आज हम बात करने जा रहे हैं मंदिरों के शहर काशी की, जहां की हवा और लोग दोनों ही निराले हैं। हो भी क्यूं न, महादेव के भक्त जो ठहरे। महादेव की नगरी में विचरण करना भी अपने आप में एक खास अनुभव है, जिसे दुनिया के हर इंसान को लेना चाहिए।
इस शहर में लोग अपनी सुबह की शुरुआत गंगा में डुबकी लगाने और फिर मंदिरों में दर्शन के साथ करते हैं। इसके बाद सुबह 08:00 बजे के पहले कचौड़ी और जलेबी का नास्ता भी हो जाता है। अब आप सोच रहे होंगे, इतनी सुबह… तो इस लेख के शुरुआत में लिखा है कि ये निरालों का शहर है। अतरंगी व मस्तमौला स्वभाव वाला ये शहर किसी को भी अपना बना लेता है, यहां देश के हर वर्ग, हर जाति व हर धर्म के लोग आपको मिल जाएंगे, जो बड़े ही प्यार और सौहार्द के साथ रहते हैं।
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हिंदु के अलावा बौद्ध व जैन धर्म के लिए भी विशेष
वाराणसी को मंदिरों का भी शहर कहा जाता है, यहां कई प्रसिद्ध मंदिर है, जहां दूर-दूर से भक्त अपना शीष नवाने आते हैं। लेकिन काफी कम ही लोगों को पता है कि हिंदु धर्म के अलावा काशी बौद्ध व जैन धर्म के लिए भी काफी पवित्र शहर माना जाता है। काशी के सारनाथ में महात्मा बुद्ध ने पहली बार अपने पांच शिष्यों को ज्ञान दिया था, जिसके बाद ही वे पांचों अनुयायी देश-विदेश में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए निकले। इसके अलावा वाराणसी के भेलुपूर इलाके में जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का जन्मस्थान है।
महादेव के त्रिशुल पर टिकी है काशी
इस शहर को लेकर कहा जाता है कि इस शहर के कण-कण में शंकर है। शिव नगरी के नाम से प्रसिद्ध इस शहर को लेकर कहा जाता है कि ये महादेव के त्रिशुल पर टिकी हुई है। पुराणों में वाराणसी को ब्रह्माण्ड का केंद्र भी बताया गया है। इस शहर को घाटों का शहर भी कहा जाता है। यहां कुल मिलाकर 88 घाट है। घाट के किनारे चंद्राकार में बसी काशी के बारे में कहा जाता है कि जब मराठों का शासन चल रहा था, तब वाराणसी के अधिकांश घाटों का पुनर्निर्माण करवाया गया था।
काशी में मरना भी सौभाग्य की बात
काशी को लेकर मान्यता है कि इस नगरी में मरना पसंद करते हैं। यानी कि अधिकतर लोगों की अंतिम इच्छा यही रहती है कि वे आखिरी सांस काशी में ही ले या फिर उनका अंतिम संस्कार काशी में ही हो। ऐसा माना जाता है कि इस शहर में जिनका अंतिम संस्कार किया जाता है, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसीलिए काशी को मुक्ति स्थल के नाम से भी जाना जाता है। यहां के दो प्रसिद्ध घाट है, जहां अंतिम संस्कार की क्रिया सम्पन्न की जाती है- मणिकर्णिका घाट व हरिश्चंद्र घाट।
मणिकर्णिका घाट व हरिश्चंद्र घाट को लेकर मान्यता
काशी के मणिकर्णिका घाट को लेकर कहा जाता है कि यहां की अग्नि कभी ठण्डी नहीं होती है, यहां हमेशा कोई न कोई शव जलता ही रहता है। काशी के लोगों का ऐसा मानना है कि जिस दिन इस घाट की अग्नि ठण्डी होगी, उस दिन दुनिया का विनाश हो जाएगा, दुनिया में प्रलय आ जाएगी। वहीं, हरिश्चंद्र घाट का इतिहास राजा हरिश्चंद्र से जुड़ा हुआ है, जिन्होंने अपने बेटे रोहित को इसी घाट पर जलाया था। काशी में होली के दिन दोनों घाटों पर काफी भीड़ होती है, इतनी भीड़ कि पैर रखने की जगह तक नहीं और इस दिन भस्म (शव के राख) से होली खेली जाती है। इसीलिए काशी को अड़भंगियों का शहर और यहां के लोगों को अड़भंगी या मस्तमौला भी कहा जाता है।
आरती के लिए भी प्रसिद्ध है वाराणसी
वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर हर शाम आरती का आयोजन होता है, जो गर्मियों में शाम 07:00 बजे और सर्दियों के मौसम में शाम 05:30 बजे आयोजित की जाती है। इस आरती में आज तक कई दिग्गज भी शामिल हो चुके हैं। वाराणसी की आरती देखने के लिए देश के प्रधानमंत्री से लेकर विदेशी नेता भी यहां आ चुके हैं। आरती के समय घाट पर तो भीड़ होती ही है, इसके अलावा नावों पर सवार पर्यटक इस आरती का आनंद लेते हैं, जो बेहद अनोखी और सुंदर लगती है। इसके अलावा अस्सी घाट पर सुबह 04:00 बजे सुबह-ए-बनारस व शाम में आरती का आयोजन किया जाता है, जिसे देखने वालों के लिए लोग काफी जद्दोजहद करते नजर आते हैं।
मंदिरों का शहर है काशी
काशी मंदिरों का शहर कहा जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर पूरे विश्व में प्रसिद्ध वाराणसी में कई प्रसिद्ध मंदिर है, इनमें संकट मोचन मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, दुर्गाकुण्ड मंदिर, काल भैरव मंदिर (काशी कोतवाल), शीतला मंदिर व मारकण्डेय महादेव मंदिर इत्यादि शामिल है। इसके अलावा भी काशी में हजारों मंदिर है, जिनकी अपनी प्रसिद्धी है। काफी कम ही लोगों को पता होगा कि बनारस में काशी विश्वनाथ का दूसरा मंदिर भी है, जिसे नया काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) परिसर में स्थित है, जो अपनी सुंदरता और ऊंचाई के लिए जाना जाता है।
काशी के व्यंजन
काशी एक ऐसा शहर है, जहां के लोग सभी व्यंजन खाना पसंद करते हैं। कुछ लोगों की शुरुआत कचौड़ी-जलेबी के साथ तो कुछ की इडली व बाड़ा के साथ होती है। उत्तर भारतीय खाने के साथ-साथ यहां के लोगों को दक्षिण भारतीय खाना खाते हुए भी आप देख सकते हैं। इसके अलावा यहां के लोगों को ढोकला भी काफी पसंद आता है। वैसे देखा जाए तो शाम में ये चाट-गोलगप्पे खाना खूब पसंद करते हैं। मुख्यत: यहां के लोगों को दाल-चावल, बाटी-चोखा व रोटी-सब्जी खाना खूब भांता है। वैसे सर्दी के मौसम की बात की जाए तो यहां मलईयो नाम की एक डिश मिलती है, जो दूध व केसर से मिलकर बनी होती है। ये डिश सिर्फ ठण्ड के मौसम में ही आपको मिलेगी और वो भी सिर्फ बनारस में, जिसका स्वाद लेने के लिए काफी दूर-दूर से लोग आते हैं।
अध्ययन का भी केंद्र है काशी
वैसे देखा जाए तो काशी शुरू से ही अध्ययन का भी केंद्र रहा है। इस शहर में मुख्य रूप से चार विश्वविद्यालय है, जिनमें बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (केंद्रीय विश्वविद्यालय), महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइयर टिबेटियन स्टडीज व संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय शामिल है। इसके अलावा भी काफी इंस्टीट्यूट है, जहां उच्च स्तर की पढ़ाई की जा सकती है। इसके अलावा काशी पूरे पूर्वांचल का मुख्य केंद्र माना जाता है।
काशी का मौसम
काशी का मौसम की बात की जाए तो सर्दी का मौसम घूमने के लिए काफी अच्छा है। लेकिन आप जिस भी मौसम में यहां आएंगे आपको एक अलग ही अनुभूति होती है। गर्मी की शाम हो या जाड़े की रात, यहां के लोग दोनों को बखूबी इंजॉय करना जानते हैं। गर्मी के मौसम में यहां का तापमान 45 डिग्री के आसपास चला जाता है और सर्दी के दिनों में यहां का तापमान 8 के आसपास चला आता है। यहां बारिश के मौसम में भी आप काफी एंजॉय कर सकते हैं। यहां के घाटों पर साल के हर मौसम में आप मस्ती कर सकते हैं।
वाराणसी पहुंचने के लिए यातायात की व्यवस्था
वाराणसी या काशी जाने के लिए अगर आप सोच रहे हैं तो आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं है। इस शहर यातायात की व्यवस्था काफी अच्छी है। इस शहर में आपको एक एयरपोर्ट, 8 रेलवे स्टेशन व एक बस स्टैण्ड है। यहां का मुख्य रेलवे स्टेशन कैण्ट रेलवे स्टेशन (वाराणसी जंक्शन) है और उसी के सामने बस स्टैण्ड भी है….