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‘जिन लोगों पर बैंकों का कर्ज है उन्हें चुनाव नहीं लड़ने दिया जाए’, इलेक्शन कमीशन से बैंकर्स की गुहार

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गांधीनगर। ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाइज एसोसिएशन (AIBEA) के प्रतिनिधियों ने गुजरात में चुनाव आयोग को पत्र लिख लोन डिफॉल्टर्स (कर्जेदार) को चुनाव लड़ने से रोकने की गुहार लगाई है। इन बैंकर्स ने कहा कि डिफॉल्टरों की संख्या लगातार बढ़ रही है, खासतौर पर विलफुल डिफॉल्टर्स बैंकों को डुबो रहे हैं। ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने की परमीशन नहीं दी जाए।

पत्र में यह भी लिखा गया कि, पिछले सालों में गुजरात में बैंक ऋण डिफाल्टर चुनाव लड़ने में सक्षम हो गए हैं। कुछ लोग सांसद और विधायक बन गए हैं और मंत्री भी बन गए हैं। हम सार्वजनिक हित में मांग कर रहे हैं, कि बैंक ऋण डिफाल्टरों को चुनाव लड़ने या किसी भी सार्वजनिक पद पर रहने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

बैंकरों ने साथ ही मांग की कि उम्मीदवारों द्वारा नामांकन पत्र दाखिल किए जाने के दौरान, एक घोषणा पत्र प्राप्त किया जाना चाहिए कि वह उन कंपनियों में जहां उनकी हिस्सेदारी है और कनेक्शन बैंक ऋण डिफाल्टर नहीं हैं।

महा गुजरात बैंक इम्प्लाइज एसोसिएशन (MGBEA) के महासचिव, जनक रावल ने इसके कारणों को बताते हुए कहा, “जो लोग ऋण पर डिफ़ॉल्ट हैं, वे बैंकों में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को जोड़ रहे हैं। 2015-16 से, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का संपूर्ण परिचालन लाभ बुरे ऋणों के प्रावधानों की ओर बढ़ रहा है। अंततः, यह सार्वजनिक धन है क्योंकि बैंक केवल जमा स्वीकार करके ऋण के रूप में उधार दे सकते हैं।”

उन्होंने कहा कि हमने मुख्य चुनाव आयुक्त से आग्रह किया है कि वे ऐसे प्रावधान लाने में मदद करें जो बैंक ऋण डिफॉल्टरों को चुनाव लड़ने से रोकें। बैंकरों का दावा है कि संपन्न और कॉर्पोरेट उधारकर्ताओं के पास बैंक ऋणों पर विलफुल चूक के बहुमत के लिए खाता है।

राज्य स्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में गुजरात भर में बैंकों का सकल एनपीए 38,520 करोड़ रुपये है। इसमें से, गैर-प्राथमिकता वाले क्षेत्र में एनपीए-मुख्य रूप से कॉर्पोरेट ऋण शामिल हैं। वित्त वर्ष 2018-19 की तीसरी तिमाही में एनपीए 22,352 करोड़ रुपये था।