राजनांदगांव। राष्ट्रीय पेंशनर्स दिवस के अवसर पर छत्तीसगढ़ अधिकारी-कर्मचारी पेंशनर्स एसोसिएशन की जिला इकाई ने न्यू सिविल लाइन स्थित संघ कार्यालय (एच/51) में संगोष्ठी का आयोजन किया। इसमें पेंशन को सेवानिवृत्त कर्मचारियों का कानूनी अधिकार बताते हुए वर्तमान पेंशन व्यवस्था और भविष्य की चुनौतियों पर गंभीर मंथन किया गया।
एसोसिएशन के संरक्षक, विभागीय उप समिति के जिला संयोजक, जिला शाखा सचिव एवं दुर्ग संभाग के संभागीय अध्यक्ष आनंदकुमार श्रीवास्तव ने बताया कि 17 दिसंबर 1982 को सुप्रीम कोर्ट ने डीएस नकारा बनाम भारत सरकार प्रकरण में ऐतिहासिक फैसला देते हुए स्पष्ट किया था कि पेंशन कोई दया या कृपा नहीं, बल्कि सेवा अवधि में किए गए कार्यों के बदले एक वैधानिक अधिकार है। इसी फैसले की स्मृति में 17 दिसंबर को राष्ट्रीय पेंशनर्स दिवस मनाया जाता है।
संगोष्ठी में जीआर देवांगन, केपी सिंह और बीएल कडबे ने कहा कि पेंशन बुजुर्गों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा का आधार है। यह सरकार की मनमर्जी पर निर्भर नहीं, बल्कि कर्मचारियों के जीवनभर के योगदान का प्रतिफल है।
वक्ताओं ने पेंशन व्यवस्था के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इसकी अवधारणा यूरोप में शुरू हुई और भारत में औपनिवेशिक काल के दौरान लागू हुई। आजादी के बाद भारत ने कल्याणकारी राज्य के रूप में पेंशन को सामाजिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण साधन बनाया।
कार्यक्रम में नई पेंशन योजना (एनपीएस) को लेकर चिंता जताई गई। वक्ताओं ने कहा कि 2004 में पुरानी पेंशन योजना बंद कर एनपीएस लागू किए जाने से कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा कमजोर हुई। हाल में प्रस्तावित यूपीएस को भी पेंशनरों के हित में अपर्याप्त बताया गया।
संगोष्ठी में यह मुद्दा भी उठाया गया कि छत्तीसगढ़ में वर्क चार्ज व कंटीजेंसी कर्मचारियों को नियमित किए जाने के बावजूद उन्हें मात्र 7,500 रुपए पेंशन मिल रही है, जो आज के दौर में अपर्याप्त है। साथ ही बताया गया कि वर्ष 2036 तक देश में 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 22 करोड़ से ज्यादा हो जाएगी, जिनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए अभी से ठोस नीति बनाना जरूरी है।
संगोष्ठी के बाद फोरम ऑफ रिटायर्ड डिप्लोमा इंजीनियर्स छत्तीसगढ़ की ओर से पेंशनर्स हित में केंद्रीय आठवें वेतन आयोग की संभावित विसंगतियों को लेकर प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के नाम ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा गया।



