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“US डॉलर पर बड़ा प्रहार, ब्रिक्स देशों के बीच रुपये में ट्रेड की अनुमति; टैरिफ के खिलाफ भारत का जवाब”

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“US डॉलर पर बड़ा प्रहार, ब्रिक्स देशों के बीच रुपये में ट्रेड की अनुमति; टैरिफ के खिलाफ भारत का जवाब”

इंडियन इकोनॉमी ने वर्ल्ड करेंसी सिस्टम में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है। ब्रिक्स देशों के साथ सभी लेन-देन सीधे रुपये में करने की अनुमति देकर, भारत ने अमेरिकी डॉलर के दशकों से चले आ रहे वर्चस्व को एक बड़ी चुनौती दी है।

इस फैसले से भारत की आर्थिक मजबूती बढ़ने और डॉलर पर उसकी निर्भरता कम होने की उम्मीद है। वर्तमान में वैश्विक मुद्रा लेनदेन का 90 प्रतिशत डॉलर में होता है। पेट्रोलियम व्यापार लगभग 100 प्रतिशत डॉलर में होता था।

हालांकि, साल 2023 से यह तस्वीर बदलने लगी है। आज, दुनिया के 20 प्रतिशत तेल लेनदेन गैर-अमेरिकी मुद्राओं में होते हैं। अगर यह आंकड़ा बढ़ता है, तो डॉलर का प्रभुत्व खत्म होते देर नहीं लगेगी। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा हाल ही में जारी एक परिपत्र के अनुसार, बैंकों को अब वोस्ट्रो खाते खोलने के लिए पूर्व अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है। इस निर्णय से विदेशी बैंक सीधे रुपये में लेनदेन कर सकेंगे, जिससे डॉलर की बजाय रुपये का उपयोग करना आसान हो जाएगा।

वोस्ट्रो अकाउंट क्या है? वोस्ट्रो अकाउंट मूलतः किसी विदेशी बैंक द्वारा किसी देश के किसी भी बैंक में खोला गया एक अकाउंट होता है। इस अकाउंट का इस्तेमाल स्थानीय करेंसी के लेनदेन के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी अमेरिकी बैंक का भारत के किसी बैंक में वोस्ट्रो अकाउंट है, तो वह अमेरिकी बैंक उस अकाउंट से रुपये में लेनदेन कर सकता है। इससे इंपोर्ट और एक्सपोर्ट लेनदेन आसान हो जाता है।

टैरिफ के खिलाफ ट्रंप को जवाब ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों की संयुक्त जनसंख्या लगभग 3 अरब है। उनका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद लगभग 24 ट्रिलियन डॉलर है। इस महासंघ में रुपये को मान्यता मिलने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी स्थिति काफी मजबूत होगी।

दिलचस्प बात यह है कि यह सर्कुलर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाए जाने के बाद ही जारी किया गया था। इसलिए, इस फैसले को अमेरिकी नीतियों के खिलाफ एक जवाबी कदम के रूप में भी देखा जा रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि भारत का यह कदम न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इस फैसले का क्या होगा असर? इस फैसले से भारतीय रुपये का प्रभुत्व बढ़ेगा, डॉलर का प्रभुत्व कम होगा और वैश्विक बाजार में एक नया शक्ति संतुलन बनेगा। इससे भारत को अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में मदद मिलेगी। साथ ही, रुपये में लेनदेन बढ़ने से एक्सचेंज रेट स्थिर रहेगी और स्थानीय मुद्रा मजबूत होगी।