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“रूसी बाजार में भारत: अमेरिका के उड़ेंगे होश! तेजी से भारत और रूस के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत…

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अमेरिका की ट्रैरिफ नीति और रूस-यूक्रेन युद्ध से अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में आए बदलावों ने भारत के लिए एक अभूतपूर्व अवसर तैयार कर दिया है। पश्चिमी देशों की कंपनियों के रूस से हटने के बाद जो खाली जगह बनी है, उसे भरने का मौका अब भारतीय कंपनियों, खासकर एमएसएमई सेक्टर के पास है।

जिस तेजी से भारत और रूस के बीच व्यापारिक रिश्ते मजबूत हो रहे हैं, उससे साफ है कि आने वाले वर्षों में भारतीय उत्पादों की मौजूदगी रूसी बाजार में बड़े स्तर पर बढ़ने वाली है।

क्यों रूस में है भारत के लिए सुनहरा मौका? हाल के वर्षों में पश्चिमी प्रतिबंधों और भू-राजनीतिक तनावों के चलते रूस को वैकल्पिक साझेदारों की तलाश है और भारत एक मजबूत विकल्प के रूप में उभर रहा है। रूस को खाद्य सामग्री, दवाएं, इंजीनियरिंग सामान, तकनीकी उपकरण, टेक्सटाइल और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आपूर्ति की जरूरत है। और भारत इन सभी क्षेत्रों में न केवल उत्पादन करता है, बल्कि लागत और गुणवत्ता दोनों के मामले में प्रतिस्पर्धी भी है। MSME के लिए खुला दरवाज़ा भारत के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) अब रूस में अपनी जड़ें जमाने की स्थिति में हैं। रूस की अग्रणी एग्जिबिशन कंपनी ITE Group के सीईओ दिमित्री जावगोरोडनी ने भी माना कि भारत के लिए यह मौका सिर्फ असाधारण नहीं, बल्कि ऐतिहासिक है।

ITE ग्रुप भारत में रोड शो आयोजित कर रहा है ताकि छोटे भारतीय उद्यमियों को रूसी बाजार की संभावनाओं से जोड़ा जा सके व्यापार में असंतुलन: भारत के लिए अवसर? भले ही भारत-रूस का द्विपक्षीय व्यापार 68.7 अरब डॉलर तक पहुंच गया हो, लेकिन यह संतुलित नहीं है। भारत रूस से बहुत ज्यादा आयात कर रहा है (मुख्यतः तेल और उर्वरक), जबकि भारतीय निर्यात मात्र 4.88 अरब डॉलर के आसपास है। यह अंतर दिखाता है कि भारत को अब निर्यात बढ़ाने के प्रयासों में तेजी लाने की जरूरत है। ITE ग्रुप और भारतीय दूतावास जैसे संस्थानों की कोशिश यही है की भारत के कारोबारियों को प्रोत्साहित किया जाए कि वे आगे आएं और रूसी बाजारों को समझें।

अमेरिका और पश्चिमी देशों की बढ़ेगी चिंता? बता दें की जैसे-जैसे भारत रूस के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत कर रहा है, यह अमेरिका और यूरोप की भूराजनीतिक रणनीति के लिए चुनौती बनता जा रहा है। भारत का यह रुख साफ संकेत देता है कि वह स्वतंत्र विदेश नीति और व्यापारिक संतुलन की ओर बढ़ रहा है, जिसमें पश्चिमी देशों पर निर्भरता घटाकर बहुपक्षीय साझेदारियों को बढ़ावा दिया जा सके।