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5 मिनट में 43000 से 7 रुपये पर आ गया मेरा बैंक बैलेंस’, शख्स ने दिखाई मिडल क्लास की लाचारी

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भारत के मिडल क्लास की माली हालत कितनी नाज़ुक हो चुकी है, इसकी एक बानगी हाल ही में Reddit पर देखने को मिली. एक नौकरीपेशा व्यक्ति ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि महीने की शुरुआत में उसके बैंक अकाउंट में ₹43,000 आए, लेकिन महज़ 5 मिनट में वो बैलेंस घटकर सिर्फ ₹7 रह गया. उसने लिखा कि ₹19,000 किराया, ₹15,000 क्रेडिट कार्ड का मिनिमम पेमेंट (कुल ₹60,000 के बकाया में से), ₹10,000 की दो EMIs और ₹3,700 इंटरनेट-मोबाइल बिल में ही पूरी सैलरी चली गई. खाने-पीने या किसी आकस्मिक खर्च के लिए कुछ भी नहीं बचा.
ये एक व्यक्ति की तकलीफ जरूर है, लेकिन कहानी पूरे शहरी मध्यम वर्ग की है. Reddit पोस्ट वायरल हो गई, क्योंकि हजारों लोगों को उसमें अपना ही चेहरा नजर आया. एक्सपर्ट्स मानते हैं कि EMI पर आधारित और महीने-दर-महीने सैलरी से जिंदगी चलाने की आदत अब एक ट्रेंड नहीं, संकट बन चुकी है.RBI के डेटा के मुताबिक, बीते तीन सालों में पर्सनल लोन में 75% की बढ़ोतरी हुई है. अब हर तीसरा सैलरीड व्यक्ति अपनी इनकम का 33% से ज्यादा हिस्सा सिर्फ EMIs में चुका रहा है, वो भी रेंट और खाने के खर्च से पहले. कुछ लोगों के लिए यह आंकड़ा 45% तक पहुंच चुका है.

“ये ग्रोथ के लिए नहीं, जीने के लिए उधारी है”
बिजनेस टुडे की एक खबर के अनुसार, मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सौरभ मुखर्जी के कहते हैं, “मिडल क्लास के 5–10% परिवार पहले ही कर्ज के दलदल में फंस चुके हैं. ये उधारी घर खरीदने या निवेश के लिए नहीं, सिर्फ सर्वाइव करने के लिए ली जा रही है.” विशेषज्ञ मानते हैं कि इस संकट की जड़ में कई वजहें हैं, डिजिटल लोन की आसान उपलब्धता, सैलरी का न बढ़ना और दिखावे के लिए खर्च करने की आदत. पर्फियोस के सुजय यू कहते हैं, “EMI पर बनी ये लाइफस्टाइल फौरन सुख देती है, नए फोन, गाड़ियां, ब्रांडेड कपड़े लेकिन लंबे वक्त में ये फाइनेंशियल तबाही है.”

“बैंक ने औजार दिए, हमने खुद फंदा बना लिया”अर्थशास्त्री आरपी गुप्ता ने इसे “एक संभावित आर्थिक आपदा” बताया है, जो न सिर्फ उपभोग आधारित विकास को खतरे में डालती है, बल्कि समाज में आर्थिक असमानता को और बढ़ा सकती है. डेटा वैज्ञानिक मोनिश गोसर ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “बैंक ने हमें टूल्स दिए, लेकिन हमने उनसे अपना ही फंदा बना लिया.”

कर्ज में डूबता भारत
भारत का घरेलू कर्ज अब GDP का 41.9% हो चुका है, जिसमें से आधे से ज्यादा हिस्सा क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन और “खरीदें अब, भुगतान बाद में” स्कीम्स का है. ये कर्ज संपत्ति नहीं, उपभोग के लिए लिए जा रहे हैं. प्रति व्यक्ति कर्ज अब ₹4.8 लाख तक पहुंच चुका है, जबकि घरेलू बचत दर 47 साल के न्यूनतम स्तर पर है.