नगर निगम के पुराने क्षेत्र में एक भी व्यक्ति पट्टे के लिए पात्र नहीं मिला है। ऐसे में निगम का अमला अब नए शामिल हुए ग्रामीण क्षेत्रों में फोकस कर रहा है। नए क्षेत्रों का कोई रिकॉर्ड निगम के पास नहीं है। इसके अलावा ज्यादातर लोग अधिक जमीन पर काबिज हैं, जबकि शासन के निर्देश केवल 700 वर्गफीट तक पट्टा देने का है। इसे लेकर भी क्षेत्र में जमकर विवाद हो रहा है।
निगम क्षेत्र में पट्टा के लिए सर्वे का काम नगर निगम को सौंप दिया गया है। जबकि जमीन का रिकॉर्ड राजस्व विभाग के पास होता है। इससे दुविधा यह है कि निगम को नहीं पता कि जिस जमीन का सर्वे वे कर रहे हैं वह राजस्व रिकॉर्ड में किस मद में दर्ज है। शासन वन भूमि या बड़े छोटे झाड़ के जंगल वाली जमीन का पट्टा नहीं दे सकता है। ऐसे में निगम का सपाट सर्वे अभी से संदिग्ध हो गया है।
इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर लोग अधिक जमीन पर सालों से काबिज हैं। जबकि शासन के निर्देशानुसार उन्हें केवल सात सौ वर्गफीट का ही पट्टा दिया जा सकता है। अब दिक्कत यह है कि कब्जाधारी की बाकी जमीन का क्या किया जाए।
रिकॉर्ड में वे अब भी अवैध कब्जाधारी के रूप में ही दर्ज रहेंगे। शासन की सिलिंग से दिक्कत खड़ी हो रही है। इधर राजस्व विभाग ने सर्वे से किनारा कर लिया है। इसके कारण समस्या बढ़ गई है। उल्लेखनीय है कि शासन ने 26 तारीख तक सर्वे करके पट्टा वितरण करने के निर्देश दिए हैं। जिससे आगामी नगरीय निकाय चुनाव में मदद मिल सके। इधर सर्वे की धीमी गति के कारण तय समय में काम होने को लेकर संदेह जताया जा रहा है।