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“भारत की मार से पाकिस्तान को बचा पाएगा सऊदी अरब? कितनी ताकतवर है इस मुस्लिम देश की सेना”

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मध्य पूर्व की तनावपूर्ण राजनीति और दक्षिण एशिया के संघर्षों के बीच सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक ऐसा रक्षा समझौता किया है, जो न केवल दोनों देशों की पुरानी दोस्ती को मजबूत करता है, बल्कि पूरे क्षेत्र की भू-राजनीति को नया मोड़ दे सकता है।

17 सितंबर को रियाद के अल-यमामा पैलेस में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा साइन किए गए “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट” (एसएमडीए) के तहत किसी भी देश पर हमले को दोनों पर हमला माना जाएगा। यह समझौता इजरायल के कतर पर हालिया हमले के बाद आया है, लेकिन इसका असर भारत-पाकिस्तान तनाव पर भी पड़ सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर सऊदी अरब की सेना कितनी ताकतवर है और क्या यह भविष्य में भारत की मार से पाकिस्तान को बचा पाएगी? आइए विस्तार से समझते हैं।

सऊदी अरब और पाकिस्तान के रिश्ते दशकों पुराने हैं। 1960 के दशक में जब यमन में मिस्र का युद्ध छिड़ा, तो पाकिस्तानी सैनिक सऊदी की रक्षा के लिए तैनात हुए। 1979 में मक्का के ग्रैंड मस्जिद पर कब्जे के दौरान पाकिस्तानी स्पेशल फोर्सेस ने सऊदी सेना की मदद की। 1982 के द्विपक्षीय सुरक्षा समझौते के तहत पाकिस्तान ने 8,000 से अधिक सऊदी सैनिकों को ट्रेनिंग दी।

आर्थिक रूप से, सऊदी पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी रहा है। 1998 में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षण के बाद सऊदी ने 3.4 अरब डॉलर की तत्काल मदद की, जो उसके दूसरे परीक्षण को संभव बनाने वाली साबित हुई।

आज सऊदी 2025-26 में पाकिस्तान को 6 अरब डॉलर से अधिक का ऋण देने वाला है। लेकिन रक्षा समझौता इस रिश्ते को नया आयाम देता है। समझौते के मुताबिक, “किसी भी आक्रामकता को दोनों देशों पर आक्रामकता माना जाएगा।” पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा मुहम्मद आसिफ ने कहा कि जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम सऊदी के लिए उपलब्ध होगा।

यह समझौता इजरायल के 9 सितंबर को दोहा पर हमले के बाद तेजी से फाइनल हुआ, जहां हमास नेताओं को निशाना बनाया गया। सऊदी को अमेरिकी सुरक्षा गारंटी पर भरोसा कम हो रहा है, इसलिए वह पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न सहयोगी की ओर रुख कर रहा है। लेकिन दक्षिण एशिया के संदर्भ में, यह भारत के लिए चिंता का विषय है।

भारत-पाकिस्तान तनाव: मई का संघर्ष और नया खतरा 2025 की शुरुआत से ही भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंचा। अप्रैल में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटकों की मौत के बाद भारत ने मिसाइल हमले किए, जिसमें पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। चार दिनों तक चले इस संघर्ष ने दोनों परमाणु शक्तियों को पूर्ण युद्ध की कगार पर ला खड़ा किया। भारत ने जहां मन किया वहां पाकिस्तान को निशाना बनाया और उसके कई एयरबेस तबाह कर दिए।

ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2025 के अनुसार, भारत दुनिया की चौथी सबसे ताकतवर सेना है, जबकि पाकिस्तान 12वें स्थान पर है। वहीं सऊदी अरब इस मामले में 24वें नंबर पर है। भारत का रक्षा बजट 81 अरब डॉलर है, जो पाकिस्तान के 10 अरब डॉलर से आठ गुना अधिक। भारत की वायुसेना में राफेल और सुखोई जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान हैं, जबकि पाकिस्तान का फोकस चाइनीज जे-10 और एफ-16 पर है। नौसेना में भारत के दो एयरक्राफ्ट कैरियर पाकिस्तान को समुद्री चुनौती देते हैं। मई के संघर्ष में भारत ने सटीक मिसाइल हमलों से पाकिस्तानी ठिकानों को नुकसान पहुंचाया, लेकिन पाकिस्तान ने ड्रोन और आर्टिलरी से जवाब दिया जिसे भारत ने नाकाम कर दिया। ऐसे में सऊदी का हस्तक्षेप पाकिस्तान के लिए “बचाव” साबित हो सकता है?

सऊदी सेना: ताकत, कमजोरियां और क्षेत्रीय महत्व सऊदी अरब की सेना दुनिया की 24वीं सबसे ताकतवर है। इसका रक्षा बजट 80 अरब डॉलर है, जो जीडीपी का 7% है। सक्रिय सैनिक 2.25 लाख, कुल सैन्य बल 3.5 लाख। सऊदी की ताकत अमेरिकी हथियारों में है। उसके पास 1,500 एम-1A2 अब्राम्स टैंक, 7,000 से अधिक बख्तरबंद वाहन, और 1,000 आर्टिलरी हैं।

वायुसेना में 300 से अधिक एफ-15, यूरोफाइटर टाइफून और टॉरनेडो लड़ाकू विमान हैं। नौसेना में गाइडेड-मिसाइल फ्रिगेट्स और कोरवेट्स का मजबूत बेड़ा है। लेकिन कमजोरियां भी हैं: 2015-2022 के यमन युद्ध में हूती विद्रोहियों के ड्रोन हमलों से सऊदी को भारी नुकसान हुआ, जो उसकी कमजोर हवाई रक्षा को उजागर करता है।

सऊदी सेना विदेशी (पाकिस्तानी, अमेरिकी) सलाहकारों पर निर्भर है, और आंतरिक प्रशिक्षण की कमी है। ताजा रक्षा समझौते के तहत सऊदी पाकिस्तान को वित्तीय मदद दे सकता है, जबकि पाकिस्तान परमाणु ढाल प्रदान कर सकता है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह “सिग्नलिंग” ज्यादा है – वास्तविक युद्ध में सऊदी की भागीदारी सीमित रहेगी।

भारत के लिए खतरा या संतुलन? भारत ने समझौते पर सतर्क प्रतिक्रिया दी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जयस्वाल ने कहा, “हम इसका अध्ययन करेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव देखेंगे।” सऊदी के साथ भारत के रिश्ते मजबूत हैं: 2025 में मोदी की तीसरी यात्रा हुई, और द्विपक्षीय व्यापार 50 अरब डॉलर से अधिक है। सऊदी भारत को 20% से अधिक कच्चा तेल निर्यात करता है। अप्रैल 2025 में दोनों ने रक्षा सहयोग समिति बनाई, जिसमें संयुक्त अभ्यास शामिल हैं।

विश्लेषकों का कहना है कि सऊदी भारत के साथ “संतुलन” बनाए रखेगा। स्टिमसन सेंटर के फैसल मीर ने कहा, “सऊदी पाकिस्तान की जंग नहीं लड़ेगा, लेकिन ईरान जैसे क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों से निपटने में मदद करेगा।” अगर भारत-पाकिस्तान फिर भिड़ते हैं, तो सऊदी आर्थिक दबाव डाल सकता है, लेकिन प्रत्यक्ष सैन्य हस्तक्षेप असंभव है।