भाजपा के शीर्ष नेतृत्व में फेरबदल को लेकर नवरात्रि के पावन अवसर पर नई सुगबुगाहट तेज हो गई है। लंबे समय से लंबित भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर अब जिस नाम पर अंदरखाने मंथन चल रहा है, वह है-डॉ. सुधा यादव।
संसदीय बोर्ड की सदस्य और राष्ट्रीय सचिव के रूप में पहले से ही संगठन में सक्रिय भूमिका निभा रहीं सुधा यादव का नाम अब इस पद के लिए गंभीरता से चर्चा में है।
भाजपा नेतृत्व से जुड़े विश्वसनीय सूत्रों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की जोड़ी एक बार फिर चौंकाने वाले फैसले की ओर बढ़ रही है। इस बार नजरें टिकी हैं उस महिला पर जो एक शहीद की पत्नी हैं, ओबीसी समुदाय से आती हैं और जिनका राजनीति में प्रवेश भी एक असामान्य परिस्थिति में हुआ था।
डॉ. सुधा यादव का भाजपा सफर वर्ष 1999 से शुरू होता है, जब नरेंद्र मोदी हरियाणा भाजपा के प्रभारी और पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री हुआ करते थे। महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता राव इंद्रजीत सिंह के खिलाफ भाजपा उम्मीदवार उतारने के लिए मोदी ने जिस नाम पर भरोसा जताया, वह थीं डॉ. सुधा यादव-एक शिक्षिका, एक शहीद की पत्नी, और तब तक राजनीति से कोसों दूर।
प्रधानमंत्री मोदी के फोन कॉल और आग्रह ने डॉ. सुधा यादव को राजनीति में प्रवेश करने का मन बनाया। आर्थिक सहयोग की भी व्यवस्था मोदी ने स्वयं की-अपनी मां द्वारा दिए गए 11 रुपये से शुरुआत कर, उन्होंने पूरे हरियाणा से ₹7 लाख से अधिक की राशि जुटाकर उन्हें चुनाव लड़वाया। नतीजा? एक लाख से अधिक वोटों से ऐतिहासिक जीत। यह वह दौर था जब भाजपा हरियाणा में पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रही थी, और सुधा यादव की जीत ने पार्टी के आत्मविश्वास को नया आधार दिया।
आज, जब भाजपा नेतृत्व महिला सशक्तिकरण, सामाजिक समावेशिता और शहीद परिवारों के प्रति सम्मान का संदेश देना चाहता है-डॉ. सुधा यादव का नाम राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में एक रणनीतिक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है।
डॉ. सुधा यादव के शैक्षणिक रिकॉर्ड भी उतने ही प्रभावशाली हैं। रुड़की विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में एमएससी, पीएचडी, और गोल्ड मेडलिस्ट होने के साथ-साथ, वे एक शिक्षिका के रूप में अपने करियर की शुरुआत करना चाहती थीं। लेकिन पति के शहीद होने के बाद, देशसेवा का मार्ग राजनीति के रूप में उनके सामने आया।
2022 में जब भाजपा ने अपने संसदीय बोर्ड में बड़े बदलाव किए, तब नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान जैसे वरिष्ठ नेताओं को बाहर कर सुधा यादव को सदस्य बनाया गया। तब से वे भाजपा के निर्णय लेने वाली सर्वोच्च इकाई में एकमात्र महिला सदस्य हैं। यह पद उन्हें केवल प्रतीकात्मक रूप से नहीं, बल्कि संगठनात्मक सोच और विश्वसनीयता के आधार पर सौंपा गया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से भी अब महिला नेतृत्व को प्राथमिकता दिए जाने के संकेत मिल रहे हैं। हाल ही में संघ द्वारा “मातृ शक्ति”, “नारी वंदन”, और “राष्ट्रीय सेविका समिति” के विस्तार कार्यक्रमों के जरिए महिलाओं की भूमिका पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में, शहीद परिवार से आने वाली, शिक्षित, और ओबीसी वर्ग की प्रतिनिधि सुधा यादव को भाजपा का शीर्ष चेहरा बनाना पार्टी के लिए न केवल सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से सटीक निर्णय होगा, बल्कि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव और 2026 की राजनीतिक जमीन तैयार करने के लिहाज से भी अहम होगा।
बिहार में महिला मतदाताओं का प्रतिशत करीब 45% है और हाल ही में भाजपा-जेडीयू सरकार द्वारा महिलाओं को आर्थिक सशक्तिकरण के तहत ₹10,000 की सहायता राशि देने की शुरुआत की गई है। यदि भाजपा अध्यक्ष पद पर एक महिला, और वह भी ओबीसी समुदाय से हो, तो यह विपक्ष-विशेष रूप से यादव बहुल आरजेडी और इंडिया गठबंधन-के लिए एक राजनीतिक चुनौती बन सकती है।
डिजिटल जनगणना और 33% महिला आरक्षण जैसे राष्ट्रीय मुद्दों के परिप्रेक्ष्य में भी भाजपा की यह रणनीति उसे ‘विकास और समावेशिता’ के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर सकती है।
राजनीतिक गलियारों में डॉ. सुधा यादव को प्रधानमंत्री मोदी की कोर टीम का हिस्सा माना जाता है। संगठन में वह कई बार ओबीसी मोर्चा की प्रभारी भी रही हैं और 2015 में उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया गया था। उनके अनुभव, संगठन में पकड़ और सामाजिक पृष्ठभूमि को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि भाजपा उन्हें अपनी पहली महिला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाती है, तो यह पार्टी के लिए इतिहास रचने जैसा होगा।