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CG: छत्तीसगढ़ बीजेपी ने नया दांव, साय सरकार ने नए चेहरों को तवज्जो देकर दिग्गजों को दरकिनार कर दिया, ऐसे में अब सामंजस्य बिठाना चुनौती है ..

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CG: छत्तीसगढ़ बीजेपी ने नया दांव, साय सरकार ने नए चेहरों को तवज्जो देकर दिग्गजों को दरकिनार कर दिया, ऐसे में अब सामंजस्य बिठाना चुनौती है ..

भाजपा ने नए चेहरों को मुख्यमंत्री बनाया था। मंत्रिमंडल विस्तार के बाद नाराज नेताओं को मनाकर और उनसे सामंजस्य बिठाकर काम करना जरूरी होगा।
बुधवार को राजभवन में तीनों नए मंत्रियों के शपथ समारोह के दौरान कई सीनियर नेताओं के चेहरे पर नाराजगी साफ तौर पर झलक रही थी। कई नेता तो अपने सीनियर साथी नेताओं के साथ दबी जुबान से नाराजगी व्यक्त करते दिखे।
समारोह में कई कुछ नाराज चल रहे सीनियर नेता भी शामिल नहीं हुए।

समारोह में भाजपा के वरिष्ठ विधायक अजय चंद्राकर, धरमलाल कौशिक, विक्रम उसेंडी, रेणुका ङ्क्षसह, लता उसेंडी, धर्मजीत सिंह शामिल नहीं हुए। अजय चंद्राकर राजभवन गए, पर शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए। राजभवन जाकर वे अपने क्षेत्र के लिए निकल गए। धरमलाल कौशिक बुधवार की सुबह ही दिल्ली रवाना हुए, जिसके चलते वे नहीं पहुंचे। लता उसेंडी अरुणाचल प्रदेश दौरे पर हैं।

विक्रम उसेंडी, धर्मजीत सिंह रायपुर में ही थे पर वे शपथ ग्रहण समारोह में नहीं गए।रेणुका सिंह भी रायपुर में थीं पर नहीं गई। नए मंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में वरिष्ठ विधायक अमर अग्रवाल, राजेश मूणत पहुंचे थे। कुछ नए विधायक जो मंत्री बनने की दौड़ में शामिल थे, वे भी समारोह में नजर नहीं आए। वहीं, कई सीनियर और जूनियर विधायकों के समारोह में शामिल होने पर भाजपा विधायक दल के सचेतक सुशांत शुक्ला ने कहा कि सूचना के अभाव के कारण कई विधायक नहीं आ पाए।

भाजपा भले ही नए चेहरों और युवा चेहरों के साथ प्रदेश की राजनीति को नई दिशा देने का रोडमैप तैयार कर रही है, लेकिन नाराज नेताओं को साधना अब भाजपा के लिए चुनौती बन गई है। क्योंकि प्रदेश में सीनियर नेताओं का अपना जनाधार है। क्या नए मंत्री और नई टीम सीनियर नेताओं की गढ़ में सेंध लगा पाएंगे। भाजपा में अब दो गुट, एक नए नेताओं का और दूसरा सीनियर नेताओं का है। प्रदेश में भाजपा 15 साल तक सत्ता में रही है। उस दौरान 15 साल तक कई नेता बड़े मंत्री और विधायक रहे। इन 15 वर्षों में इन नेताओं ने न सिर्फ अपनी विधानसभा, बल्कि प्रदेश में भाजपा के चेहरे के रूप में स्थापित हुए।

राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अब भाजपा के सामने नई चुनौती है। पुराने नेता जो सरकार में न तो मंत्री बनाए गए हैं और न ही प्रदेश कार्यकारिणी में जगह दी गई है, उनकी नाराजगी को कैसे दूर किया जाए। यदि समय रहते सीनियर नेताओं की नाराजगी दूर नहीं हुई तो भाजपा को कुछ सियासी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि पुराने नेताओं का न सिर्फ उनके विधानसभा क्षेत्र में, बल्कि प्रदेश में भी एक अलग जनाधार है। भाजपा के सामने अब सीनियर नेताओं के गढ़ में नए नेताओं को किस तरह से आगे बढ़ाना है, इसे लेकर भी चुनौती है। बहरहाल, भाजपा जमीन से लेकर सत्ता-संगठन की मजबूती के लिए पहचानी जाती है। जरूर कोई न कोई इसका भी रोडमैप तैयार किया होगा। जो आने वाले वक्त पर दिखेगा। वहीं, 2028 के चुनाव को लेकर भाजपा सियासी जमीन मजबूत करने का प्रयास कर रही है।