वेटरन रतन टाटा के निधन के बाद से ही टाटा समूह में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है. शुरुआत में तो यह बातें अंदरखाने ही चलती रहीं, लेकिन धीरे-धीरे सबकुछ सतह पर आ गया. अब तो हालात इतने बिगड़ गए हैं कि सरकार को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है. टाटा समूह में जारी विवाद पर विराम लगाने के लिए सोमवार को दिल्ली में केंद्र सरकार के मंत्रियों और टाटा समूह के शीर्ष अधिकारियों के बीच बातचीत भी हुई. सुनने में आ रहा है कि सबसे ज्यादा विवाद रतन टाटा के करीबी माने जाने वाले विजय सिंह को हटाए जाने को लेकर हो रहा है. आखिर विजय सिंह कौन हैं और सारे विवाद के केंद्र में उनका नाम क्यों आ रहा है.
विजय सिंह को रतन टाटा का करीबी माना जाता है. वह 1970 बैच के मध्य प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हैं. उन्होंने साल 2007 से 2009 तक भारत के रक्षा सचिव के रूप में भी काम किया और रिटायर होने के बाद रतन टाटा ने उन्हें अपने साथ जोड़ लिया. रतन टाटा उन्हें ग्रुप की होल्डिंग कंपनी टाटा संस के बोर्ड में टाटा ट्रस्ट के नामित निदेशक के रूप में नियुक्त कर दिया था. उनकी आयु 70 साल पूरी होने पर साल 2018 में वह बोर्ड से हट गए थे, लेकिन रतन टाटा ने साल 2022 में आयु सीमा में छूट देकर उन्हें दोबारा शामिल कर लिया. बाद में उन्हें टाटा ट्रस्ट का उपाध्यक्ष भी बना दिया गया.
क्यों शुरू हुआ विवाद
विजय सिंह को हटाए जाने का विवाद पिछले साल अक्टूबर में रतन टाटा के निधन के बाद से ही शुरू हो गया था. समूह में पनपे आंतरिक मतभेदों की वजह से विजय सिंह को हटाने की कवायद शुरू हो गई. पिछले महीने सितंबर में टाटा ट्रस्ट की बोर्ड मीटिंग में 7 ट्रस्टी में से 4 ट्रस्टियों ने रतन टाटा के रहने के दौरान ही उनकी नियुक्ति का विरोध किया था. इसमें प्रमित झावेरी, डेरियस खंबाटा, मेहली मिस्त्री और जहांगीर ने विजय सिंह का विरोध किया था. ट्रस्टियों ने सिंह को बोर्ड में होने वाली चर्चाओं की जानकारी व अन्य फैसलों का अपडेट नहीं देते थे.
नोएल से अलग जाकर लिया फैसला
रतन टाटा के करीबी होने के नाते नोएल टाटा ने भी विजय सिंह का हमेशा समर्थन किया था. इसके साथ वेणु श्रीनिवासन ने भी उनका समर्थन किया, लेकिन वोटिंग के जरिये उन्हें हटा दिया गया. हालांकि, विवाद बढ़ाने पर सिंह ने खुद ही इस्तीफा दे दिया, फिर भी वह ट्रस्टी बने रहे. विजय सिंह को हटाने के बाद टाटा ट्रस्ट में दो गुट बन गए. इस विवाद से टाटा संस के नियंत्रण, नामित निदेशकों की नियुक्ति और टाटा कैपिटल के आईपीओ को लेकर विवाद बढ़ा है. एक ट्रस्टी ने ईमेल करके वेणु श्रीनिवासन को हटाने की बात कही थी. इससे टाटा संस पर कब्जा किए जाने जैसी स्थिति पैदा हो गई.
सरकार ने किया हस्तक्षेप
टाटा संस का विवाद इस कदर बढ़ गया है कि सरकार को भी इस 157 साल पुराने कारोबारी समूह को चिंता शुरू हो गई. टाटा समूह देश का सबसे बड़ा औद्योगिक घराना है और इसीलिए सरकार को लेकर लेकर चिंता हो रही है. यही वजह है कि सरकार के दो मंत्रियों और नोएल टाटा, वेणु श्रीनिवासन, एन चंद्रशेखरन और डेरियस खंबाटा के साथ बैठक की है. सरकार की मंशा है कि ट्रस्टीज के बीच सुलह हो और टाटा संस की लिस्टिंग सुनिश्चित हो सकेगी. सरकार ने यह हस्तक्षेप करोड़ों निवेशकों और राष्ट्रीय हितों को देखते हुए किया है.