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ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर सरकार का चलेगा हंटर! कैश ऑन डिलीवरी फीस पर शुरू की जांच, ग्राहकों से ठगी पर लगेगी लगाम

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केंद्र सरकार अब Amazon और Flipkart जैसी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों की जांच कर रही है. ये जांच कैश ऑन डिलीवरी यानी सीओडी पर लगने वाली अतिरिक्त फीस को लेकर है. सरकार देख रही है कि क्या ये कंपनियां ग्राहकों को पहले पेमेंट करने के लिए मजबूर कर रही हैं और अगर प्रीपेड ऑर्डर कैंसल हो जाए तो रिफंड में देरी या रुकावट क्यों होती है.
मिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, दो लोगों ने इस जानकारी को दिया है लेकिन अपने नाम नहीं बताए हैं. उपभोक्ता मामलों का मंत्रालय इन शिकायतों की समीक्षा कर रहा है. जल्द ही ई-कॉमर्स कंपनियों, उपभोक्ता अधिकार संगठनों और उद्योग समूहों के साथ बातचीत होगी ताकि ऐसा समाधान निकाला जाए जो कंपनियों की जरूरतों और ग्राहकों की सुरक्षा में संतुलन बनाए. ये जानकारी अभी सार्वजनिक नहीं है, इसलिए लोगों ने नाम नहीं बताया.

कंपनियां सीओडी के लिए चार्ज कर रही है इतनी फीस

मंत्रालय ने शिकायतों की संख्या नहीं बताई, लेकिन ग्राहकों से कहा गया है कि वे नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन के जरिए अपनी शिकायत दर्ज करें. मंत्रालय के मुताबिक, कई ग्राहक सीओडी पर लगने वाली फीस से बचने के लिए पहले पेमेंट कर रहे हैं. Amazon सीओडी के लिए 7 से 10 रुपये चार्ज करता है, जबकि फ्लिपकार्ट और फर्स्टक्राई 10 रुपये अतिरिक्त लेते हैं.
भारत का ई-कॉमर्स बाजार अभी करीब 160 बिलियन डॉलर का है. इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन की मई 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, ये 2030 तक 345 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है. 881 मिलियन इंटरनेट यूजर्स के साथ भारत 2030 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन रिटेल मार्केट बन सकता है. ऐसे में ऑनलाइन धोखाधड़ी से बचाव बहुत जरूरी है.
जब कोई ग्राहक सीओडी चुनता है, तो फ्लिपकार्ट का मैसेज आता है कि हैंडलिंग कॉस्ट की वजह से 10 रुपये की छोटी फीस लगेगी. ऑनलाइन पेमेंट करके इसे टाला जा सकता है. अमेज़न भी कहता है कि 10 रुपये का कन्वीनियंस फीस लागू होगा.

फीस और डिलीवरी में देरी से ग्राहकों को परेशानी

मिंट के एक सूत्र ने जानकारी दी है कि ये प्लेटफॉर्म सीओडी पर फीस लगाकर ग्राहकों को पहले पेमेंट करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, जो उपभोक्ता अधिकारों के खिलाफ है. मंत्रालय इन मामलों की जांच कर रहा है. कॉमर्स के लोग कहते हैं कि ये छोटी फीस बार-बार ऑर्डर कैंसल होने से रोकने के लिए है, क्योंकि इससे इन्वेंटरी और लॉजिस्टिक्स की प्लानिंग बिगड़ती है. लेकिन कंज्यूमर वॉयस जैसे उपभोक्ता संगठन कहते हैं कि ये फीस और डिलीवरी में देरी ग्राहकों को परेशान कर रही है. ग्राहकों को लगता है कि उनका पैसा ब्लॉक हो रहा है और कंपनियां उस पर ब्याज कमा रही हैं. सरकार को इस पर सख्त कदम उठाने की जरूरत है ताकि ऑनलाइन शॉपिंग ग्राहकों के लिए आसान और भरोसेमंद बने.
इंडस्ट्री वाले कहते हैं कि ये फीस बहुत कम है और इसका मकसद बार-बार ऑर्डर कैंसल रोकना है, जो इन्वेंटरी और लॉजिस्टिक्स को बिगाड़ता है. लेकिन कंज्यूमर वॉयस जैसे संगठन कहते हैं कि ये चार्ज और डिलीवरी में देरी चिंता की बात है. ग्राहक ठगा हुए महसूस करते हैं क्योंकि उनका पैसा ब्लॉक रहता है और कंपनियां उस पर ब्याज कमा लेती हैं. सरकार को ऐसे मुद्दों पर सख्ती करनी चाहिए ताकि ऑनलाइन शॉपिंग सबके लिए आसान और सुरक्षित बने.

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