चीन की ओर से नए वीजा प्रोगाम की शुरुआत की गई है। इसे K वीजा नाम दिया गया है, जिसकी तुलना अमेरिकी के एच-1बी वीजा से की जा रही है। चीन का मानना है कि इससे दुनिया भर की प्रतिभाओं को आकर्षित करने में मदद मिलेगी ताकि साइंस और टेक्नोलॉजी की दुनिया में वह तरक्की कर सके।
अमेरिका की ओर से एच-1बी वीजा फीस बढ़ने के बाद दुनिया भर के टैलेंट के लिए इसे उम्मीद की किरण के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि दोनों के बीच कोई संबंध नहीं है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा फीस बढ़ाने का फैसला करने से पहले ही चीन ने इस प्रोग्राम को लॉन्च कर दिया था।
अब अमेरिका का एच-1बी वीजा लेने के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर की रकम चुकानी होगी। भारतीय करेंसी के तौर पर देखें तो यह रकम 80 लाख के करीब होती है। ट्रंप के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर भारतीयों पर ही माना जा रहा है। अमेरिका के इस वीजा प्रोग्राम के तहत जाने वालों में 70 फीसदी भारतीय ही होते थे। चीनी K वीजा की आज से शुरुआत हो रही है। इसका ऐलान चीन ने 7 अगस्त को ही कर दिया था।
क्या है चीन के K वीजा का मकसद?
चीन की सरकार का उद्देश्य यह है कि दूसरे देशों से भी तकनीक और साइंस के क्षेत्र में महारत रखने वाली प्रतिभाओं को आकर्षित किया जाए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने कहा कि इस वीजा प्रोग्राम का उद्देश्य है कि साइंस, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित के मामले में नॉलेज एक्सचेंज को बढ़ावा मिले। हम चाहते हैं कि दूसरे देशों से आने वाली श्रेष्ठ प्रतिभाओं को भी मौका मिल सके। विदेशियों के लिए चीन को अधिक आकर्षित स्थान के तौर पर पेश करने के लिए यह कदम उठाया गया है। एक चीनी एक्सपर्ट ने कहा कि हम 1980 से लेकर 2010 तक बड़े पैमाने पर अपने टैलेंट को खो चुके हैं। अमेरिका जैसे देशों में चीनी प्रतिभाएं जाकर बस गई हैं।
उन्होंने कहा कि अब हमने कदम उठाया है कि लोकल टैलेंट को बनाए रखा जाए। इसके अलावा वैश्विक प्रतिभाओं को भी आकर्षित किया जाए। चीनी अधिकारियों ने कहा कि K वीजा प्रोग्राम दुनिया भर के मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों के ग्रैजुएट्स के लिए खुला रहेगा। इसके तहत लोगों को आवेदन करने में आसानी होगी। माना जा रहा है कि चीन की ओर से कोशिश है कि अमेरिका को तकनीक के मामले में टक्कर दी जाए और चीन को वैश्विक केंद्र के तौर पर पेश किया जाए। इसी रणनीति के तहत उसने ऐसा फैसला लिया है।