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400 गांवों में स्थानीय भाषा का दबदबा, हिंदी बनी संवाद की भाषा, हिंदी ने दी शिक्षा को उड़ान, शिक्षा बनी आसान…

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कभी माओवादियों का गढ़ रहे गंगालूर में अब बदलाव की बयार है। मास्टरजी ककहरा पढ़ाते हैं और गोंडी में अर्थ समझाते हैं। सुकमा बीजापुर और नारायणपुर के 400 से अधिक गांवों में गोंडी हल्बी दोरली जैसी स्थानीय बोली ही संवाद का आधार थी। अब बच्चे हिंदी सीखकर बाहरी दुनिया से संवाद कर रहे हैं। वहीं हिंदी से पढ़ाई भी काफी आसान हो गई है। कभी माओवादियों का गढ़ कहे जाने वाले गंगालूर में अब बदलाव की बयार बह रही है। छत्तीसगढ़ में बीजापुर जिले में स्थित इस क्षेत्र में लगभग एक साल पहले कावड़गांव स्कूल खोला गया था। अब यहां हर सुबह गोलियों की गड़गड़ाहट नहीं, बल्कि बच्चों की चहक सुनाई देती है। मास्टरजी जब ककहरा पढ़ाते हैं और गोंडी में उसका अर्थ समझाते हैं, तो बच्चे सामूहिक रूप से अक्षर दोहराते हैं। पिछले कुछ दशकों से इस इलाके में हिंदी कहीं गुम सी हो गई थी। मगर, अब यह आवाजें उम्मीद का नया अध्याय खोल रही हैं।