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क्या केसीआर की राह पर हैं केजरीवाल? राहुल गांधी पर हमले के क्या हैं सियासी मायने

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बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी एकजुटता को लेकर बैठक से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी पर हमला बोला है.

केजरीवाल ने आरोप लगाया है कि दिल्ली में अध्यादेश को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राहुल गांधी के बीच डील हो गई है.

पटना की बैठक से ठीक पहले केजरीवाल ने बयान जारी कर दावा किया है कि डील के मुताबिक कांग्रेस दिल्ली से संबंधित विधेयक पर मतदान के दौरान राज्यसभा से वॉकआउट करेगी. नीतीश कुमार के आवास पर विपक्षी बैठक से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल के राहुल गांधी पर वार के सियासी मायने तलाशने जाने लगे हैं.

राहुल पर केजरीवाल के वार के मायने क्या हैं

राहुल गांधी पटना रवाना होने से कुछ घंटे पहले ही अमेरिका से स्वदेश लौटे थे. राहुल गांधी के स्वदेश लौटते ही केजरीवाल के सीधा हमला बोल देने को दबाव बनाने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश के विरोध में समर्थन जुटाने के लिए अलग-अलग दलों के नेताओं से मुलाकात की थी.

केजरीवाल ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ ही राहुल गांधी से भी मुलाकात के लिए वक्त मांगा था. केजरीवाल को अब तक कांग्रेस नेताओं की ओर से मुलाकात के लिए वक्त भी नहीं मिल पाया है. नीतीश कुमार की पहल पर हो रही बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी शामिल होना था और राहुल गांधी को भी.

अरविंद केजरीवाल के बयान को उनकी इस रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है कि दूसरी पार्टियां कांग्रेस पर अध्यादेश को लेकर नरम रुख अपनाने के लिए दबाव बनाएं. केजरीवाल ने इसी रणनीति के तहत एक दिन पहले भी बैठक से वॉकआउट करने की चेतावनी देते हुए कांग्रेस को अध्यादेश पर अपना रुख साफ करने का अल्टीमेटम दिया था.

AAP और अरविंद केजरीवाल के सामने क्या हैं विकल्प?

अरविंद केजरीवाल का पहले अल्टीमेटम और अब राहुल गांधी पर सीधा वार, अध्यादेश को लेकर प्रेशर पॉलिटिक्स के साथ ही भविष्य की राजनीति से जोड़कर भी देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि अरविंद केजरीवाल पटना की बैठक में भाग ले रहे हैं और इसलिए वे चाहते हैं कि अन्य विपक्षी दल कांग्रेस पर अपना रुख नरम करने के लिए दबाव बनाएं. अरविंद केजरीवाल अगर ऐसा करने में विफल रहते हैं तो उनके पास तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव के नेतृत्व वाली भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की तरह अकेले चुनाव लड़ने का विकल्प मौजूद रहेगा.

अरविंद केजरीवाल की पार्टी के अकेले चुनाव लड़ने का सीधा मतलब होगा कि वे बीजेपी के साथ ही कांग्रेस पर भी हमला बोलेंगे. आम आदमी पार्टी की सांगठनिक ताकत को अलग-अलग राज्यों में फैलाएंगे. विपक्षी एकजुटता के लिए पटना की बैठक से कुछ दिन पहले ही राजस्थान के श्रीगंगानगर की रैली में केजरीवाल ने कांग्रेस पर सीधा हमला बोला भी था.

महत्वाकांक्षा के लिए आना चाहते हैं गठबंधन से बाहर?

अरविंद केजरीवाल के इस तरह के तेवर के पीछे उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को भी एक फैक्टर माना जा रहा है. अरविंद केजरीवाल की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा जगजाहिर है. ऐसे में सवाल ये भी है कि क्या वे अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा के लिए विपक्षी गठबंधन से जल्दी बाहर निकलना चाहते हैं? आम आदमी पार्टी इस समय अलग-अलग राज्यों में विस्तार पर फोकस कर रही है.

आम आदमी पार्टी पहले ही घोषणा कर चुकी है कि वह इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारेगी. लोकसभा चुनाव को लेकर भी आम आदमी पार्टी का प्लान बड़ा है. पार्टी विपक्षी एकजुटता की स्थिति में भी दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है.

दूसरी तरफ, इन तीनों ही राज्यों की कांग्रेस कमेटी केजरीवाल की पार्टी के लिए सीटें छोड़ने को तैयार नहीं. ऐसे में एक पहलू ये भी है कि आम आदमी पार्टी अगर एकजुट विपक्ष की छतरी तले रहना केजरीवाल की राजनीतिक महत्वाकांक्षा के विपरीत होगा. उस स्थिति में केजरीवाल के पास अकेले चुनाव मैदान में उतरने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होगा. केजरीवाल की पार्टी का विपक्षी एकता में शामिल रहना तभी संभव है जब कांग्रेस का रुख नरम हो जो अभी संभव नजर नहीं आ रहा है.