों की साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग बहुत जरूरी है.
पूर्व महानिदेशक ओपी सिंह ने बताया कि साइकोलॉजिकल प्रोफाइलिंग के जरिए इस तरह की बातों को ध्यान में रखते तो शायद चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर इस तरह की घटना नहीं होती. इस घटना को ध्यान में रखते हुए ट्रेनिंग में इस बात को अब ध्यान में रखने की जरूरत है कि कैसे हम मेनस्ट्रीमिंग कर सकें. हम किसी को राष्ट्रीय धारा में किसी को कैसे ला सकें और किसी धर्म, जाति या स्थानीय मुद्दे के आधार पर नहीं, बल्कि ड्यूटी संविधान के प्रति समर्पित होकर काम कर सकें.
क्या भावनात्मक रूप से बंट चुकी है सीआईएसएफ?
अब घूमफिर कर सवाल फिर यही आता है कि जब सीआईएसएफ से ड्यूटी विद इस्माइल जैसी साइकोलॉजिकल प्रैक्टिस कहां गायब हो गई. तो चलिए इसका जवाब हम आपको बताते हैं. दरअसल, पूर्व डीजीपी ओपी सिंह के बाद सीआईएसएफ के नए मुखिया बने सीनियर आईपीएस अधिकारी राजेश रंजन. डीजी राजेश रंजन के कार्यकाल में भी ड्यूटी विद इस्माइल को विशेष प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाया गया.
इसी बीच करोना का काल आया गया. इस करोना काल में लंबी समयावधि तक अधिकारियों की जवानों से और जवानों की जनता से लंबी दूरी हो गई. समय के साथ, हवाई यात्राएं फिर शुरू हुई, लेकिन बीते इस काल में आई दूरियां कम होने की जगह बढ़ती चली गईं. गुपचुप तरीके से बात तो यहां तक होती है कि इस बीते समय में सीआईएसएफ भावनात्मक रूप से दो हिस्सों में बंट गई. पहला हिस्सा प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों का था और दूसरा हिस्सा सीआईएसएफ के कॉडर अफसरों का.
क्या काबिल अफसर हुए नजरअंदाज?
दबी जबांन से आरोप तो यहां तक लगाए जाते हैं इस दौर में एयरपोर्ट की हर नब्ज से वाकिफ सीआईएसएफ के कॉडर अफसरों की जगह प्रतिनियुक्ति पर आए पसंदीदा अफसरों को प्राथमिकता के आधार पर एयरपोर्ट पर तैनाती दी गई. यहां तक तो बात ठीक थी, लेकिन गड़बड़ यहां हुई कि एयरपोर्ट पर तैनात होने वाले ज्यादातर पसंदीदा अफसरों ने खुद को अपने चेंबर में बंद कर लिया.
बताया जाता है कि इन अफसरों ने जनता छोडि़ए, एयरपोर्ट पर साथ में काम करने वाली उन एजेंसियों और मीडिया से भी दूरी बना ली, जो सीआईएसएफ के लिए कभी आंख और कान का काम करती थी. इसका नतीजा यह हुआ कि एयरपोर्ट पर क्या हो रहा है, सीआईएसएफ कर्मियों का व्यवहार कैसा है, इसके बाबत तभी बातें सामने तभी आती है, जब पीड़ित यात्री अपनी व्यथा को सोशल मीडिया के जरिए साझा करते हैं.
और हासिए में गया सीआईएसएफ का मूल मंत्र
सच्चाई यह भी है कि एयरपोर्ट में होने इस तरह की कुछ ही घटनाएं सामने आ जातीं हैं, जबकि ज्यादातर घटनाएं पीछे दब कर रह जाती है. वहीं सामने आने वाली घटनाओं में कार्रवाई के नाम पर या तो खाना पूर्ति कर दी जाती है, या फिर कांस्टेबल स्तर के जवानों के निलंबन जैसी कार्रवाई कर मामले पर लीपापोती कर दी जाती है. कहा तो यह भी जा रहा है कि आला अफसरों के इस रुख के चलते, कुछ ही समय में ड्यूटी विद इस्माइल का मूल मंत्र हासिए में चला गया.
ऐसा नहीं है कि इस बीच काम नहीं हुआ. हैदराबाद एयरपोर्ट पर सवर्णिम सेवा जैसे योजनाओं के जरिए यात्रियों और सीआईएसएफ कर्मियों के बीच बेहतर संवाद की कोशिश की गई. लेकिन, इस तरह की कोशिशों ने वहीं पर दम तोड़ दिया, जहां से वह शुरू हुईं थीं. सीआईएसएफ में सेवाएं दे चुके तमाम पूर्व अधिकारी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि इस तरह की घटनाओं को रोकना है तो आला अधिकारियों को अपना नजरिया बदल संवाद का स्तर बढ़ाना होगा.