पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखण्ड में प्लास्टिक वेस्ट को रोकने के लिए राज्य का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब बड़ा कदम उठाने जा रहा है. बोर्ड ने 10 बड़ी कम्पनियों को चिन्हित किया है जिनके उत्पाद राज्य में प्रदूषण फैलाने के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार पाए गए हैं. बोर्ड अब इन कंपनियों को नोटिस जारी कर पूछने जा रहा है कि वह अपने उत्पादों से होने वाले प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए क्या कर रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि एक रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य में प्लास्टिक से होने वाला प्रदूषण चिंताजनक स्तिथि में पहुंच गया है.
नोटिस की तैयारी
उत्तराखण्ड के लिए वेस्ट मैनेजमेंट सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है. देहरादून से ही हर रोज़ 269 टन कूड़ा निकलता है तो हरिद्वार से 255 टन कूड़ा. इसमें प्लास्टिक वेस्ट में सबसे ज्यादा ब्रांडेड कम्पनियों के उत्पादों का होता है. उत्तराखंड सरकार ने पॉलिथीन की थैलियों पर तो प्रतिबंध लगाया दिया है लेकिन इन उत्पादों से पैदा होने वाले प्लास्टिक कूड़े का कोई हल नहीं है.
दरअसल ठोस प्रबंधन नियम 2016 के अन्तर्गत मिली 2018-2019 की रिपोर्ट को लेकर अब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के भी हाथ पांव फूल गए हैं. प्लास्टिक एंव म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट बोर्ड के नोडल अधिकारी प्रदीप कुमार जोशी ने बताया कि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड अब 10 बड़ी कम्पनियों को नोटिस भेजने जा रहा है. इन कंपनियों से यह पूछा जाएगा कि उनके उत्पादों के प्लास्टिक वेस्ट को इकट्ठा करने और उसके डिस्पोज़ल के लिए वह क्या करने जा रहे हैं?
जनवरी में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने राज्य सरकारों को पर्यावरणीय प्रदूषण से लड़ने की योजनाओं पर काम करने के निर्देश दिए थे. अप्रैल तक मांगी गई रिपोर्ट में प्लास्टिक के सिस्टमेटिक डिस्पोज़ल के लिए एक्शन प्लान तैयार करने के निर्देश थे लेकिन 25 राज्यों ने यह रिपोर्ट नहीं दी थी.
उत्तराखण्ड में प्लास्टिक वेस्ट डिस्पोज़ल को लेकर काम कर रही एनजीओ गति फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष अनूप नौटियाल कहते हैं कि सवा करोड़ से भी कम की आबादी वाले उत्तराखंड में हर साल 6-7 करोड़ पर्यटक आते हैं और वह उसी अनुपात में प्लास्टिक वेस्ट भी छोड़ जाते हैं. वह कहते हैं कि पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड का यह कदम देर से ही उठाया जा रहा लेकिन ज़रूरी कदम है. उत्तराखंड को प्लास्टिक वेस्ट को मना करना ही होगा.
एक तथ्य है कि प्रदेश में पॉलिथीन को बैन करने का सरकार का आदेश एक साल भी ज़मीन पर नहीं उतर पाया है और देहरादून समेत पूरे राज्य में धड़ल्ले से पॉलिथीन की पन्नियों का इस्तेमाल किया जा रहा है. ऐसे में यह सवाल तो उठता ही है कि जब छोटे दुकानदारों के प्लास्टिक के इस्तेमाल पर सरकार प्रतिबंध नहीं लगवा पा रही तो बड़ी कंपनियों पर शिकंजा कैसे कसेगी?