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नापी जा सकती है ब्रह्माण्ड के विस्तार की रफ्तार, भारतीय वैज्ञानिकों ने बताया

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सौ साल होने के आ रहे हैं, हमारे वैज्ञानिकों और खगोविदों को यह जाने हुए कि ब्रह्माण्ड फैल रहा है. 1929 मं सबसे पहले यह पता चला था कि गैलेक्सी हमसे दूर जा रही हैं. पता चला कि कि ब्र्ह्माण्ड का ही विस्तार हो रहा है.

लेकिन विस्तार की गति पर किसी तरह का ठोस जवाब नहीं मिला क्योंकि विभिन्न पद्धतियां से अलग-अलग जवाब मिले. विस्तार की गति लंब समय तक पहेली ही बनी रही. वहीं 25 साल पहले यह साफ हुआ कि ब्रह्माण्ड का विस्तार त्वरित गति से हो रहा है यानि विस्तार की रफ्तार बढ़ती ही जा रही है. भारतीय वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने विस्तार के मापन के लिए समाधान सुझाया है.

क्या है मापन का आधार

अब भारतीय वैज्ञानक शौविक जना की अगुआई में बेंगलुरू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरिटिकलसाइंसेस (आईसीटीएस) के वैज्ञानिकों ने फिजिकल रीव्यू लैटर्स में प्रकाशित होने जा रहे शोध में ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति का मापन संभव बताया है जिसका आधार गुरुत्व तरंगें हैं. गुरुत्व तरंगों के अस्तित्व की पुष्टि साल 2015 में ही हुई है जब उन्हें पहली बार अवलोकित किया जदा सका था.

ब्लैक होल और गुरुत्व तरंगें

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस बात पर ध्यान दिया कि गुरुत्व कैसे गुरुत्व तरंगों को प्रभावित करती हैं. इस बारे में आईसीटीएस ने बताया कि जब ब्लैक होल के जोड़ों का विलय होता है, तब उनसे गुरुत्व तरंगें निकलती हैं. जब ये गुरुत्व तरंगें पृथ्वी पर पहुंचती हैं तो एक किलोमीटर लंबे डिटेक्टर इनका अध्ययन करने में वैज्ञानिकों की मदद करते हैं जिससे वैज्ञानिकों को ब्लैक होल के जोड़े या नतीजे में बने नए ब्लैक होल की विशेषताओं का पता चलता है.

ग्रैविटेशनल लेंसिंग और तरंगें

पृथ्वी और इन ब्लैक होल के बीच रास्ते में स्थित गैलेक्सी के कारण रास्ते से गुजरने वाली इन तरंगें बार बार मिलना ग्रैविटेशनल लेंसिंग की परिघटना का होना बताता है. अध्ययन के सहलेखक परमेश्वरन अजित का कहना है कि टीम ने ग्रैविटेशनल लेंसिंग के प्रकाश को एक सदी से अवलोकित किया और आने वाले सालों में लेंस वाली गुरत्व तरंगों का पहला अवलकोन करने का अवसर मिल सकता है.

ब्रह्माण्ड के विस्तार के बारे में ग्रैविटेशनल लेंसिंग और गुरुत्व तरंगों से मदद मिल सकती है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Shutterstock)

उन्नत डिटेक्टर का फायदा

अगले दो दशकों में वैज्ञानिक उन्नत गुरुत्व तरंगों के डिटेक्टर पर काम करना शुरू कर देंगे. जिससे विलय करने वाले ब्लैक होल की खोज में तेजीआएगी ये उन्नत डिटेक्टर वर्तमान की तुलना में और ज्यादा दूरी तक की तरंगों को पकड़ सकेंगे. खगोलविदों का मानना है कि उन्नत डिटेक्टर कुछ करोड़ ब्लैक होल विलयों के संकेतों को रिकॉर्ड कर सकेंगे जिनमें से करीब दस हजार ब्लैक होल ऐसे होंगे जो ग्रैविटेशनल लेंसिंग की वजह से एक से ज्यादा बार दिखाई देंगे.

कैसे मापन होगा

टीम ने दर्शाया कि इन डिटेक्टर से इन बार बार दिखने वाले ब्लैक होल की गिनती करने और उनका बीच के समय के अंतर का अध्ययन करके हम ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर का पता लगा सकते हैं. उनकी अगले दो दशकों में और अधिक आंकड़ों के आने से ब्रह्माण्ड के विस्तार की दर सटीक तौर पर पता चल सकेगा. टीम का कहना है कि इसके लिए रास्ते में आने वाली गैलेक्सी की विशेषताओं को जानने की जरूरत नहीं है.

इस मामले में ग्रैविटेशनल लेंसिंग प्रकाश की नहीं बल्कि गुरुत्व तरंगों की काम आएगी. (प्रतीकात्मक तस्वीर: Wikimedia Commons)

केवल यही जानना काफी

टीम का कहना है कि इसके लिए रास्ते में आने वाली गैलेक्सी की विशेषताओं को जानने की जरूरत नहीं है जिनके रास्ते में आने की वजह से तरंगों की बहुलप्रतियां बन रहीं हैं. इतना ही नहीं गैलेक्सी और ब्लैक होल के जोड़े के बीच की दूरी का भी कोई लेना देना नहीं बल्कि केवलयही जानना काफी होगा कि कौन सी तरंगें लेंसिंग के प्रभाव में हैं. फिलहाल वैज्ञानिक दोहराव वाले संकेतों की पहचान करने के तरीके खोज रहे हैं.

ग्रैविटेशनल लेंसिंग की पद्धति फिलहाल केवल प्रकाशीय या विद्युतचुंबकीय तरंगों पर ही लागू की जा रही है जिससे सुदूर छिपी हुई गैलेक्सी की पहचान करने के अलावा मध्यम या छोटे आकार के ब्लैक होल तक की खोज की जा सकती है. इसके लिए मूल पिंड का बहुत ज्यादा होना दूर होना जरूरी है और यह शर्त ब्लैक होल के लिए बहुत मुफीद है. शोधकर्ताओं का कहना है कि भविष्य में लेंस वाली गुरुत्व तरंगों से डार्क मैटर के अध्ययन में मदद मिल सकती है.