जमुई जिले के खैरागढ़ के समीप स्थित दुर्गा मंदिर में वर्ष 1838 से प्रतिमा स्थापित कर मां दुर्गा की पूजा अर्चना होती चली आ रही है। इस मंदिर में आज से 186 वर्ष पूर्व राजा रामनारायण सिंह ने विधिवत तरीके से मां दुर्गा की पूजा-अर्चना का शुभारंभ किया था। आसपास के लोगों की मानें तो इस दुर्गा मंदिर की महिमा अपरंपार है। इस मंदिर में जो भी मुराद सच्चे मन से मांगी जाती है। वह हर हाल में पूरी होती है। इस दुर्गा मंदिर में कलश स्थापना से लेकर नवमी के दिन तक श्रद्धालुओं द्वारा अपने इच्छित मनोकामना की पूर्ति होने को लेकर और मनोकामना की पूर्ति होने के पश्चात पहले सुबह रानी तालाब से लेकर दुर्गा मंदिर और दुर्गा मंदिर से लेकर गढ़ के भीतर स्थित गहवर तब दंडवत दिया जाता है। प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र के दौरान प्रत्येक दिन लगभग 25 से 30 हजार श्रद्धालु महिला और पुरुषों के द्वारा अपने इच्छित मनोकामना की पूर्ति को लेकर अहले सुबह से ही दंडवत दिया जाता है। इस दुर्गा मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा सदियों से दंडवत देने की परंपरा चली आ रही है। राजतंत्र समाप्त होने के पश्चात स्थानीय लोगों द्वारा समिति का निर्माण करके विधि-विधान पूर्वक मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करके पूजा-अर्चना की जा रही है। इस दुर्गा मंदिर के समीप प्रत्येक वर्ष शारदीय नवरात्र के दौरान भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। आसपास के लोगों की भारी भीड़ अष्टमी के दिन माता को खोइछा देने और नवमी के दिन माता के दर्शन को लेकर उमड़ती है। कई श्रद्धालुओं द्वारा तो अपनी मनोकामना की पूर्ति के पश्चात मां दुर्गा को अष्टमी की रात्रि में अथवा नवमी की सुबह में बकरे के बलि भी चढ़ाने आ रहे हैं।