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El Nino : अल नीनो कैसे आता है, 7 साल बाद प्रशांत महासागर में फिर लौटा, भारत पर क्या होगा असर?

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करीब सात सालों के बाद अल नीनो (El Nino) ने प्रशांत महासागर में एक बार फिर दस्तक दी है. इसको लेकर NOAA यानी नेशनल ओशियन एंड एटमॉसफेयर एडमिनिस्ट्रेशन ने अब चेतावनी जारी की है.

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक साल 2016 के बाद ऐसे हालात नजर आए हैं. हालांकि ऐसा माना जा रहा है कि इसकी कोई संभावना नहीं थी. लेकिन जबकि अल नीनो आ गया है तो भारत पर इसका खास असर देखा जा सकता है.

अल नीनो क्या होता है?

वास्तव में अल नीनो एक स्पेनिश भाषा का शब्द है. वैसे तो इसका शाब्दिक अर्थ ‘छोटा लड़का’ होता है लेकिन मौसम विज्ञान में इसे एक जलवायु पैटर्न माना गया है. शायद छोटे बच्चे से इसकी प्रकृति मिलती है. अल नीनो 2 से 7 सालों के बीच कुछ अंतराल पर प्रशांत महासागर में आता है. जिसके बाद मौसम पर व्यापक असर डालता है. कितनी बारिश होगी, या कितना सूखा पड़ेगा-अल नीनो की स्थिति से पता चलता है.

कैसे बनता है अल नीनो?

जब हवाएं भूमध्य रेखा के साथ पश्चिम की ओर बहती हैं और दक्षिण अमेरिका से एशिया की ओर गर्म पानी लेकर जाती हैं तो अल नीनो की परिस्थितियां गहराने लगती हैं. इस स्थिति में हवाएं पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है. और इसी दौरान ये हवाएं गर्म पानी के द्रव्यमान को प्रशांत महासागर में ले जाती है. ऐसे में समुद्र की सतह का तापमान औसत से अधिक गर्म हो जाता है.

अल नीनो कैसा प्रभाव डालता है?

अल नीनो प्राकृतिक प्रकोप से जुड़ा है. यह अत्यधिक बाढ़ और अत्यधिक सूखा लेकर आता है. जलवायु वैज्ञानिक मिशेल एल हेयुरेक्स का कहना है कि अपनी क्षमता के आधार पर, अल नीनो दुनिया भर के कुछ स्थानों में भारी बारिश और सूखे की वजह बनता है. अपनी तीव्रता से यह प्राकृतिक विनाश भी ला सकता है.

भारत में अल नीनो कितना गंभीर?

भारत की बात करें तो अल नीनो की पुष्टि करने वाला अहम संकेत – इस साल मार्च और जून के बीच नजर आया है. 2023 का अल नीनो 2000 के बाद पांचवीं बार आया है. हालांकि इस साल की शुरुआत में अल नीनो के अगस्त तक आने की भविष्यवाणी की गई थी. लेकिन यह जून में ही आ गया तो इसका असर गंभीर हो सकता है.

मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक आने वाले समय में अल नीनो भारत में बुरा प्रभाव दिखा सकता है. इससे देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी. ज्यादा गर्मी और बेमौसम बरसात से खेती पर काफी असर पड़ेगा. फसलें प्रभावित होंगी और किसानों के सामने संकट आ सकता है. खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ेगी.