आखिरकार बर्फ पिघल गई है. करीब दो महीने के टेंशन के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पीएम नरेंद्र मोदी के साथ संबंधों की प्रशंसा करते हुए एक सकारात्मक कदम उठाया है. भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ को लेकर बीते कुछ समय से तल्खी है. अमेरिका ने भारत पर 50 फीसदी टैरिफ लगाए हैं. अमेरिका ने भारत पर यूक्रेन युद्ध में रूस को फंडिंग करने का आरोप लगाया है. अब ट्रंप के बदले तेवर पर पीएम मोदी भी ने तुरंत ट्रंप के शब्दों का जवाब दिया. तो क्या ट्रंप और मोदी फिर से दोस्त बनेंगे? क्या आखिरकार फोन कॉल होगी? वे अगली बार कहां मिलेंगे? और क्या सेकेंडरी टैरिफ बने रहेंगे या व्यापार समझौता होगा?
लंबे समय तक कूटनीतिक तनाव के बाद ट्रंप ने अब कहा, ‘मैं हमेशा मोदी का दोस्त रहूंगा. वह महान हैं. भारत और अमेरिका का विशेष संबंध है. चिंता की कोई बात नहीं है. मुझे नहीं लगता कि हमने भारत को खो दिया है.’ लेकिन ट्रंप ने आलोचना भी की जब उन्होंने कहा, ‘मोदी इस समय जो कर रहे हैं, मुझे बस यह पसंद नहीं है.’ डोनाल्ड ट्रंप का यह संदर्भ भारत के लगातार रूसी तेल खरीदने से है.
हालांकि, मोदी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए सोशल मीडिया पर ट्रंप को जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘मैं राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों की सकारात्मक मूल्यांकन की पूरी तरह से सराहना करता हूं.’ ये मोदी के हाल के महीनों में ट्रंप पर पहली टिप्पणी थी. 17 जून की तनावपूर्ण फोन कॉल के बाद यह दोनों नेताओं के बीच किसी प्रकार की संचार का पहला आदान-प्रदान भी है. मोदी ने अब कहा कि भारत और अमेरिका का बहुत सकारात्मक और भविष्य-दृष्टि वाला व्यापक और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है.
क्या फोन कॉल और मुलाकात से बनेगी बात?
तो अब सवाल है कि आगे क्या? क्या दोनों नेता इस नई-नई फिर से बनी दोस्ती को फोन कॉल और द्विपक्षीय मुलाकात के जरिए आगे बढ़ाएंगे? क्या भारत सचमुच ट्रंप पर भरोसा कर सकता है, क्योंकि वो अपनी तारीफ और निंदा में लगातार दो-दो हाथ करने के लिए बदनाम हैं?
पीएम मोदी और ट्रंप के बीच फोन पर बातचीत काफी समय से लंबित है. 17 जून को हुई दोनों के बीच आखिरी बातचीत हुई थी. यह आखिरी बातचीत अच्छी नहीं रही क्योंकि मोदी ने जोर देकर कहा था कि भारत-पाकिस्तान सीजफायर में ट्रंप की कोई भूमिका नहीं है, जबकि ट्रंप अपने दावों पर अड़े रहे. कनाडा से लौटते समय पीएम मोदी को ट्रंप ने अमेरिका में रुकने का प्रस्ताव भी दिया था, मगर मोदी ने स्वीकार नहीं किया, क्योंकि उसी समय वाइट हाउस में पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ भारत को एक कूटनीतिक जाल की भनक लग गई थी. लेकिन ट्रंप ने इस साल के अंत में क्वाड शिखर सम्मेलन के लिए भारत आने का मोदी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया. हालांकि, इस यात्रा पर वाइट हाउस की ओर से कोई खास टिप्पणी नहीं की गई है.
संभावना है कि मोदी और ट्रंप के बीच जल्द ही क्वाड शिखर सम्मेलन की योजना पर फोन पर बातचीत हो. इस फोन कॉल से दोनों नेताओं को अन्य जरूरी मुद्दों पर भी बात करने का मौका मिल सकता है, जैसे भारत-अमेरिका व्यापार समझौते की प्रगति, जो टैरिफ की परेशानी को कम कर सकता है और रूस-यूक्रेन युद्ध पर भी. अगर फोन कॉल के जरिए कुछ बात बनती है, तो मुलाकात की संभावना बन सकती है. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इस महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के लिए अमेरिका नहीं जा रहे हैं. विदेश मंत्री एस जयशंकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे.
अक्टूबर में मलेशिया वह स्थान हो सकता है, जहां ट्रंप और मोदी मिलें. राष्ट्रपति ट्रंप 26 अक्टूबर को कुआलालंपुर में ASEAN नेताओं की बैठक में भाग लेने की योजना बना रहे हैं. प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने 26 अक्टूबर के लिए उनके निमंत्रण को स्वीकार कर लिया है, हालांकि वाइट हाउस ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है.
अमेरिकी राष्ट्रपति ने ASEAN शिखर सम्मेलनों में भाग लिया है, मगर हमेशा नियमित रूप से नहीं. जो बाइडेन ने 2022 में कंबोडिया में भाग लिया था और ट्रंप आखिरी बार 2017 में फिलीपींस में ASEAN में थे. मोदी पहले हर साल की तरह इस साल भी ASEAN शिखर सम्मेलन में जाएंगे. तो क्या वहां ट्रंप के साथ बैठक संभव है? यह अब सबसे प्रतीक्षित घटनाक्रम है. नवंबर में जोहान्सबर्ग में G20 शिखर सम्मेलन में ऐसीकोई मुलाकात की कोई संभावना नहीं है क्योंकि ट्रंप ने कहा है कि वह G20 के लिए यात्रा नहीं करेंगे, और उपराष्ट्रपति जे डी वेंस अमेरिका का प्रतिनिधित्व करेंगे.
क्वाड का क्या?
और भारत में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन के बारे में क्या? 17 जून को मोदी-ट्रंप की फोन कॉल में ट्रंप ने क्वाड के लिए भारत आने के मोदी के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया था. लेकिन न्यूयॉर्क टाइम्स की एक हालिया रिपोर्ट कहती है कि ट्रंप की अब ऐसी कोई योजना नहीं है. भारत ने भी अभी तक कोई स्पष्टता नहीं जताई है. विदेश मंत्रालय ने पिछले सप्ताह कहा था कि वह इस मुद्दे पर अटकलों पर आधारित मीडिया रिपोर्टों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेगा. भारत ने कहा है, ‘भारत क्वाड को चार सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर साझा हितों पर चर्चा के लिए एक मूल्यवान मंच के रूप में देखता है. नेताओं का शिखर सम्मेलन सदस्य देशों, यानी चार देशों के बीच राजनयिक परामर्श के माध्यम से निर्धारित किया गया है.’
बड़ी सफलता तब मिल सकती है जब डोनाल्ड ट्रंप नवंबर में क्वाड के लिए किए गए वादे के अनुसार भारत आएं और इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर हो जाएं. लेकिन क्या हम भारत और अमेरिका के बीच दोस्ती को लेकर जरूरत से ज्यादा आशावादी हो रहे हैं? यह ट्रंप को भारत पर अमेरिका की दादागिरी की हदें समझने का मामला है. खासकर एससीओ शिखर सम्मेलन के बाद, जहां मोदी ने व्लादिमीर पुतिन और शी जिनपिंग के साथ अपनी लंबी और सार्थक बैठकों के जरिए ट्रंप को अपना संदेश दिया था.
टैरिफ पर क्या?
याद रखें कि अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ वापस नहीं लिया है और भारत के कृषि और डेयरी क्षेत्रों में प्रवेश जैसे अपने शर्तों पर भारत के साथ व्यापार समझौता चाहता है. मोदी ने कहा है कि यह किसी भी कीमत पर भारत इसकी अनुमति नहीं देगा. ट्रंप भी सीजफायर के दावे पर अड़े हैं. वह पाकिस्तान के साथ-साथ असीम मुनीर के साथ भी घनिष्ठ संबंध बनाए हुए हैं, जो भारत के लिए एक बड़ी परेशानी है.
इसलिए अमेरिका-भारत संबंधों को सुधारने में अभी भी कई रुकावटें और चुनौतियां हैं. क्या ट्रंप और मोदी फिर से दोस्त बन सकते हैं? यही सवाल वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा रहा है.
तकरार के लिए ट्रंप खुद जिम्मेदार
निश्चित रूप से भारत के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करके अपने सहयोगियों के साथ संबंध खराब करने के लिए ट्रंप खुद जिम्मेदार हैं. भारत इस मामले को बहुत ही परिपक्व और व्यावहारिक तरीके से संभाल रहा है. 50% टैरिफ लागू होने के बाद से पिछले एक महीने में मोदी डोनाल्ड ट्रंप के साथ वाकयुद्ध में कभी शामिल नहीं हुए. पीएम मोदी ने इस मामले को ‘आर्थिक स्वार्थ’ कहकर संबोधित करने के लिए सिर्फ एक ही शब्द का इस्तेमाल किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पीयूष गोयल ने भी ट्रंप पर कोई निशाना नहीं साधा और कहा कि अमेरिका के साथ जल्द ही हालात सुधर जाएंगे.
भारत के इसी दृष्टिकोण ने ट्रंप को एक सकारात्मक कदम उठाने का अवसर दिया है. भू-राजनीति के रंगमंच पर दोस्ती की परीक्षा होती है, लेकिन समीकरण बने रहते हैं. ट्रंप कहते हैं कि मोदी के साथ उनकी बहुत बनती है. मोदी कहते हैं कि यह साझेदारी ‘सकारात्मक और दूरदर्शी’ है. दोस्ती में तनाव जरूर है, लेकिन वह टूटी नहीं है.
नवंबर है निर्णायक
इस दिसंबर में व्लादिमीर पुतिन का भारत दौरा है. इसके साथ ट्रंप के लिए अगले दो महीने भारत के साथ संबंधों को सुधारने या भारत को रूसी खेमे में और भी अधिक धकेलने के जोखिम के लिहाज से बेहद अहम हैं. नवंबर यह तय कर सकता है कि ट्रंप और मोदी की व्यक्तिगत केमिस्ट्री फिर से भारत-अमेरिका संबंधों की दिशा तय करेगी.