अब ज्यादातर भारतीय मरीज इलाज के मामले में खुली और भरोसेमंद जानकारी चाहते हैं. एफआईसीसीआई (FICCI) और ईवाई-पार्थेनॉन (EY-Parthenon) की नई रिपोर्ट के मुताबिक, 83% मरीज चाहते हैं कि उन्हें अस्पतालों और इलाज की सही और साफ जानकारी आसानी से मिले, जबकि लगभग 90% मरीज बेहतर क्वालिटी की गारंटी मिलने पर थोड़ा ज्यादा खर्च करने को भी तैयार हैं.
ट्रू अकाउंटेबल केयर: मैक्सिमाइजिंग हेल्थकेयर डिलीवरी इम्पैक्ट, एफिशियंटली रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे भारत की
”हेल्थकेयर व्यवस्था को बेहतर, सस्ती और भरोसेमंद बनाया जा सकता है. भारत में इलाज अब भी महंगा”
”रिपोर्ट कहती है कि भारत की हेल्थ सेवाएं दूसरे देशों के मुकाबले सस्ती हैं, लेकिन आम लोगों के लिए इलाज की लागत अब भी बोझ बनी हुई है.”
बड़े निजी अस्पतालों में एक मरीज पर रोजाना 30,000 से 40,000 रुपए तक खर्च आता है. मेट्रो शहरों के बड़े सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों में ये खर्च 70,000 रुपए तक पहुंच जाता है. फिर भी, इस सेक्टर में निवेश पर रिटर्न सिर्फ 13% फीसदी है, जबकि बाकी सेक्टरों जैसे एफएमसीजी या रिटेल में ये 25% से ज्यादा है.
रिपोर्ट के अनुसार एक निजी अस्पताल में औसत इलाज का खर्च करीब 58,000 रुपए है, जो देश के आधे परिवारों के सालभर के खर्च से भी ज्यादा है. ग्रामीण इलाकों में तो हाल और भी मुश्किल है. करीब 2530% लोग ऐसे हैं जिनके पास कोई हेल्थ इंश्योरेंस नहीं है, यानी उन्हें इलाज के लिए अपनी जेब से पैसे देने पड़ते हैं.
”मरीजों को चाहिए पारदर्शिता, डॉक्टर भी तैयार”
ईवाई-पार्थेनॉन के हेल्थकेयर लीडर कैवान मूवडावाला ने कहा, भारत की हेल्थकेयर व्यवस्था ने काफी तरक्की की है, लेकिन आने वाले सालों में बुजुर्ग आबादी और बढ़ती बीमारियों की वजह से नए दबाव आएंगे. अच्छी बात ये है कि अब मरीज पारदर्शिता चाहते हैं और डॉक्टर भी इलाज के नतीजे साझा करने के लिए तैयार हैं.
ईवाई-पार्थेनॉन के दूसरे पार्टनर अक्षय रवि ने कहा कि अब सरकार और प्राइवेट अस्पताल दोनों ही गुणवत्ता और मरीजों के अनुभव को लेकर गंभीर हैं. उनका कहना है कि अब वक्त है कि हम संख्या नहीं, बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान दें.
एफआईसीसीआई हेल्थ सर्विस कमेटी के सह-अध्यक्ष वरुण खन्ना ने कहा, यह रिपोर्ट दिखाती है कि हम कहां तक पहुंचे हैं और आगे किस दिशा में जाना चाहिए. अच्छी बात ये है कि 90% डॉक्टर मानते हैं कि इलाज के लिए एक समान मानक और नतीजे तय करना जरूरी है.
एफआईसीसीआई के चेयरमैन डॉ हर्ष महाजन ने कहा, अगर हम जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण इलाज को बढ़ावा दें, तो भारत एक ऐसा हेल्थकेयर सिस्टम बना सकता है जो भरोसेमंद भी हो और सस्ता भी.
”जानें रिपोर्ट क्या-क्या है खास”
”साल 2000 से अब तक भारत में अस्पतालों की बेड क्षमता लगभग दोगुनी हुई है. मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस सीटें पांच गुना बढ़ी हैं.”
एडवांस इलाज जैसे कैथ लैब और कैंसर मशीनों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है. अगर मौजूदा स्थिति में सुधार नहीं हुआ, तो 2047 तक अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या तीन गुना हो सकती है, जिसके लिए 2030 लाख नए बेड की जरूरत होगी.
अगर इलाज का तरीका नतीजा-आधारित (Outcome-based) बना, तो अस्पताल में भर्ती 2030% तक घटाई जा सकती है.
सिर्फ एक-तिहाई मरीजों को ही अस्पतालों की गुणवत्ता से जुड़ी असली जानकारी मिल पाती है. ज्यादातर लोग डॉक्टर की सिफारिश या पहचान पर भरोसा करते हैं.
10% से भी कम निजी अस्पतालों को NABH की मान्यता है और सिर्फ 2% लैब्स NABL प्रमाणित हैं.
रिपोर्ट कहती है कि अब भारत को डिजिटल और डेटा-आधारित हेल्थ सिस्टम की ओर बढ़ना चाहिए. इसके लिए VALUE Framework नाम की योजना दी गई है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड, एआई टेक्नोलॉजी और रियल-टाइम डाटा शेयरिंग जैसी चीजों पर जोर है.
इसके साथ ही, रिपोर्ट ने 7C Framework भी सुझाया है – यानी क्वालिटी, लागत पर नियंत्रण, इलाज में तालमेल, मरीज को सशक्त बनाना और *डिजिटल जुड़ाव जैसे कदम उठाने की जरूरत है.