“नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को कहा कि देश में पेमेंट सिस्टम में क्रांति लाने वाला यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) हमेशा मुफ्त नहीं रह सकता।
उन्होंने संकेत दिया कि अंततः डिजिटल पेमेंट इन्फ्रास्ट्रक्चर चलाने की लागत उपयोगकर्ताओं पर डालनी पड़ सकती है। मल्होत्रा ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “यह अभी भी मुफ्त नहीं है, इसे कोई न कोई भुगतान कर रहा है। सरकार इसे सब्सिडी दे रही है, लेकिन कहीं न कहीं इसकी लागत चुकाई जा रही है।”
जब उनसे पूछा गया कि क्या मर्चेंट डिस्काउंट रेट (MDR) या इसी तरह के शुल्क उपभोक्ताओं पर लगाए जा सकते हैं, तो उन्होंने कहा, “लागत होती है और ये लागत किसी न किसी को चुकानी ही पड़ती है। यह महत्वपूर्ण है कि कौन भुगतान करता है, लेकिन इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि कोई तो बिल चुकाए।”
MDR वह शुल्क होता है जो भुगतान प्रोसेसिंग कंपनियां दुकानों और व्यवसायों से डिजिटल भुगतान स्वीकार करने पर लेती हैं। जनवरी 2020 से UPI ट्रांजेक्शंस को MDR से छूट मिली हुई है। RBI गवर्नर ने आगे कहा, “हमारे लिए और इसकी स्थिरता के लिए यह जरूरी है कि सामूहिक या व्यक्तिगत रूप से कोई इसके लिए भुगतान करे।” यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब कुछ निजी बैंक 1 अगस्त से UPI ट्रांजेक्शंस पर शुल्क लगाना शुरू कर चुके हैं।
ICICI बैंक ने फोनपे और गूगल पे पर शुल्क लगाना शुरू किया, जबकि यूपीआई से रोजाना 70 करोड़ लेनदेन हो रहे हैं वहीं दूसरी ओर, UPI) ने 2 अगस्त को एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। NPCI के आंकड़ों के अनुसार, एक ही दिन में UPI पर 700 मिलियन से अधिक ट्रांजेक्शन हुए, जो इस सिस्टम की मजबूती और लोकप्रियता को दर्शाता है। जुलाई 2025 में UPI ने 19.47 बिलियन ट्रांजेक्शन को संसाधित किया, जिनका मूल्य लगभग 25.1 लाख करोड़ रुपये था, जो पिछले साल के मुकाबले 35% अधिक है।
लेकिन इस खुशी के बीच, ICICI बैंक ने 1 अगस्त से पेमेंट एग्रीगेटर्स जैसे PhonePe और Google Pay से प्रति ट्रांजेक्शन शुल्क लेना शुरू कर दिया है। यह कदम UPI के निःशुल्क मॉडल की स्थिरता पर सवाल खड़ा करता है और डिजिटल भुगतान के भविष्य को लेकर नई बहस छेड़ता है।