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जानिए देश की वो अकेली रेलवे लाइन जिसकी सौ सालों से मालिक है ब्रिटिश कंपनी

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भारतीय रेलवे ने दो रूट्स पर प्राइवेट ट्रेन चलाने का फैसला किया है. ये तेजस ट्रेन होगी जो अहमदाबाद-मुंबई सेंट्रल और दिल्ली-लखनऊ रूट पर चलेगी. लेकिन क्या आपको मालूम है कि देश में 190 किलोमीटर की एक रेलवे लाइन पूरी तरह प्राइवेट है, जो कभी भारतीय रेलवे में शामिल ही नहीं हुई. ये देश की अकेली प्राइवेट रेल लाइन है.

इसका कारण क्या है, ये तो नहीं मालूम. “द बेटर इंडिया वेबसाइट” की एक स्टोरी के अनुसार इस रेलवे को शाकुंतलम रेलवे के नाम से जाना जाता है. ये देश की अकेली रेलवे लाइन है, जिसका मालिकाना हक कभी भारतीय सरकार के पास नहीं रहा.

1952 में देशभर में सभी रेलवे का सरकारीकरण हो गया था लेकिन ना जाने क्यों इसे छोड़ दिया गया. ये अकेली रेल लाइन थी, जो कभी सरकारी नहीं हुई. बल्कि इस रेलवे लाइन का इस्तेमाल करने के लिए भारतीय रेलवे ब्रिटिश कंपनी को हर साल 1.2 करोड़ रुपये देता है.

इस रेल लाइन पर अचलपुर से यवतमाल के बीच 190 किलोमीटर की दूरी एक एंटीक ट्रेन तय करती है. इसकी रफ्तार 20 किलोमीटर प्रतिघंटा होती है. इस ट्रेन को शांकुतलम एक्सप्रेस कहा जाता है.
देश के अधिकतर लोग शाकुंतलम रेलवे के बारे में शायद ही जानते होंगे. अचलपुर और यवतमान दोनों जगहें महाराष्ट्र में हैं. ये इलाका किसानों और ग्रामीणों का इलाका कहलाता है.

देश में 1910 के आसपास कई प्राइवेट रेलवे थे, जो अलग-अलग जोन में ट्रेन का संचालन करते थे. उसी दौर में 1910 में एक ब्रिटिश फर्म ने शाकुंतलम रेलवे की स्थापना की. इस ब्रिटिश फर्म का नाम क्लिक निक्सन था. इस प्राइवेट फर्म ने ब्रिटिश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में सेंट्रल प्रॉविंस रेलवे कंपनी बनाई. इसका रेलवे का मकसद विदर्भ के कॉटन को मुंबई तक पहुंचाना था. दरअसल यवतमाल के करीब मुर्तजापुर रेलवे स्टेशन से सीधी ट्रेनें मुंबई तक जाती हैं. जहां से कॉटन को इंग्लैंड में मैनचेस्टर भेजा जाता था. यहां रेल ट्रैक बिछने में छह साल लग गए. शुरू में तो यहां गुड्स ट्रेन चलाई गई फिर एक पैसेंजर ट्रेन भी चलने लगी.
पहले इस ट्रैक पर ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे (जीआईपीआर) ट्रेनें चलाता था. ये आजादी के बाद भारतीय रेलवे में तब्दील हो गया.

आज भी शाकुंतलम रेलवे का मालिकाना हक सेंट्रल प्रॉविंस रेलवे कंपनी (सीआरपीसी) के पास है. माना जाता है कि सरकार इसका राष्ट्रीयकरण करना भूल गई. सीआरपीसी की मालिक अब ब्रिटिश फर्म क्लिक-निक्सन ही है. हालांकि अब इस ब्रिटिश कंपनी की बागडोर भारतीय हाथों में आ चुकी है. इस रेल ट्रैक की मालिक यही कंपनी है.

1921 में मैनचेस्टर में बना एक जेडी-स्टीम इंजन पहले यहां की पैसेंजर ट्रेन को चलाता था. 1923 से 70 सालों तक भाप का इंजन ही इस लाइन पर पैसेंजर ट्रेन को चलाता रहा. 15 अगस्त 1993 को इसे डीजल इंजन से रिप्लेस कर दिया गया. लोग याद करते हैं कि स्टीम इंजन के दिनों में ट्रेन को लोग कहीं भी रोक लेते थे.

भुसावल डिवीजन में आता है ये इलाका
आज ये ट्रैक सेंट्रल रेलवे में भुसावल डिवीजन के तहत है लेकिन सीआरपीसी अब भी मुर्तजापुर-यवतमाल (113 किलोमीटर) और मुर्तजापुर-अचलपुर (76 किलोमीटर) रेलवे ट्रैक का मालिक है. इन दोनों सेक्शन पर सेंट्रल रेलवे अपने इस प्राइवेट पार्टनर को रॉयल्टी देता है. साथ ही इस ट्रैक को मेंटेन रखने का कांट्रैक्ट भी इसी कंपनी के पास रहता है. ये कांट्रैक्ट आजादी के बाद से छह बार नवीनीकृत हो चुका है.

हर बार जब भी कांट्रैक्ट रिन्यू होने का समय आता है तब लगता है कि ऐसा नहीं होगा. कई बार ये सुझाव भी आया कि रेलवे को इस लाइन को खरीद लेना चाहिए. हालांकि इस लाइन की जो हालत है, उसमें इसको अपग्रेड करने के लिए काफी मोटी पूंजी की जरूरत होगी

यहां गार्ड टिकट क्लर्क की भूमिका भी निभाते हैं
दिलचस्प बात ये है कि केवल देश का यही एक ऐसा ट्रैक ऐसा है, जहां गार्ड को दो तरह का काम करना होता है, वो टिकट क्लर्क की भी भूमिका निभाते हैं, क्योंकि इन दोनों रूट्स के ज्यादातर स्टेशनों पर कोई रेलवे स्टाफ नहीं है.
शाकुंतलम रेलवे लाइंस अब नैरो गेज लाइंस हैं. ये ट्रेन गरीब ग्रामीणों के लिए लाइफलाइन की तरह है, जो उनके गांवों से गुजरती है. कुछ समय पहले रेलवे मिनिस्टर सुरेश प्रभु ने यहां के ट्रैक को नैरो गेज़ से ब्राड गेज में बदलने के लिए 1500 करोड़ रुपये मंजूर किये थे. तो अब भविष्य में शाकुंतलम एक्सप्रेस ब्राड गेज पर चलेगी.