अमेरिका इन दिनों पूरी दुनिया में फैले बवाल का केंद्र बना हुआ है. हर युद्ध में अमेरिका शामिल है, भले ही वो सीधे तौर पर इसे लड़ नहीं रहा हो. खासतौर पर जब से डोनाल्ड ट्रंप सत्ता में आए हैं, तब से अमेरिका फर्स्ट के नाम पर उन्होंने जो गदर मचाया है, उससे पूरा विश्व प्रभावित हो रहा है. दादागिरी ऐसी कि कोई उनकी शर्तों पर न झुके तो वे किसी तानाशाह की तरह सजा देने पर उतर आते हैं. उनकी इस सनक के पीछे उनके कुछ सलाहकार भी हैं, जो अमेरिका की पारंपरिक रणनीति को उलट-पुलट कर रहे हैं.
भारत के खिलाफ टैरिफ वॉर के दौरान ट्रंप के अलावा जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में रहा, वो पीटर नवारो का है. डोनाल्ड ट्रंप के लिए शुक्राचार्य की तरह बंटाधारी गुरु बने पीटर नवारो का कोई दिन नहीं गुजर रहा, जब वे पीएम मोदी के बारे में बात न करें. टीवी-अखबार या फिर सोशल मीडिया पर वो सिर्फ इन दिन रूसी तेल और मोदी डिप्लोमेसी से ही झल्लाए दिख रहे हैं. हर दिन वो ये गणित समझा रहे हैं कि आखिर भारत के रूसी तेल खरीदने से किस तरह आम अमेरिकी प्रभावित हो रहा है. दिलचस्प तो ये है कि ये डिप्लोमेसी अब व्यक्तिगत होकर पीएम मोदी तक सिमट गई है.
सोशल मीडिया पर लिखा ‘तेल पुराण’
डोनाल्ड ट्रंप के कारोबारी सलाहकार पीटर नवारो ने अपने एक्स अकाउंट पर भारत और रूस के तेल व्यापार और इसके यूक्रेन से लेकर अमेरिका तक पर प्रभाव को लेकर पूरा पुराण छाप दिया है. चलिए आपको बताते हैं कि इतनी मेहनत करके एक बार फिर नवारो ने वही कहानी फिर कैसे सुनाई है, जो वे पिछले 2 महीने से सुना रहे हैं.
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाया है. ये सिर्फ भारत के ‘अनफेयर ट्रेड’ नहीं बल्कि रूस की वॉर मशीन बने तेल व्यापार की लाइफलाइन काटने के लिए है.
इसके बाद उन्होंने रूस-भारत के ऑयल ट्रेड की गणित समझाई है. नवारो के मुताबिक- अमेरिकी लोग भारतीय सामान खरीदते हैं और भारत हमारे डॉलर्स का इस्तेमाल डिस्काउंटेड रूसी तेल खरीदने में करता है.
भारतीय रिफाइनर्स अपने रूसी पार्टनर्स के साथ मिलकर तेल मार्केट को उलट रहा है. वो रूसी तेल को सस्ते दाम पर खरीदकर इसे रिफाइन करके इंटरनेशनल बाजार में ऊंचे दाम पर बेच रहा है. इस तरह रूस को यूक्रेन युद्ध चलाने के लिए पैसा मिलता है.
रूस के यूक्रेन के खिलाफ युद्ध से पहले भारत 1 फीसदी रूसी तेल खरीदता था लेकिन आज 30 फीसदी खरीद रहा है. ये घरेलू इस्तेमाल के लिए नहीं है बल्कि भारतीय मुनाफे को खून और बर्बादी में लगा रहा है.
आगे नवारो ने लिखा है कि भारत की बड़ी तेल लॉबी ने दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को विशाल रिफाइनिंग हब और क्रेमलिन के ऑयल मनी के केंद्र में तब्दील कर दिया है. रूस से सस्ते दाम पर तेल खरीदकर ये वो इसे प्रोसेस करके यूरोप, अफ्रीका और एशिया को बेच रहा है.
भारत अब 10 लाख बैरेल्स हर दिन निर्यात कर रहा है. नवारो ने यहां आरोप ये भी लगाया है कि इससे बड़े राजनीतिक कनेक्शन वाले एनर्जी टाइटंस को पैसा मिल रहा है और सीधा पैसा पुतिन के युद्ध के लिए जा रहा है. भारत रूस का छिपा हुआ बैंक है.
नवारो ने लिखा है कि अमेरिका यूक्रेन को हथियार देने में पैसा लगा रहा है, तो भारत रूस को फंड कर रहा है, ऊपर से अमेरिकी सामान पर दुनिया के सबसे ऊंचे टैरिफ भी ठोक रहा है. अमेरिका, भारत के साथ लगभग 50 अरब डॉलर का व्यापार घाटा झेल रहा है और भारत उस डॉलर से रूसी तेल खरीद रहा है. ऐसे में अमेरिकी निर्यातकों पर दोहरी मार पड़ रही है —ऊंचे आयात शुल्क और व्यापार संतुलन का संकट.
भारत एक तरफ रूसी हथियारों की खरीद जारी रखता है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी कंपनियों से मांग करता है कि वे संवेदनशील रक्षा तकनीक साझा करें और भारत में फैक्ट्रियां लगाएं. यह एक तरह का ‘रणनीतिक मुफ्तखोरी’ है क्योंकि भारत दोनों पक्षों से फायदा उठा रहा है, लेकिन जिम्मेदारियां निभाने से बचता नजर आता है.
नवारो ने अपनी आखिरी पोस्ट में तो हद कर दी है. उन्होंने लिखा है कि बाइडन प्रशासन ने इस ‘पागलपन’ को नजरअंदाज किया लेकिन ट्रंप ने सीधा एक्शन लिया है. डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 50% टैरिफ ठोक कर साफ संदेश दिया है – 25% अनुचित व्यापार के खिलाफ और 25% राष्ट्रीय सुरक्षा के तहत. नवारो ने ट्रंप के हवाले से लिखा कि अगर भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होकर खुद को अमेरिका का रणनीतिक साझेदार कहलाना चाहता है, तो उसे बर्ताव भी वैसा ही करना होगा. एक बार फिर उन्होंने वही लाइन दोहराई – ‘यूक्रेन की शांति का रास्ता नई दिल्ली से होकर जाता है.’