अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह रूस से तेल खरीदना बंद कर दे. शुक्रवार को डोनाल्ड ट्रंप ने एक अजीबोगरीब दावा करते हुए कहा कि उन्होंने सुना है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा जो एक ‘अच्छा कदम’ है. ट्रंप ने साथ ही कहा कि उन्हें इस बारे में हालांकि कोई ठोस जानकारी नहीं है. ट्रंप ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, ‘मुझे पता चला है कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा. मैंने यही सुना है. मुझे नहीं पता कि यह बात सही है या गलत, लेकिन यह एक अच्छा कदम है. देखते हैं क्या होता है.’ अमेरिका का कहना है कि इससे रूस को फायदा मिलता है. टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे अपने एक लेख में एक्सिस बैंक के चीफ इकोनॉमिस्ट नीलकंठ मिश्रा ने बताया है कि अगर भारत और चीन जैसे देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया तो पूरी दुनिया में हाहाकार मचना तय है.
इसका सीधा असर सिर्फ रूस या भारत पर नहीं, बल्कि अमेरिकी जनता और खुद डोनाल्ड ट्रंप को भी भुगतना पड़ जाएगा. 2022 में जब रूस पर पहली बार वैश्विक प्रतिबंध लगे, तब ब्रेंट क्रूड और रूसी यूराल ग्रेड के बीच तेल की कीमतों में 30 डॉलर प्रति बैरल का अंतर था. लेकिन आज ये अंतर घटकर मात्र 2-3 डॉलर रह गया है यानी भारत को अब बहुत ज्यादा आर्थिक फायदा नहीं हो रहा. अगर भारत रोजाना 1.5 से 2 मिलियन बैरल तेल रूस से लेता है, तो साल भर में 1-2 अरब डॉलर की बचत होती है. लेकिन भारत जैसी 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लिए यह राशि बहुत बड़ी नहीं है.
रूस से तेल खरीदने पर क्यों चिढ़ा है US?
इतनी कम संख्या के बावजूद, पश्चिमी मीडिया और राजनेता पिछले तीन सालों से रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए चीन और भारत को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं, और यहां तक कहा है कि यूक्रेन के लोगों की दुर्दशा से दोनों को फायदा हो रहा है. वहीं अमेरिका के कई सांसद आरोप लगाते हैं कि भारत रूस को युद्ध लड़ने के लिए इसके जरिए फंडिंग दे रहा है. लेकिन सच्चाई कुछ और है. रूस प्रतिदिन लगभग 95 लाख बैरल तेल का उत्पादन करता है. घरेलू खपत को ध्यान में रखते हुए, यह लगभग 70 लाख बैरल तेल और रिफाइंड उत्पादों के बराबर निर्यात करता है, जिसमें से लगभग 45 लाख बैरल कच्चे तेल का निर्यात होता है. लगभग 40 लाख बैरल से भी कम तेल समुद्री रास्ते से भेजा जाता है और उसमें से आधे से भी कम अब भारत आता है.
भारत अगर रूस से तेल खरीदना अगर बंद कर दे तो अमेरिका खुश हो जाएगा. लेकिन पूरे दुनिया में तेल की कीमतों में आग लग जाएगी. एक्सपर्ट् का कहना है कि दुनिया भर में तेल की मांग कमजोर है, ओपेक देशों की सप्लाई बढ़ रही है और तेल का भंडार भी ज्यादा है, इसलिए यह कुछ हद तक राहत देने वाल है, लेकिन फिर भी कच्चे तेल की कीमत 10 से 15 डॉलर प्रति बैरल तक बढ़ सकती हैं. इससे भारत को अरबों डॉलर का घाटा होगा. लेकिन दुनिया भर में तेल की कीमतें बढ़ेंगी. एक्सपर्ट बताते हैं कि यह मंदी और महंगाई एक साथ (जिसे स्टैगफ्लेशन कहते हैं) का खतरा बढ़ जाएगा. अमेरिका में भी ईंधन की कीमतें बढ़ेंगी, जिस से वहां सरकार पर राजनीतिक दबाव बढ़ेगा. अमेरिका में तो पेट्रोल पंपi]k, पर महंगाई से चुनावी समीकरण ही बदल सकते हैं.+