दिल्ली हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) जब्त या फ्रीज की गई संपत्ति को अपने पास रखने की मांग करते समय ‘धन शोधन निवारण अधिनियम’ (PMLA) में दिए गए नियमों को नजरअंदाज नहीं कर सकता है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी व्यक्ति को मनमाने ढंग से संपत्ति रखने से बचाने के लिए प्रक्रिया से जुड़े सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद और हरीश वदियन शंकर की पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि इससे पहले कि ED किसी संपत्ति को अपने पास रखने की अनुमति मांगे, एक अधिकृत अधिकारी को सबसे पहले एक औपचारिक आदेश पारित करके यह बताना होगा कि 180 दिनों तक संपत्ति को अपने पास रखना क्यों जरूरी है।
कोर्ट ने कहा कि इस अहम कदम के बिना, निर्णायक प्राधिकरण (adjudicating authority) कानूनी रूप से यह तय नहीं कर सकता है कि संपत्ति का संबंध मनी लॉन्ड्रिंग से है या नहीं। निर्णायक प्राधिकरण एक अर्ध-न्यायिक निकाय है, जिसे केंद्र द्वारा PMLA की धारा 6 के तहत नियुक्त किया जाता है। यह तय करने में इसकी अहम भूमिका है कि ED द्वारा कुर्क या जब्त की गई संपत्ति मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है या नहीं, और ऐसी कुर्की की वैधता की पुष्टि करना भी इसी का काम है।
यह फैसला ED की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आया, जिसमें उसने फरवरी 2019 के ‘PMLA अपीलीय न्यायाधिकरण’ (PMLA appellate tribunal) के फैसले को चुनौती दी थी। अपीलीय न्यायाधिकरण ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में आरोपी से जुड़ी जब्त या फ्रीज की गई संपत्तियों को अपने पास रखने की ED की अर्जी खारिज कर दी थी। अपीलीय न्यायाधिकरण ने संपत्ति रखने की अनुमति देने वाले निर्णायक प्राधिकरण (adjudicating authority) के आदेश को पलट दिया था। न्यायाधिकरण ने यह निष्कर्ष निकाला था कि जब्त की गई संपत्ति को जिस तरह से रखा गया था, वह PMLA की योजना के अनुरूप नहीं था।
हाई कोर्ट में अपनी याचिका में, जांच एजेंसी ने यह दावा किया था कि ज़ब्त या फ्रीज की गई संपत्ति को रखने के लिए औपचारिक आदेश जारी करना कानूनी या प्रक्रिया से जुड़ी कोई जरूरी शर्त नहीं है, ताकि धारा 17(4) के तहत संपत्ति को अपने पास रखा जा सके। ED ने आगे यह भी तर्क दिया कि धारा 20 के तहत दिए गए प्रक्रिया से जुड़े नियम केवल निर्देशिका (directory) हैं, अनिवार्य (mandatory) नहीं।
हालांकि, आरोपी के वकील ने यह दलील दी कि अधिकृत अधिकारी द्वारा संपत्ति को अपने पास रखने का औपचारिक आदेश यह सुनिश्चित करता है कि निर्णायक प्राधिकरण के पास सभी जरूरी जानकारी हो, इससे पहले कि वह ED को मनी लॉन्ड्रिंग में उसकी संलिप्तता की जांच के लिए एक साल तक जब्त की गई संपत्ति को अपने पास रखने की अनुमति दे।
धारा 17(4) के तहत, एक अधिकृत ED अधिकारी को खोजबीन, जब्ती, या फ्रीज करने के आदेश के 30 दिनों के भीतर निर्णायक प्राधिकरण (adjudicating authority) के सामने एक आवेदन दाखिल करना होता है, ताकि जब्त या फ्रीज की गई संपत्ति को अपने पास रखने की अनुमति मिल सके। वहीं, धारा 20 का संबंध जब्त या फ्रीज की गई संपत्ति को अपने पास रखने से है। इसके लिए, ED निदेशक द्वारा अधिकृत एक अधिकारी को एक अलग और स्वतंत्र आदेश पारित करना होता है, जिसमें यह बताया जाता है कि संपत्ति को 180 दिनों तक अपने पास रखना क्यों जरूरी है। ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि निर्णायक प्राधिकरण यह फैसला कर सके कि संपत्ति मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है या नहीं और उसकी कुर्की (attachment) की पुष्टि कर सके।
न्यायमूर्ति शंकर की ओर से लिखे गए इस फैसले में बेंच ने कहा कि वैध आदेश के बिना सीधे आवेदन देना कानूनी जरूरतों को नजरअंदाज करने जैसा होगा। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के शॉर्टकट से ऐसे व्यक्ति के लिए गंभीर और कठोर परिणाम हो सकते हैं, जिसकी संपत्ति जब्त या फ्रीज की गई है। कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रक्रिया से जुड़े सुरक्षा उपायों का पालन किए बिना पारित किया गया कोई भी आदेश अमान्य (void) होगा।
कोर्ट ने कहा, “धारा 20 जब्त फ्रीज या की गई संपत्ति को अपने पास रखने के संबंध में एक प्रक्रिया से जुड़ा सुरक्षा उपाय है। इसे दरकिनार करके संपत्ति को अपने पास रखने की अनुमति देना कानून के आदेश का उल्लंघन होगा और PMLA में प्रक्रिया से जुड़े सुरक्षा उपायों को शामिल करने के उद्देश्य को ही खत्म कर देगा।”
अपने 41 पन्नों के फैसले में, कोर्ट ने यह बात भी कही: “धारा 20 किसी भी ज़ब्ती के दिन से लागू होती है और जब्त किए गए सामान को 180 दिनों तक अपने पास रखने के लिए इसे लागू करना होगा। सीधे शब्दों में कहें, धारा 17 के तहत जब्ती या फ्रीज करने की कार्रवाई के बाद, धारा 20 के प्रावधानों को सौंप दिया जाएगा। हमारी राय में कानून ऐसा कोई रास्ता नहीं देता है, जिसमें सीधे धारा 17(4) के प्रावधानों का सहारा लिया जा सके।”