पश्चिम बंगाल में लोगों के बीच एक अलग प्रकार का हड़कंप मचा हुआ है. लोग राज्य के मूल निवासी के पक्के कागज के लिए सरकारी दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं. हाल में बिहार में चुनाव आयोग के एसआईआर (विशेष गहन संशोधन) को देखते हुए पड़ोसी राज्य में भी दहशत का माहौल है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य के कई जिलों में लोग एसआईआर और एनआरसी को लेकर लोगों के बीच भय का माहौल है.
दरअसल, मुर्शिदाबाद जिले में SIR (विशेष गहन संशोधन) और NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) की आने की आशंका के बीच लोग डरे हुए हैं. जनता अपनी कागजात को मजबूत करने में जुटी हुई है. लोगों ने अपना पीड़ा मीडिया को बताया है. बहरमपुर नगरपालिका ऑफिस के बाहर अपने 11 साल के बेटे आसिफ के साथ खड़ी मॉयना खातून ने अपना कष्ट सुनाया है. उन्होंने बताया कि जन्म प्रमाणपत्र के पक्के कागज के लिए लंबी कतार में खड़ी हैं.
बंगाल में अफवाह फैलाया जा रहा है कि अगर आपके पास कागजात है, मगर इसका डिजिटलाइजेशन नहीं हुआ तो दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है. मॉयना खातून के पड़ोसियों ने बताया कि डिजिटल रिकॉर्ड भी “अपडेट” कराने होंगे. हालांकि, अधिकारियों के आश्वासन के बाद ही वह घर लौटीं.
अल्पसंख्यकों में समाया डर
पिछले दो हफ्तों से मुर्शिदाबाद और आसपास के गांवों में लोग सुबह तड़के से देर रात तक मैनुअल जन्म प्रमाणपत्रों को डिजिटल कराने के लिए जुट रहे हैं. यह दहशत 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले बिहार जैसी मतदाता सूची संशोधन की आशंका और NRC से नागरिकता छिनने के डर से उपजी है. बिहार में लाखों नाम मतदाता सूची से हटाए गए, जिसका डर अब बंगाल के अल्पसंख्यक समुदायों में फैल रहा है.
बंग्लादेशी घोषित होने की डर
सोशल मीडिया और अफवाहों ने लोगों के बीच डर को और बढ़ाया है. प्रवासी मजदूरों को ‘बांग्लादेशी‘ बताकर निकाले जाने की खबरें और दस्तावेजों के बिना बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता ने लोगों को परेशान कर रखा है. आंकड़े बताते हैं कि मध्य अगस्त तक बहरमपुर में रोज 50-60 डिजिटल प्रमाणपत्र जारी होते थे, लेकिन अब मांग 10-20 गुना बढ़कर 2 सितंबर को 1,000 तक पहुंच गई. नगरपालिका अध्यक्ष नरु गोपाल मुखर्जी ने बताया कि भीड़ को संभालने के लिए 20 अतिरिक्त कर्मचारी और विशेष कैंप लगाए गए हैं, फिर भी भीड़ कम नहीं हो रही. लगभग 98% आवेदक अल्पसंख्यक समुदाय से और 99% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं.
नाम में गड़बड़ी से लोग परेशान
दुर्लवपुर के साहबुद्दीन बिस्वास सुबह 3:30 बजे घर से निकले और 5:30 बजे काउंटर पर पहुंचे. वे अपनी छोटी बेटी तुहीना के मैनुअल प्रमाणपत्र को लेकर चिंतित हैं. बसंतपुर के शिक्षक सफीकुल इस्लाम ने कहा, ‘ड्राइविंग लाइसेंस भी अब डिजिटल हैं, इसलिए मैंने बच्चों के प्रमाणपत्र अपडेट कराए.’ दादपुर की ज्योत्स्ना बीबी को उपनामों में अंतर की चिंता है, क्योंकि उनके बच्चों के प्रमाणपत्र में पिता का उपनाम “अली” है, जबकि उनके दस्तावेजों में “शेख”.
भीड़ बढ़ने परेशान अधिकारी
जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने वाले अधिकारी पार्थसारथी रॉय ने बताया कि कर्मचारी इस भीड़ को संभालने में असमर्थ हैं. उन्होंने कहा, ‘हम लोगों को समझा रहे हैं कि बिना गलती वाले मैनुअल प्रमाणपत्र भी मान्य हैं, डिजिटल कराना अनिवार्य नहीं है.’ लालबाग नगरपालिका अध्यक्ष इंद्रजीत धर ने बताया कि डिजिटल प्रमाणपत्रों के लिए आवेदनों में 30% की वृद्धि हुई है. जिला मजिस्ट्रेट राजर्षि मित्रा ने आश्वासन दिया कि मैनुअल प्रमाणपत्र मान्य हैं और अफवाहों से घबराने की जरूरत नहीं है, लेकिन अफवाहें आश्वासनों से तेजी से फैल रही हैं.