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“दुनिया में कहां-कहां वोट चोरी हुई? राहुल गांधी के आरोपों से शुरू हुई चर्चा”

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“दुनिया में कहां-कहां वोट चोरी हुई? राहुल गांधी के आरोपों से शुरू हुई चर्चा”

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार वोट चोरी के आरोप लगा रहे हैं. उन्होंने साल 2024 के लोकसभा चुनाव के साथ ही महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी वोट चोरी के आरोप लगाए हैं.

इसके साथ ही देश भर में जागरूकता अभियान शुरू किया है. आइए जान लेते हैं कि आखिर दुनिया में कब कहां वोट चोरी के मामले सामने आए?

सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि वोट चोरी है क्या? दरअसल, वोट चोरी का मतलब और कुछ नहीं, बल्कि चुनाव में धांधली से है. मतदाता सूची में गड़बड़ी, किसी का वोट किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा डालना, एक से अधिक स्थानों पर मतदाता सूची में नाम दर्ज कराना जैसे मामलों को वोट चोरी के रूप में देखा जा सकता है.

इस पर लगाम कसने के लिए कांग्रेस ने अब अपने नेता राहुल गांधी की डिजिटल वोटर लिस्ट देने की मांग का समर्थन किया है. इस मांग के लिए समर्थन जुटाने के लिए एक वेबसाइट जारी की है. साथ ही लोगों को मिस्ड कॉल के जरिए इस अभियान से जोड़ने के लिए एक मोबाइल नंबर भी जारी किया है.

अमेरिकी चुनाव में भी लगते रहे हैं धांधली के आरोप दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति पद के चुनाव में भी धांधली के आरोप लगते रहे हैं. खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने साल 2016 के चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे. हालांकि, बाद में वह खुद ही चुनाव में धांधली के मामले में फंस गए थे.

डोनाल्ड ट्रंप पर साल 2020 में हुए राष्ट्रपति चुनाव में जॉर्जिया में धांधली का आरोप लगा था. आरोप था कि डोनाल्ड ट्रंप ने जॉर्जिया के अफसरों पर दबाव डालकर जो बाइडन की जीत को पलटने की कोशिश की थी. आरोप था कि चुनाव को प्रभावित करने के लिए ट्रंप और जॉर्जिया के राज्य सचिव ब्रैड रैफेंसपर्गर के बीच फोन पर बात हुई थी. इसमें ट्रंप ने रैफेंसपर्गर से जॉर्जिया में चुनाव जीतने के लिए जरूरी वोट ढूंढने के लिए कहा था. हालांकि, बाद में ट्रंप लगातार इस तरह की किसी भी धांधली से इनकार करते रहे हैं. इसके अलावा अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने रिपोर्ट दी थी कि राष्ट्रपति पद के चुनाव में रूस ने हस्तक्षेप किया था. अब रूसी राष्ट्रपति के हवाले से ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि उनके चुनाव में रूस ने हस्तक्षेप नहीं किया था.

डोनाल्ड ट्रंप पर लगे थे आरोप. तुर्की में छपे थे ज्यादा बैलट पेपर, सामने आया फर्जीवाड़ा तुर्की में सात जून 2015 को हुए आम चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली के आरोप लगे थे. यह और बात है कि तब सत्ताधारी न्याय और विकास पार्टी 40.9 फीसदी वोट पाकर भी चुनाव हार गई थी. इसके बावजूद आरोप लगे थे कि चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति Recep Tayyip Erdoğan ने धांधली करने की योजना बनाई थी. इसमें यह भी शामिल था कि सत्ताधारी दल ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया.

सबसे बड़ा आरोप जो था, वह था गलत वोटर डाटा का. जिस तरह से वोटर लिस्ट में गलती के आरोप कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगा रहे हैं, उसी तरह से वोटर डाटा के गलत इस्तेमाल का आरोप तब तुर्की के राष्ट्रपति पर लगाया गया था. तुर्की के सुप्रीम इलेक्टोरल काउंसिल पर तब जरूरत से ज्यादा बैलट पेपर छपवाने का आरोप लगा था, जिससे विवाद और भी बढ़ गया था.

रोमानिया के राष्ट्रपति चुनाव सवालों के घेरे में आया था साल 2014 में हुआ रोमानिया के राष्ट्रपति पद का चुनाव भी सवालों के घेरे में रहा था. चुनाव का पहला चरण दो नवंबर 2014 को पूरा हुआ था, पर किसी भी प्रत्याशी को 50 फीसदी से अधिक वोट नहीं मिले थे, इसलिए 16 नवंबर 2014 को फिर से चुनाव कराए गए थे. इसमें Klaus Iohannis को राष्ट्रपति घोषित किया गया था. तब मतदाताओं ने इसके खिलाफ प्रदर्शन किया था और पूरी वोटिंग प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए थे.

इस नतीजे पर इसलिए भी सवाल खड़े हुए थे, क्योंकि दूसरे चरण के चुनाव से ठीक पहले नए राष्ट्रपति दौड़ में कहीं थे ही नहीं. इस चुनाव में घूसखोरी के आरोप तक लगे थे. कहा गया था कि चुनाव प्रचार के दौरान 6.5 मिलियन लोगों को खाना बांटा गया था.

तुर्की के तत्कालीन राष्ट्रपति एर्दोगन पर लगे थे आरोप.

आठ में से छह राज्यों में बढ़त के बावजूद हार गए थे रायला ओडिंगा केन्या में दिसंबर 2007 में हुआ आम चुनाव पर भी धांधली की छाया पड़ी थी. इस चुनाव में किबाकी और रायला ओडिंगा के बीच सीधा मुकाबला था. ओपिनियन पोल में साफ-साफ रायला आगे थे, जबकि किबाकी को विजेता घोषित कर दिया गया था. हालांकि, नेशनल एसेंबली में ओडिंगा की पार्टी ने बहुमत हासिल की थी. देश के आठ में से छह राज्यों में भी ओडिंगा की पार्टी को बहुमत मिला था.

ऐसे में चुनाव पर सवाल खड़े होने लगे थे. इसको देखते हुए किबाकी ने जल्दबाजी में पदभार संभाल लिया, जिसके बाद देश भर में हिंसा भड़क उठी थी. इसमें 1300 लोग मारे गए थे जबकि छह लाख से ज्यादा पलायन कर गए थे. हालांकि, बाद में ओडिंगा और किबाकी ने मिल कर सरकार बना ली और ओडिंगा को प्रधानमंत्री बनाया गया था.