Home समाचार क्या सोनिया गांधी फिर किसी को बनाएंगी राजनीतिक सलाहकार

क्या सोनिया गांधी फिर किसी को बनाएंगी राजनीतिक सलाहकार

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कांग्रेस अध्यक्ष की कमान सोनिया गांधी के हाथ में आते ही चुनौतियां उनका इंतजार कर रही हैं। जिम्मेदारी मिलने के दो दिनों में फिलहाल सोनिया गांधी ने पार्टी के किसी भी नेता को मिलने का समय नहीं दिया है। ऐसे में इस बात के कयास फिर लगाए जा रहे हैं कि क्या पार्टी को ढर्रे में लाने और बदले राजनीतिक वातावरण में खुद को साबित करने के लिए उन्हें किसी राजनीतिक सलाहकार की आवश्यकता होगी। राहुल गांधी ने सोनिया के सलाहकार रहे अहमद पटेल को पार्टी का कोषाध्यक्ष बना दिया। पार्टी इस समय नए-पुराने नेताओं के बीच मचे घमासान से गुजर रही है। 
कार्यसमिति ने सोनिया को नए अध्यक्ष के चुनाव कराने तक अंतरिम अध्यक्ष पद संभालने के लिए मनाया है लेकिन सूत्रों की मानें तो नए अध्यक्ष का चुनाव कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा। इसलिए सोनिया गांधी के सामने सबसे पहली चुनौती चुनावी राज्यों में संगठन में मचे घमासान को ठीक करना है। 

झारखंड के प्रदेश अध्यक्ष डा. अजोय कुमार ने पार्टी नेताओं पर भ्रष्टाचार और समझौतों का आरोप लगाकर इस्तीफा दिया है। पूर्व आईपीएस अधिकारी अजोय कुमार को नवंबर 2017 में अध्यक्ष बनाकर भेजा गया था लेकिन वहां पुराने नेता सुबोध कांत सहाय ने उन्हें जमने नहीं दिया। अजोय कुमार ने राहुल गांधी को इस्तीफा भेजा था लेकिन उस पर जल्द फैसला सोनिया गांधी को लेना होगा।

दिल्ली और हरियाणा में भी विधानसभा चुनाव हैं। दिल्ली की अध्यक्ष रहीं शीला दीक्षित के निधन के बाद पार्टी ये जिम्मेदारी जल्द सौंपी जानी हैं। शीला के साथ काम कर रहे तीन कार्यकारी अध्यक्ष भी दावेदार हैं और वे नेता भी जिन्हें शीला विरोधी कैंप का माना जाता है। हरियाणा में अशोक तंवर अध्यक्ष हैं लेकिन उन्हें हटाने का अभियान तीन सालों से चल रहा है और पार्टी में घमासान का कारण वहां जमीन पर संगठन न होना है। तंवर लाख कोशिशों के बाद हरियाणा में पांच सालों में निचले स्तर पर पदाधिकारी नहीं बना सके हैं। 

सोनिया के पास जिम्मेदारी आने के बाद यूपी को लेकर पार्टी की सक्रियता पर सवाल उठेंगे। यूपी वे अकेली सांसद हैं और महासचिव बेटी प्रियंका पूर्वी यूपी की प्रभारी हैं। अध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी का छोटे-छोटे राज्यों में भी अध्यक्ष के साथ कुछ कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का फार्मूला लागू हो गया है लेकिन सबसे बड़े राज्यों में अध्यक्ष को लेकर भी अभी तक फैसला नहीं हो सका है। 

कांग्रेस कार्यसमिति ने सोनिया गांधी को अपने हिसाब से राष्ट्रीय कार्यकारिणी में फेरबदल का अधिकार दिया है लेकिन जिस तरह पार्टी के भीतर नए-पुराने नेताओं के बीच मतभेद उभरे हैं उसका संतुलन बनाना भी बड़ी चुनौती है।