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लोकसभा चुनाव 2019: कन्हैया बिना महागठबंधन के गिरिराज के लिए कितनी बड़ी चुनौती

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बिहार में सीपीआई (माले) ने बेगूसराय सीट पर सीपीआई के संभावित उम्मीदवार कन्हैया कुमार को अपना समर्थन देने की घोषणा की है.

इससे पहले बेगूसराय में शनिवार को सीपीआई के स्टेट कैबिनेट की बैठक हुई, जिसमें प्रदेश सचिव सत्यनारायण सिंह सहित बड़े अधिकारी मौजूद थे.

यह बैठक क़रीब पाँच घंटों तक चली, जिसमें यह तय किया गया कि कन्हैया कुमार को ही सीपीआई अपना उम्मीदवार बनाएगी. वहीं अन्य लेफ्ट पार्टियां सीपीआई (माले) और सीपीएम भी उन्हें अपना समर्थन देगी.

इन बैठकों के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि यहां एनडीए के उम्मीदवार गिरिराज सिंह के सामने कन्हैया कुमार और महागठबंधन से राजद उम्मीदवार होंगे.

गिरिराज सिंह जहां ‘कट्टर मोदी समर्थक’ हैं तो दूसरी तरफ कन्हैया कुमार ‘घोर मोदी विरोधी’.

एक हिंदू राष्ट्रवाद की बात करते हैं और विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की सलाह देते हैं तो दूसरी तरफ़ दूसरे पक्ष पर देशद्रोह के आरोप लग चुके हैं और वो सत्ता पक्ष को फांसीवादी ताक़त क़रार देते हैं.

इन दोनों के बीच की लड़ाई की संभावना के बाद बेगूसराय सीट अब लोकसभा चुनावों की ‘हॉट सीट’ बन चुकी है, जिस पर देश भर की नज़रें होंगी.

रामधारी सिंह दिनकर की यह भूमि वामपंथ का गढ़ रहा है, जहां यह न सिर्फ़ जन्मा, बल्कि इसका विकास हुआ और वो चरम पर भी पहुंचा.

बिहार विधानसभा के पहले कम्युनिस्ट विधायक यहीं से हुए हैं. उनका नाम चंद्रशेखर सिंह था. यह मुख्य रूप से सीपीआई का गढ़ रहा है.

यह भी सच है कि बेगूसराय में वामपंथ का विकास भूमिहारों के नेतृत्व में हुआ और वही इनके कर्ताधर्ता भी रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में वामपंथ की पकड़ यहां कमज़ोर हुई है.

भूमिहारों का एक वर्ग अब भी सीपीआई के साथ है लेकिन इसका बड़ा वर्ग अब बीजेपी की तरफ़ रुख़ कर चुका है.

राजनीतिक नज़रिए से भूमिहार समाज यहां निर्णायक भूमिका में होता है. कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह, दोनों इसी समाज से आते हैं.

हालांकि दूसरी जातियों की भी स्थितियां बहुत बुरी नहीं हैं. महागठबंधन ने जिस तरह का समीकरण तैयार किया है, उसमें अगर मुस्लिम और हिंदुओं की अन्य जातियां एक साथ आती हैं तो मुक़ाबले की तस्वीर बदल सकती है.

जाति आधारित जनसंख्या क्या है, इससे जुड़ा कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन पार्टियां जिस अनुमानित आंकड़ों का इस्तेमाल करती हैं, उसके मुताबिक बेगूसराय लोकसभा सीट में भूमिहारों की संख्या क़रीब 4.75 लाख है.

वहीं मुसलमानों की जनसंख्या 2.5 लाख, कुर्मी-कुशवाहा की दो लाख और यादवों की संख्या करीब 1.5 लाख है.

बेगूसराय से किन-किन जातियों के रहे हैं सांसद

जाति आधारित ये आंकड़े दर्शाते हैं कि यहां की राजनीति भूमिहार समाज के इर्द-गिर्द घूमती रही है. पिछले दस लोकसभा चुनावों में से नौ के विजयी उम्मीदवार इसी समाज से रहे हैं. हालांकि उनकी पार्टियां ज़रूर अलग-अलग रही हैं.

1980 से 2014 के बीच बेगूसराय सीट पर दस बार लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. सिर्फ़ 2009 के चुनावों में ऐसा मौक़ा आया जब बेगूसराय को एक मुस्लिम सांसद मिला. ये सांसद थे नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड से डॉ. मुनाजिर हसन.

2014 के लोकसभा चुनावों में बेगूसराय की सीट भाजपा के खाते में गई थी. भाजपा के भोला सिंह को क़रीब 4.28 लाख वोट मिले थे, वहीं राजद के तनवीर हसन को 3.70 लाख वोट मिले थे. दोनों में क़रीब 58 हज़ार वोटों का अंतर था.

वहीं सीपीआई के राजेंद्र प्रसाद सिंह को करीब 1.92 लाख वोट ही मिले थे.

कन्हैया का रास्ता आसान होगा?

इन राजनीतिक और जातिगत समीकरण के बीच बेगूसराय का मुक़ाबला कैसा होगा?

इस सवाल के जवाब मे बेगूसराय के वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश कहते हैं, “वाम पार्टियों के साथ आने से बहुत फ़र्क तो नहीं पड़ेगा क्योंकि सीपीआई के अलावा अन्य दो पार्टियों का यहां बहुत मज़बूत आधार नहीं है.”

“दूसरी बात यह है कि यहां जाति आधारित मतदान का चलन रहा है. ऐसे में राजद और सीपीआई का वोट बैंक बिल्कुल अलग-अलग हैं.”

वहीं राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी का भी मानना है कि वामपंथी पार्टियों का साथ आना वामपंथ समर्थकों के लिए अच्छी ख़बर तो ज़रूर है, लेकिन यह बेगूसराय सीट पर बहुत कमाल नहीं दिखा पाएगा.

वो कहते हैं, “बेगूसराय में सीपीआई (माले) और सीपीएम का बहुत आधार नहीं है. वहां मुख्य रूप से सीपीआई की ही पैठ है.”

गिरिराज बनाम कन्हैया से बंटेगा भूमिहार वोट बैंक

क्या गिरिराज और कन्हैया के आमने-सामने होने से भूमिहार समाज का वोट बंटेगा और इसका फ़ायदा राजद को मिल सकता है?

इस सवाल पर प्रोफ़ेसर नवल किशोर चौधरी कहते हैं, “मेरी राय में गिरिराज सिंह के जाने के बाद अब बेगूसराय में मुक़ाबला रोचक तो ज़रूर होगा, लेकिन असल मुकाबला महागठबंधन और एनडीए के बीच ही होगा.”

प्रोफ़ेसर चौधरी कहते हैं कि कन्हैया कुमार को भी अच्छे मत मिलेंगे, इसमें दो राय नहीं है, लेकिन कन्हैया कुमार की पार्टी के पास जो वोट बेस है, वो बहुत बड़ा नहीं है.

प्रोफ़ेसर चौधरी मानते हैं कि भूमिहारों का एक वर्ग अब भी सीपीआई के साथ है, लेकिन इस समाज का मूल धड़ा अब बीजेपी की तरफ़ रुख़ कर चुका है और वो कन्हैया के साथ कभी नहीं जाएगा.

वहीं वरिष्ठ पत्रकार कुमार भावेश कहते हैं कि सीपीआई को भूमिहार समाज का कुछ हिस्सा और कुछ अन्य जातियां समर्थन करती हैं.

“ये सभी उनके पारंपरिक कैडर वोटर होते हैं. भूमिहार समाज का बड़ा वोट बैंक भाजपा के साथ रहा है. वो किसी भी हालत में कन्हैया के पास नहीं जाएगा, हां कुछ नाममात्र की संख्या में वोटर इधर से उधर हो सकते हैं.”

“जबकि राजद के पास मुस्लिम-यादव का वोट बैंक है. अब महागठबंधन में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के शामिल होने के बाद कुशवाहा वोटर भी राजद के पक्ष में मतदान करेंगे.”

कैसी होगी लड़ाई?

अभी तक की स्थितियों के मुताबिक़ फ़िलहाल लड़ाई त्रिकोणीय नज़र आ रही है- गिरिराज सिंह बनाम राजद उम्मीदवार बनाम कन्हैया.

हालांकि विश्लेषक यह मान रहे हैं कि अंतिम लड़ाई ‘मोदी बनाम एंटी मोदी’ की ही होगी.

कुमार भावेश कहते हैं, “बेगूसराय की लड़ाई मोदी बनाम एंटी मोदी की होगी. ऐसे में जनता के मोदी के ख़िलाफ़ जाने के दो विकल्प होंगे. पहला राजद उम्मीदवार और दूसरा कन्हैया.

वो कहते हैं, “जैसा कि सीपीआई के प्रदेश सचिव ने कहा है कि महागठबंधन के साथ बातचीत के दरवाज़े बंद नहीं हुए हैं. ऐसे में फ़िलहाल कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी.”

वहीं प्रोफ़ेसर चौधरी भी मानते हैं कि अगर स्थितियां नहीं बदलीं तो अंत में मामला मोदी बनाम एंटी मोदी का होगा. ऐसे में कन्हैया कुमार दौड़ में पीछे छूट सकते हैं. और अगर महागठबंधन कन्हैया पर हामी भर देता है तो ज़ाहिर सी बात है मुक़ाबला अत्यंत रोचक हो जाएगा.

यह तो तय है कि बेगूसराय की सीट हॉट सीट साबित होने वाली है और आने वाले समय में चुनावों में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रद्रोह का मामला यहां चुनावी सभाओं में जमकर उठाया जाएगा.

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