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छत्तीसगढ़ : महिला समूहों ने बदली पहचान, देशभर में ख्यात हुआ कांकेर का सीताफल

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मिट्टी कम उपजाऊ है, पानी की उपलब्धता भी कम है, लेकिन सीताफल के उत्पादन के लिए यहां एकदम अनुकूल है। बस इसी बात को ध्यान में रखकर कांकरे की महिलाओं ने सीताफल के बूते गरीबी को पछाड़ने के लिए कुछ वर्षों पहले ठानी। स्थानीय कृषि विभाग व प्रशासन से सहयोग मिला, जिसकी बदौलत आज कांकेर के लगभग 16 हजार परिवार का मुख्य व्यवसाय सीताफल बन गया है, जबकि कुछ वर्ष पहले प्रदेश का आदिवासी बहुल कांकेर जिला माओवाद प्रभावित बस्तर का एक हिस्सा माना जाता था।

अब इसकी पहचान बदल गई है, जो कि अब यह ऑर्गेनिक सीताफल के लिए जाना जाने लगा है। ये सब कर दिखाया है शीतल स्व सहायता समूह की महिलाओं ने, जो आज दो महीने में लगभग एक लाख रुपये तक की आय कर रही हैं, जबकि एक समय यही महिलाएं सिर्फ पांच हजार रुपये तक कमा रही थीं।

समूह से जुड़ीं कई महिलाएं

समूह की अध्यक्ष अहिल्या मंडावी ने बताया कि कांकेर जिला एक माओवादी इलाका है, जहां जंगलों में सीताफल के असंख्य पेड़ उगे हुए हैं, कुदरती तौर पर जंगलों में फलने वाले सीताफल की अब तक कोई पहचान नहीं थी। इसके कारण हम सभी महिलाएं सड़के के किनारे सीताफल कम दामो में बेचा करती थी।

इससे स्वयं को फायदा मिलने के बजाय कारोबारियों को अधिक फायदा होता था, क्योंकि वह अधिक दाम पर शहरों में सीता फल को बेचते थे। वहीं एक वर्कशॉप के दौरान कृषि विभाग के आत्मा योजना में जाना हुआ।

जहां पर सहायक तकनीकी प्रबंधक के माध्यम से सीताफल को तोड़ने, संग्रहण करने के साथ श्रेणीकरण के बारे में जानकारी दिया गया। बस यही से शुरू हुआ बेहतर प्रशिक्षण का दौर। जिसके बाद आज जिले में लगभग पांच हजार समूह तैयार हो गया है। जिससे कई महिलाएं जुड़ गई ।

8000 मीट्रिक टन की पैदावार

जिले में इस बर्ष लगभग 8000 मीट्रिक टन सीताफल उत्पादन होगा। जिसकी तैयारी में जिले के पांच हजार समूह की महिलाए जुट गई है। ज्ञात हो कि जिसे जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने ‘कांकेर वैली फ्रेश’ के नाम से ब्रांड तैयार कर समूहों के माध्यम से सीताफल संग्रहण, ग्रेडिंग, पैकेजिंग और वैल्यू एडिशन की योजना तैयार किया है। जिले के नरहरपुर, लिलवापहर, चारामा, अंतागढ़, कांकेर विकासखंडों में अधिक पैदावार होती है।

ऑर्गेनिक सीताफल

सीताफल का उत्पादन छत्तीसगढ़ के अन्य जिलों में भी होता है, लेकिन कांकेर जिले का यह सीताफल प्रसिद्घ है। इंदिरा गांधी कृषि विवि के कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीवन लाल नाग ने बताया कि यहां प्राकृतिक रूप से उत्पादित सीताफल के 3 लाख 19 हजार पौधे हैं। जिससे प्रतिवर्ष अक्टूबर से नवम्बर तक 6 हजार टन सीताफल का उत्पादन होता है।

यहां के सीताफल के पौधों में किसी भी प्रकार की रासायनिक खाद या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह पूरी तरह जैविक होता है। इसलिए यह ऑर्गेनिक सीताफल स्वादिष्ट होने के साथ पौष्टिक भी होता है।