भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने आतंकवाद को वैश्विक स्तर पर सबसे गंभीर खतरा बताते हुए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से इसे किसी भी रूप में बर्दाश्त न करने का कड़ा आह्वान किया है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि आतंकवाद के मामले में कोई समझौता, कोई बहानेबाजी या कोई लीपापोती स्वीकार्य नहीं हो सकती।
मॉस्को में मंगलवार को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के शासनाध्यक्षों की परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए जयशंकर ने जोर दिया कि एससीओ की स्थापना मूल रूप से आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद जैसी तीन बुराइयों से मुकाबला करने के लिए हुई थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ये खतरे और भी विकराल रूप धारण कर चुके हैं।
उन्होंने कहा कि आतंकवाद के सभी रूपों और प्रकटीकरणों के प्रति विश्व समुदाय को जीरो टॉलरेंस की नीति अपनानी होगी। इसमें न कोई औचित्य स्वीकार किया जा सकता है, न कोई अनदेखी और न ही कोई सफाई। विदेश मंत्री ने कहा कि जैसा कि भारत ने बार-बार सिद्ध किया है, हमें अपने नागरिकों को आतंकवादी खतरों से बचाने का पूर्ण अधिकार है और हम इस अधिकार का उपयोग करते रहेंगे।
एससीओ के संदर्भ में सुधारों की वकालत करते हुए जयशंकर ने कहा कि संगठन लगातार विकसित हो रहा है और बदलती वैश्विक परिस्थितियों के साथ कदमताल करने के लिए इसमें नए विचारों और नए सहयोग के तरीकों को अपनाना आवश्यक है। भारत एससीओ के सुधार-उन्मुख एजेंडे का पूर्ण समर्थन करता है। उन्होंने संगठित अपराध, नशीले पदार्थों की तस्करी तथा साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में चल रहे केंद्रों का स्वागत किया।
साथ ही कहा कि जैसे-जैसे एससीओ अधिक विविधतापूर्ण होता जा रहा है, इसे और अधिक लचीला, अनुकूलनीय तथा प्रभावी बनाना होगा। इस दिशा में लंबे समय से लंबित एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में अंग्रेजी भाषा को एससीओ की तीसरी आधिकारिक भाषा बनाने के प्रस्ताव को शीघ्र लागू किया जाना चाहिए। इसके अलावा वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के दौर में सप्लाई चेन से जुड़े जोखिमों को भी उन्होंने गंभीर चिंता का विषय बताया।



