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“ट्रंप टैरिफ के जवाब में भारत ने तेज की FTA पर बातचीत, FDI के साथ निर्यात बढ़ाने में भी मिलेगी मदद”

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अपने सबसे बड़े ट्रेड पार्टनर अमेरिका की तरफ से टैरिफ (Trump tariffs) के रूप में व्यापार बाधा खड़ी करने के बाद भारत ने मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) के जरिए निर्यात बढ़ाने की कोशिशें तेज कर दी हैं।

इस तेजी की एक झलक इन बातों से मिलती है – सोमवार को ब्रुसेल्स में भारत-यूरोपीय यूनियन के बीच FTA के लिए 14वें दौर की वार्ता शुरू होगी। खाड़ी देश कतर के साथ एफटीए वार्ता आगे बढ़ाने के लिए वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल 6-7 अक्टूबर को दोहा का दौरा कर रहे हैं। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर इसी हफ्ते भारत आने वाले हैं, और उनके साथ वार्ता में एफटीए के कार्यान्वयन पर फोकस की उम्मीद है। इससे पहले 1 अक्टूबर को यूरोपियन फ्री ट्रेड एसोसिएशन (EFTA) के साथ भारत का व्यापार समझौता लागू हो गया जिसे पारंपरिक FTA से भी बढ़कर माना जा रहा है। हालांकि इन समझौतों पर आगे बढ़ना आसान नहीं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा परिस्थितियों में निर्यात बढ़ाने के लिए यह जरूरी है।

भारत की जीडीपी में EU की कंपनियों की 5% हिस्सेदारी

ब्रुसेल्स में यूरोपीय यूनियन के साथ 14वे दौर की वार्ता आज शुरू हो रही है। भारत-ईयू आर्थिक साझेदारी के बारे में बताते हुए यूरोपीय यूनियन के राजदूत हर्वे डेल्फिन ने कहा कि भारत में ईयू की कंपनियों ने 2024 में कुल 186 अरब यूरो का कारोबार किया, जो भारतीय अर्थव्यवस्था का लगभग 5% है। इन कंपनियों ने 23.5 अरब यूरो का निर्यात किया, जो भारत के कुल वस्तु निर्यात का लगभग 6% है। उन्होंने कहा कि वार्ता दल के सदस्य कड़ी मेहनत कर रहे हैं, हालांकि बातचीत चुनौतीपूर्ण है और महत्वपूर्ण मुद्दों को सुलझाना आवश्यक है।

उन्होंने बताया कि ईयू और भारत एक निवेश संरक्षण समझौते (Investment Protection Agreement) पर भी बात कर रहे हैं जिसका उद्देश्य निवेशकों के लिए एक सुरक्षित और पारदर्शी वातावरण बनाना है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था में उच्च स्तर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आ सके। उन्होंने कहा, एफटीए वार्ता के 13वें दौर में अपेक्षित सफलता नहीं मिली। यूरोपीय यूनियन एक सार्थक पैकेज के लिए तैयार था और अब भी तैयार है।

ईयू चाहता है कि भारत ऑटोमोबाइल पर आयात शुल्क कम करे। इसके अलावा वह वाइन तथा अन्य कृषि उत्पादों का निर्यात भी बढ़ाना चाहता है। भारत की मांग ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ श्रम सघन सेक्टर के लिए ड्यूटी-फ्री एक्सेस की है। भारत की एक और चिंता जनवरी 2026 से लागू होने वाला कार्बन टैक्स है। इससे भारत के लिए स्टील, एल्युमिनियम, सीमेंट और उर्वरकों का निर्यात मुश्किल होगा।

द्विपक्षीय व्यापार अभी कतर के पक्ष में

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल 6 से 7 अक्टूबर को कतर की राजधानी दोहा के दौरे पर हैं। उनकी इस यात्रा में एफटीए पर व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) के लिए टर्म्स ऑफ रेफरेंस को अंतिम रूप दिया जा सकता है। मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि गोयल की इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापार की समीक्षा, मौजूदा व्यापार बाधाओं और नॉन-टैरिफ मुद्दों के समाधान पर व्यापक चर्चा होने की उम्मीद है।

बयान में कहा गया है, “वित्त, कृषि, पर्यावरण, पर्यटन, संस्कृति और स्वास्थ्य सेवा जैसे अन्य प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग भी भारत और कतर के बीच बहुआयामी साझेदारी को गहरा करने के उद्देश्य से होने वाली चर्चाओं का एक अभिन्न अंग होगा।” भारत-कतर संयुक्त व्यापार परिषद की पहली बैठक के लिए गोयल के साथ उद्योग प्रतिनिधिमंडल भी जा रहा है। दोनों देश इस हफ्ते ट्रेड डील का ऐलान कर सकते हैं।

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव (GTRI) के अनुसार वित्त वर्ष 2024-25 में भारत-कतर व्यापार 14.15 अरब का रहा, जिसमें ज्यादातर हिस्सा ऊर्जा का था। कतर से भारत के कुल आयात में 89% हिस्सा पेट्रोलियम का था, जिसकी वजह से भारत का व्यापार घाटा 10.78 अरब डॉलर रहा। भारत ने कतर को 1.68 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया, जिसमें लोहा और इस्पात, बासमती चावल और आभूषण प्रमुख थे। आयात बढ़कर 12.46 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया। कतर में 8 लाख से अधिक भारतीय रहते और काम करते हैं, जो रेमिटेंस का एक प्रमुख स्रोत है।

GTRI के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के मुताबिक पिछले महीने दोहा में इजराइली हमले ने सुरक्षा को लेकर अमेरिका की सीमाओं को उजागर किया है। उस घटना के बाद कतर दूसरे देशों के साथ संबंधों में विविधता लाने के प्रयास कर रहा है। कतर भारत को निवेश, टेक्नोलॉजी और रणनीतिक सहयोग के लिए एक स्थिर एशियाई साझेदार के रूप में भी देखता है।

भारत के लिए भी कतर पश्चिम एशिया रणनीति में एक महत्वपूर्ण साझेदार है। कतर भारत के एलएनजी और एलपीजी के प्रमुख सप्लायरों में से एक है। श्रीवास्तव के अनुसार, दोहा के साथ घनिष्ठ राजनीतिक संबंध भारत को खाड़ी क्षेत्र में, विशेष रूप से क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता के बीच, संबंधों को संतुलित करने में मदद करते हैं।

श्रीवास्तव का सुझाव है कि भारत को रसायनों, उर्वरकों और धातुओं में औद्योगिक साझेदारी को बढ़ावा देकर आयात में विविधता लानी चाहिए। इंजीनियरिंग वस्तुओं, मशीनरी और मूल्यवर्धित खाद्य उत्पादों के निर्यात का विस्तार करना चाहिए। इसके अलावा रणनीतिक संबंधों को गहरा करने के लिए ऊर्जा इन्फ्रास्ट्रक्चर में संयुक्त उद्यमों की संभावनाएं तलाशनी चाहिए।

स्टारमर के भारत दौरे में एफटीए कार्यान्वयन पर बात

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के बाद कीर स्टारमर पहली बार भारत आ रहे हैं। इस यात्रा में बढ़ती आर्थिक साझेदारी और मुक्त व्यापार समझौते के कार्यान्वयन पर चर्चा होने की उम्मीद है। खबरों के अनुसार मुंबई में 9 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और स्टारमर ‘विज़न 2035’ के अनुरूप भारत-ब्रिटेन व्यापक रणनीतिक साझेदारी में प्रगति का जायजा लेंगे। दोनों नेता उद्योगपतियों के साथ भी चर्चा करेंगे।

भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता दुनिया की पांचवीं और छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ता है। ब्रिटेन ने एफटीए के तहत 99.1% टैरिफ लाइन पर जीरो ड्यूटी की पेशकश की है। कुल 26 अध्याय वाला यह एफटीए सबसे व्यापक है। यह समझौता भारतीय बिजनेस को कपड़ा, चमड़ा, जूते, खेल के सामान और खिलौने, रत्न एवं आभूषण, इंजीनियरिंग सामान, ऑटो पार्ट्स और इंजन जैसे क्षेत्रों में बाजार पहुंच प्रदान करेगा।

EFTA से भारत में विदेशी निवेश बढ़ने की उम्मीद

भारत और यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के बीच व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौता (TEPA) 1 अक्टूबर से लागू हो गया है। EFTA में स्विट्जरलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन शामिल हैं। उद्योग चैंबर फिक्की की डायरेक्टर जनरल ज्योति विज ने एक लेख में लिखा है कि यह समझौता अन्य पारंपरिक FTA से कहीं बढ़कर है। यह पहला व्यापार समझौता है जिसमें अगले 15 वर्षों में 100 अरब डॉलर के निवेश और 10 लाख से ज्यादा रोजगार सृजन की प्रतिबद्धताएं शामिल हैं। TEPA सुनिश्चित करता है कि व्यापार उदारीकरण सीधे तौर पर ‘मेक इन इंडिया’ का समर्थन करे और वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में इसके इंटीग्रेशन को मजबूत करे।

यह समझौता भारत के लिहाज से इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसके तहत अगले 15 वर्षों में होने वाला निवेश भारत की 4 ट्रिलियन (लाख करोड़) डॉलर की अर्थव्यवस्था को 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए भारत को निवेश दर मौजूदा लगभग 30% से बढ़ाकर कम से कम 33-34% करना होगा।

फिक्की की डीजी के अनुसार, पिछले 11 वर्षों में कुल लगभग 750 अरब डॉलर का एफडीआई आया है। लेकिन उच्च आय वाली अर्थव्यवस्था बनने के लिए वर्ष 2035 तक 2 ट्रिलियन डॉलर से अधिक और 2040 तक और 2.4 ट्रिलियन डॉलर के एफडीआई की आवश्यकता है। नई दिल्ली में आयोजित भारत-ईएफटीए समृद्धि शिखर सम्मेलन यह उम्मीद देता है कि TEPA के तहत 100 अरब डॉलर निवेश का लक्ष्य बहुत कम समय में पूरा हो जाएगा।

ज्योति विज के अनुसार, यदि भारत अगले 10 वर्षों में EFTA से 75-100 अरब डॉलर आकर्षित करने में कामयाब रहा तो तो भारत में कुल FDI प्रवाह में इन चार देशों की हिस्सेदारी लगभग 4-5% होगी, जो अभी 1.6% है। यदि भारत अन्य विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ TEPA मॉडल को दोहराने में कामयाब होता है, तो यह निवेश आधारित विकास के चक्र को गति प्रदान कर सकता है।