नारियल के लिए दक्षिण भारत को प्रमुख केंद्र माना जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में स्थित भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा स्थापित प्रदर्शन सह बीज उत्पादन प्रक्षेत्र में (डीएसपी) देश के उन 11 प्रक्षेत्र में पहले नंबर पर शामिल है जहां सबसे ज्यादा नारियल का उत्पादन सालाना होता है। 100 एकड़ में फैले इस प्रक्षेत्र में 6000 नारियल के पेड़ लगे हुए हैं, जिसमें से वर्तमान में 4600 पेड़ों से सालाना 3 लाख से ज्यादा नारियल का उत्पादन हो रहा है। यहां होने वाले नारियल की खपत स्थानीय स्तर पर 60 प्रतिशत और शेष राज्य के अन्य इलाकों में भेजा जाता है।
18 प्रजातियों के पौधे हैं यहां
नारियल विकास बोर्ड के इस प्रक्षेत्र में नारियल के विभिन्न 18 प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं। जिसमें 70 फीसदी उत्पादन बौना नारियल,टॉल नारियल व संकर प्रजाति के पेड़ों से होता है। जिसकी बिक्री से तकरीबन एक करोड रुपए सालाना की आमदनी बोर्ड को होती है। यहां इंटर क्रॉप के रूप में आम,लीची, दालचीनी कोका, काली मिर्च भी उत्पादित होते हैं। इसकी देखरेख के लिए यहां वर्तमान में 25 अधिकारी- कर्मचारी तैनात हैं।
सालाना 50 हजार से ज्यादा पौधों तैयार
इस प्रक्षेत्र में सालाना 50000 से ज्यादा नारियल के पौधों को तैयार कर इसकी बिक्री किसानों को की जाती है, जिसमें सबसे ज्यादा निकटवर्ती राज्य ओडिशा को भेजा जाता है। वहीं विभिन्न योजनाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर किसानों को भी इसका वितरण समय-समय पर किया जाता है। जानकारी के मुताबिक नारियल का एक पौधा चार से पांच साल में फल देने लगता है जो 60 से 70 वर्ष तक लगातार फल देते रहता है।
आईसी कटियार, सहायक संचालक सीडीबी, डीएसपी: यह प्रक्षेत्र देश के 11 डीएसपी में उत्पादन के मामले में पहले नम्बर पर है। यहां से तकरीबन एक करोड़ की आमदनी बोर्ड को हो रही है।