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रायपुर में आवारा कुत्तोंं का आतंक, 6 साल के मासूम पर जानलेवा हमला, शरीर पर 200 जख्मों से हालत नाजुक

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राजधानी रायपुर में आवारा कुत्तों का आतंक बढ़ता जा रहा है. ताजा मामला दलदल सिवनी के आर्मी चौक का है, जहां 13 फरवरी की देर शाम एक 6 साल के बच्चे पर तीन आवारा कुत्तों ने हमला कर दिया.

इस हमले में कुत्तों ने बच्चे के सिर और पीठ का मांस नोच लिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गया. गंभीर हालत में बच्चे को तुरंत निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उसका इलाज चल रहा है.

बच्चे की हालत नाजुक, शरीर में 200 से ज्यादा गहरे जख्म
घटना शाम करीब 7 बजे की है, जब कुछ बच्चे आर्मी चौक के पास खेल रहे थे. तभी अचानक तीन आवारा कुत्तों ने एक बच्चे पर हमला कर दिया. कुत्ते बच्चे को करीब दस मिनट तक नोचते रहे, लेकिन आसपास कोई मदद के लिए नहीं आया. स दौरान बच्चे के दोस्तों ने हिम्मत दिखाई और दौड़कर उसके पिता को सूचना दी. पिता जब मौके पर पहुंचे, तब तक बच्चा बुरी तरह लहूलुहान हो चुका था. परिजनों ने तुरंत बच्चे को उठाया और निजी अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने बताया कि बच्चे के शरीर में 200 से ज्यादा गहरे जख्म हैं. कुत्तों ने उसके सिर और पीठ का मांस बुरी तरह से नोच लिया है, जिससे उसकी हालत नाजुक बनी हुई है.

पूरे इलाके में डर और गुस्से का माहौल
इस हमले के बाद पूरे इलाके में डर और गुस्से का माहौल है. स्थानीय लोगों का कहना है कि आर्मी चौक और आसपास के इलाकों में आवारा कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ रही है, लेकिन नगर निगम इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा. कई बार शिकायतें करने के बावजूद कुत्तों को पकड़ने की कोई कार्रवाई नहीं हुई है. आवारा कुत्तों का झुंड हर समय गलियों में घूमता रहता है. घर वाले अपने बच्चों को बाहर भेजने से डरते हैं. इसके अलावा रात के समय राहगीरों पर भी हमला हो रहा है.

नगर निगम की लापरवाही पर सवाल
स्मार्ट सिटी कहे जाने वाले रायपुर में आवारा कुत्तों की समस्या कोई नई नहीं है. शहर में हर महीने सैकड़ों लोग कुत्तों के हमलों का शिकार हो रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद प्रशासन ठोस कदम उठाने में नाकाम साबित हो रहा है. नगर निगम का दावा है कि वे कुत्तों की नसबंदी कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात कुछ और ही नजर आते हैं. सवाल यह उठता है कि क्या केवल नसबंदी ही इस समस्या का समाधान है? जब कुत्तों का झुंड खतरनाक स्तर पर बढ़ चुका है और मासूमों की जान पर बन रही है, तब क्या निगम को इससे निपटने के लिए कोई नया तरीका अपनाने की जरूरत नहीं है?