मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक सिविल जज की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है, जिन्होंने बिना आदेश लिखे तीन मामलों में आरोपी को बरी कर दिया था और दो मामलों में बिना आदेश पारित किए कार्यवाही ही स्थगित कर दी थी. जज महेंद्र सिंह ताराम की याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विनय जैन की पीठ ने उन्हें “गंभीर पेशेवर कदाचार” का दोषी पाया और कहा कि सर्विस से उनकी बर्खास्तगी उचित थी.
TOI की रिपोर्ट के अनुसार, ताराम की याचिका में बताया गया कि उन्होंने जुलाई 2003 में नरसिंहपुर में प्रशिक्षु सिविल जज वर्ग-II के रूप में कार्यभार संभाला था. प्रशिक्षण के बाद उन्हें छतरपुर जिले के नौगांव और फिर मंडला जिले के निवास में पदस्थ किया गया. हाईकोर्ट की अनुशंसा पर उन्हें 2014 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. उन्होंने बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ रिप्लाई दिया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने एक रिट याचिका दायर की.
ताराम ने दलील दी कि काम के दबाव के अलावा वे पर्सनल प्रॉब्लम्स से भी गुजर रहे थे और अपनी स्थिति के कारण उन्होंने अपने कर्तव्यों के निर्वहन में कुछ गलतियां की थीं. उन्होंने तर्क दिया कि एक अन्य सिविल जज को इसी तरह की गलतियों के लिए केवल दो वार्षिक वेतन वृद्धि रोककर छोड़ दिया गया था, जबकि उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. हाईकोर्ट ने उन्हें गंभीर व्यावसायिक कदाचार का दोषी पाया और सेवा समाप्ति को बरकरार रखा.