लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और बीजेपी से मुकाबले के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) अब कांग्रेस के साथ गठबंधन की कोशिशों में जुट गई है. सीपीएम की सेंट्रल कमिटी ने आम चुनाव के लिए कांग्रेस के सामने सीट शेयरिंग का ऑफर भी रखा है.
दरअसल ‘महागठबंधन’ में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी का समर्थन करने वाले राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में उनसे किनारा कर लिया है. कांग्रेस ने ममता की पार्टी से गठबंधन ना कर सीपीएम से हाथ मिलाने का फैसला लिया है.
2014 में किसको मिली थी कितनी सीटें?
ये है 2019 के लिए सीपीएम का सीट शेयरिंग फॉर्मूला
अब 2019 के चुनाव के लिए सीपीएम ने एंटी-बीजेपी एंटी-टीएमसी फॉर्मूला तय किया है. इसके तहत इस बार सीपीएम 42 सीटों में से सिर्फ 22 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. इसमें 2014 में जीती गई रायगंज और मुर्शिदाबाद सीट भी शामिल है. बाकी 10-10 सीटें लेफ्ट फ्रंट के अन्य सहयोगी दलों और कांग्रेस के लिए छोड़ दी जाएंगी.
क्या कहते हैं सीताराम येचुरी?
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने एक बयान में कहा, ‘4-5 मार्च को कोलकाता में हुई सीपीएम सेंट्रल कमिटी की मीटिंग में फैसला लिया गया था कि बीजेपी विरोधी, तृणमूल कांग्रेस विरोधी वोट बंटने न देने के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीएम) उचित तरीके अपनाएगी. इसके अनुसार, सीपीएम ने लोकसभा की मौजूदा छह सीटों पर एक-दूसरे के खिलाफ चुनाव न लड़ने का प्रस्ताव दिया है. इन सीटों पर कांग्रेस और लेफ्ट वाम मोर्चे का कब्जा है. 8 मार्च को एक और मीटिंग बुलाई गई है, जिसमें बाकी सीटों के लिए अंतिम फैसला ले लिया जाएगा.’
यहां फंसा पेंच
कांग्रेस-सीपीएम के बीच गठबंधन को लेकर पेंच रायगंज और मुर्शिदाबाद सीट को लेकर फंसा हुआ है. सीपीएम ने ये दोनों सीटें 2014 के चुनाव में जीती थीं और इस चुनाव में वह इसे बरकरार रखना चाहती है. वहीं, बंगाल में कांग्रेस नेतृत्व ने साफ कहा है कि अगर लेफ्ट फ्रंट रायगंज और मुर्शिदाबाद संसदीय सीट उनके लिए नहीं छोड़ता है, तो वह अकेले ही सियासी मैदान में उतर सकती है. ये दोनों सीटें कांग्रेस की गढ़ मानी जाती हैं. ऐसे में 8 मार्च की मीटिंग में ही अंतिम फैसला लेने की संभावना है.