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आंख के इलाज में किडनी फेल, दवा देते ही मरीज बेहोश… 1986 की वो रात, जब अस्पताल में नाची थी मौत

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मध्य प्रदेश में कफ सिरप पीने से 15 मासूम बच्चों की जान जा जुकी है. बीती रात दो साल की एक और बच्ची की नागपुर में मौत हो गई. छिंदवाड़ा के गांवों में बच्चों के ताबूत उठते देख डॉक्टर ईश्वर गिलाड़ा की आंखों के सामने लगभग 40 साल पुरानी वो भयानक रातें ताजा हो गईं. जनवरी 1986 की ठंडी शाम थी, जब मुंबई के जेजे हॉस्पिटल की इमरजेंसी में अचानक फोन बज उठा. उधर से आवाज आई, ‘ऑपथैल्मोलॉजी वार्ड में मरीज बेहोश हो गया है.’ कुछ ही देर में न्यूरोलॉजी वार्ड से भी वैसी ही खबर आई. पता चला कि इन मरीजों का किडनी फेल हो गया है.

डॉक्टरों को समझ नहीं आया कि आंख के मरीजों का किडनी फेलियर कैसे हो रहा है. दो हफ्तों के भीतर 14 मरीज किडनी फेल होने से मर गए. बाद में जांच में सामने आया कि अस्पताल के न्यूरोसर्जरी और आंखों के वार्ड में जिस ग्लिसरॉल सिरप का इस्तेमाल किया जा रहा था, वह इंसानी इस्तेमाल के लिए नहीं था. उसमें 90% डाई-एथिलीन ग्लाइकॉल (DEG) नाम का जहरीला पदार्थ मिला हुआ था. यह औद्योगिक ग्रेड का (Industrial Pure) ग्लिसरॉल था, जिसे दवा बनाने वाले इंडियन फार्माकोपिया ग्रेड के नाम पर सप्लाई किया गया था.

‘लापरवाही का स्मारक’

इन मौतों को लेकर तब खूब हल्ला मचा था. सरकार ने तत्कालीन जस्टिस बीएस लेंतिन की अध्यक्षता एक जांच आयोग गठित कर दी. इस आयोग ने हादसे को ‘लापरवाही का स्मारक’ कहा था. आयोग ने पाया कि अस्पताल प्रशासन की लापरवाही, दवा नियंत्रण विभाग (FDA) की नाकामी और एक छोटे से री-पैकेजिंग यूनिट के भ्रष्टाचार ने 14 जिंदगियां छीन लीं. आयोग ने सुझाव दिया था कि जेजे हॉस्पिटल जैसे बड़े संस्थान में प्रशासन और चिकित्सा के लिए अलग-अलग डीन होने चाहिए, लेकिन 2022 तक भी प्रशासनिक डीन की कुर्सी खाली रही.

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