Ujjain Mahakal Mandir : मध्य प्रदेश के उज्जैन में प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के दरबार में 10 मई तक चलने वाले महा रुद्राभिषेक…
आज रविवार (5 मई) से शुरू हो गई. इस महा रुद्राभिषेक को महाकालेश्वर मंदिर समिति द्वारा हर साल कराया जाता है. यह अनुष्ठान जनकल्याण और अच्छी वर्षा के लिए होता है. इसमें महाकालेश्वर मंदिर के पंडित और पुरोहित शामिल होते हैं.
महाकालेश्वर मंदिर में जनकल्याण हेतु सौमिक सुवृष्टि अग्निष्टोम सोमयाग अनुष्ठान किया जा रहा है. इसी तारतम्य में इस वर्ष जन कल्याण की भावना से 5 से 10 मई तक महाकालेश्वर मंदिर के शासकीय पुजारी घनश्याम शर्मा के आचार्यत्व में महारूद्राभिषेक का आयोजन किया गया है. महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी प्रदीप गुरु ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा हर साल की तरह इस साल भी छह दिवसीय महारुद्राभिषेक का अनुष्ठान किया गया है.
सुबह 11 बजे से 2 बजे तक होगा महारुद्राभिषेक
यह अनुष्ठान 5-10 मई तक से हर रोज सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे तक महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी और पुरोहितों के माध्यम से संपन्न किया जाएगा. इसमें कुल 22 ब्राह्मण सम्मिलित हुए हैं. महाकालेश्वर मंदिर के पुजारी राम शर्मा ने बताया कि महाकालेश्वर मंदिर में वातावरण की शुद्धि पूर्वक सुवृष्टि, पर्यावरण में संतुलन, सम्पूर्ण समाज के कल्याण और समृद्धि हेतु सोमयाग किया जा रहा है.
मंदिर प्रबंध समिति परिसर में हवनात्मक के साथ-साथ ही नंदी हाल में अभिषेकात्मक महारुद्राभिषेक का आयोजन किया गया है. इस दौरान भगवान महाकालेश्वर को सहस्त्र धाराओं से जल अर्पित किया जाएगा.
5000 साल पुरानी पद्धति से हो रहा सोमयाग
5000 वर्ष प्राचीन पद्धति से इस सोमयाग में महत्वपूर्ण सामग्री के रूप में उपयोग होने वाली वनस्पति सोमवल्ली जिसका सोमयाग में रस निकाल कर हवि रूप में प्रयोग किया जा रहा है. सोमवल्ली का चन्द्र कला के प्रभाव में घटना बढ़ना निर्धारित होता है. धरा पर यह सोमवल्ली देवलोक दिव्यलोक से आने की बात वेदों ने कही है. इसी वनस्पति सोमवल्ली के नाम पर इस याग का नाम सोमयाग है.
शास्त्रों वर्णन अनुसार, वसंत ऋतु में सोमयाग का आयोजन किया गया है, इसमें प्रयुक्त होने वाली वनस्पति सोमवल्ली सुर्दु पहाड़ों पर पाई जाती है. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ वनस्पति को वनों-पर्वतों से एकत्र कर सोमयाग के विहार स्थल पर बैलगाड़ी के नीचे इसको कूटकर रस निकाला गया है, अब इसी रस का उपयोग सोमयाग में हवि के रूप में किया जाएगा.