पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान एक बार फिर जंग के मुहाने पर खड़े हैं. भारत ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वह इस हमले के गुनहगारों और साजिशकर्ताओं को किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेगा. इसका असर दिखने लगा है. दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आने लगी है. इस बीच अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी सक्रिय हो गया है. इसमें सबसे अहम भूमिका चीन की है. चीन ने पहलगाम हमले की न्यूट्रल जांच करने की पाकिस्तान की मांग का समर्थन कर एक तरह से इस मुद्दे पर भारत से दूरी बना ली है. यह एक तरह से चीन का पाकिस्तान को खुला समर्थन है.
चीन और पाकिस्तान संबंधों के इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे तो 1950 के दशक में दोनों देशों के रिश्ते में गर्माहट की शुरुआत हुई. उस वक्त दोनों देशों ने औपचारिक कूटनीतिक संबंध स्थापित किए. 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह दोस्ती और मजबूत हुई, क्योंकि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ चीन को एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखा. बदले में चीन ने पाकिस्तान को सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक सहायता प्रदान की. खासकर कश्मीर मुद्दे पर उसे चीन का समर्थन मिला. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीन ने बार-बार कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन किया. वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद भी चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया.