6 साल पहले आज के ही दिन सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला देकर मुस्लिम महिलाओं को बड़ी राहत दी थी. इसी दिन से देश में तीन तलाक प्रथा गैर कानूनी हो गई. उसके बाद केंद्र सरकार ने संसद में बिल पेश कर इसे कानून बना दिया.
तीन तलाक के इस ताबूत में पहली कील ठोंकी थी इंदौर की शाहबानो ने. पहली दफा वही इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची थीं. हालांकि, उन्होंने गुजारे-भत्ते को लेकर अपील की थी.
बता दें कि सर्वोच्च अदालत ने उन्हें राहत भी दी, लेकिन तब सरकार ने संसद में बिल लाकर इस फैसले को पलट दिया था. इसके बाद तो जैसे रास्ता खुल गया. सायरा बानो, इशरत जहां, जाकिया, गुलशन, अतिया साबरी, आफ़रीन रहमान समेत न जाने कितनी मुस्लिम महिलाओं ने इस संघर्ष में खुद को झोंक दिया. सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बहस छिड़ी. संघर्ष हुए.
अच्छी बात यह रही कि इनका संघर्ष काम आया. अब तीन तलाक कानूनी रूप से अवैध है. आइए तीन तलाक की छठी बरसी के मौके पर इन महिलाओं के संघर्ष और परिणामों पर एक नजर डालते हैं, जिन्होंने अनेक दुख-तकलीफें झेलकर करोड़ों महिलाओं के हक को आवाज दी. उन्हें सफलता मिली.
यह लड़ाई इतनी आसान नहीं थी. 1985 और 2019 में यह मामला संसद में पेश हुआ. उससे भी पहले सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचा था. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तब की केंद्र सरकार ने संसद में बिल लाकर पलट दिया था, लेकिन उसके बाद शाहबानो केस जन-जन की जुबान पर था. मुस्लिम महिलाएं खुलकर सामने आने लगी.
अपने हक को लेकर आवाज उठाने लगी. कुछ बरस जरूर लगे, लेकिन फिर तो सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ महिलाओं की लाइन लग गई. एक बार फिर लंबी सुनवाई के बाद 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया और इस बार सरकार इस आदेश के समर्थन में संसद में बिल लेकर आई और आज यह कानून के रूप में हमारे सामने है.
कब, क्या हुआ?
- 22 अगस्त 2017 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से 6 महीने में कानून बनाने को कहा
- 15 दिसंबर 2017 को पीएम नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने इस सिलसिले में बिल को मंजूरी दी और इसे आपराधिक कृत्य करार दिया
- 29 दिसंबर 2017 को सरकार ने बिल संसद में पेश किया. यह लोकसभा से ध्वनिमत से पास हो गया.
- 5 जनवरी 2018 को यह बिल राज्यसभा में पेश किया गया, जहां यह नहीं पास हो पाया क्योंकि राज्यसभा में एनडीए नेतृत्व के पास बहुमत नहीं था.
- दूसरा कार्यकाल शुरू होने पर यह बिल 25 जुलाई 2019 को लोकसभा से और 30 जुलाई 2019 को राज्यसभा से पास हुआ. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया.
कितनी है सजा?
इस कानून के बाद कोई भी मुस्लिम अपनी बीवी को एक साथ तीन तलाक बोलकर रिश्ते को खत्म नहीं कर सकता. ऐसा करने पर पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर जेल भेज सकती है. इसमें तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद सरकार ने इस मामले में कानून बनाया है.
अब क्या हो रहा?
अभी भी कुछ मामले सामने आ रहे हैं. ऐसे भी प्रकरण आ रहे हैं कि लोग कानून के डर से तलाक तो नहीं दे रहे हैं, लेकिन घर से निकाल दे रहे हैं. ऐसी महिलाएं ज्यादा मुश्किल में हैं. क्योंकि शौहर ने तलाक तो नहीं दिया,लेकिन घर से बाहर कर दिया. बज़्मे खवातीन की मुखिया शहनाज सिदरत कहती हैं कि इस कानून ने निश्चित बड़ी राहत दी है. अब ऐसे मामलों में कमी आई है. लोगों में जेल जाने का डर है. उन्होंने बताया कि एक नई समस्या खड़ी हो गई है. अब लोग सीधे घर से बाहर निकाल दे रहे हैं. सिदरत कहती हैं इस कानून के पहले उनके पास हर महीने 25-30 मामले आते थे. अब 8-10 मामले ही आ रहे हैं, जो निश्चित ही राहत की बात है.
मामला फिर पहुंचा सुप्रीम कोर्ट
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार सरंक्षण) अधिनियम 2019 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिस पर कोर्ट नवंबर 2023 में सुनवाई करेगा.
इन मुस्लिम देशों में भी है तीन तलाक पर रोक
पकिस्तान, बांग्लादेश, मिस्र, ट्यूनीशिया, मोरक्को, इंडोनेशिया, ईरान, अफगानिस्तान, तुर्किए, श्रीलंका, ब्रुनेई, सीरिया, कतर, यूनाइटेड अरब अमीरात, साइप्रस, जॉर्डन समेत कई अन्य देशों में भी तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाया गया है.