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Sawan 2023 : 1857 के क्रांति स्थल से आशीर्वाद देते हैं बाबा औघड़नाथ, स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ यहीं से फूंका था बिगुल

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1857 स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ यहीं से फूंका था बिगुल

मेरठ:उत्तर प्रदेश के मेरठ में भक्ति की बयार बह रही है. सावन में यहां स्थिति बाबा औघड़नाथ के मंदिर (Baba Aughadnath Temple) में हर दिन हजारों की संख्या में शिव भक्त पूजा-अर्चना करने पहुंच रहे हैं.

इस मंदिर में स्थित शिव लिंग प्राचीन है. मंदिर के पुजारियों का दावा है कि जब देश अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग लड़ रहा था, तब से शिव लिंग यहां स्थित है. सन् 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत से पहले मेरठ के स्वतंत्रता सेनानियों ने यहां आकर बाबा भोलेनाथ का आशीर्वाद लिया था.

मंदिर से पुजारियों का दावा है कि अंग्रेजों के शासन में भोलेनाथ का शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था, जहां बाबा का शिव लिंग स्थापित है, वहां हिंदुस्तानी फौज आ कर अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति बनाती थी. मंदिर परिसर में आज भी वह कुआं मौजूद है, जहां स्वतंत्रता सेनानी पानी पीते थे. अंग्रेज भारतीय फौज को कालो की फौज यानी कि काली पलटन कहां करते थे. काली पलटन को अंग्रेजों के साथ उठने बैठने की अनुमति नहीं हुआ करती थी. ना ही खाने-पीने की अनुमति होती थी, ऐसे में काली पलटन शिवलिंग के पास स्थित कुएं में पानी पिया करते थे.

अंग्रेजों के खिलाफ फूंका था बिगुल

एक दिन जब मंदिर के पुजारी ने भारतीय लोगो की फौज को पानी पीने के लिए मना किया और कहा कि तुम जो कारतूस को इस्तेमाल करते हो वो गाय को चर्बी से बनती है. उसको मुंह से खोलते हो, इसलिए यहां पानी नहीं पी सकते. इसके बाद भारतीय की फौज ने 10 मई 1857 को आंदोलन कर दिया था, जो आज इतिहास के सुनहरे शब्दो में लिखा गया है.

बाबा औघड़नाथ मंदिर में विशेष पूजा की जाती है

हर साल शिवरात्रि पर बाबा औघड़नाथ मंदिर में विशेष पूजा की जाती है. बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए लाखों की संख्या में भक्त आते हैं. इस मंदिर की प्रसिद्धी दूर-दूर तक है. मंदिर के पुजारियों का दावा है कि जो भी श्रद्धालु बाबा भोलेनाथ का सच्चे मन से जलाभिषेक करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूरी होती है. श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के दृष्टिगत पुलिस यहां पर पुलिस की मौजूदगी रहती है. मंदिर में निगरानी के लिए 100 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं. यहां के लोग कावड़ लाकर सबसे पहले बाबा औघड़नाथ को जल अर्पित करते हैं.