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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी, महागठबंधन और एनडीए- रैलियों और बैठकों से लेकर रणनीति

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बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है, राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी, महागठबंधन और एनडीए- रैलियों और बैठकों से लेकर रणनीति

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी अपने चरम पर है। रैलियों और बैठकों से लेकर रणनीति और सोशल मीडिया तक, हर स्तर पर दलों की सक्रियता बढ़ गई है। लेकिन इस चुनाव का सबसे अहम सवाल जनता के मूड से ज्यादा अब सीट बंटवारे के समीकरण पर टिक गया है। सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, दोनों खेमों में सीट शेयरिंग पर गुत्थी उलझी हुई है।

महागठबंधन: आठ दल और अनगिनत दावेदारी

महागठबंधन में इस बार राजद, कांग्रेस, वीआईपी, भाकपा, माकपा और भाकपा-माले पहले से शामिल थे। अब पशुपति कुमार पारस की रालोजपा और झामुमो भी इसमें जुड़ गए हैं। इसके साथ ही गठबंधन का आकार तो बड़ा हुआ है, लेकिन सीटों का समीकरण और जटिल हो गया है। राजद भले ही सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर नेतृत्व कर रही हो, मगर सहयोगियों की मांगें इतनी ऊंची हैं कि सभी को संतुष्ट करना लगभग असंभव दिखता है।

कांग्रेस और भाकपा-माले पहले से ही ज्यादा सीटों की मांग पर अड़ी हुई हैं। झामुमो की नजर आदिवासी बहुल इलाकों-चकाई, कटोरिया और इसी तरह की सीटों पर है। उसकी मांग 12 सीटों तक पहुंच गई है, जबकि उसे 4 से 6 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है। रालोजपा आधा दर्जन सीटों की दावेदारी कर रही है, लेकिन शायद 2-3 सीटों से ही संतुष्ट होना पड़े।

मुकेश सहनी की वीआईपी भी महागठबंधन का अहम हिस्सा है। वे सार्वजनिक मंचों पर बार-बार कहते हैं कि “सबकुछ ठीक चल रहा है”, लेकिन अंदरखाने उनकी महत्वाकांक्षाएं बड़ी हैं। सहनी उपमुख्यमंत्री पद तक का दावा करने का संकेत दे चुके हैं। इन हालात में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे कांग्रेस को भी खुश रखें, वाम दलों की महत्वाकांक्षाओं को भी सीमित करें और नए सहयोगियों को भी सम्मानजनक जगह दें।

एनडीए: अपने ही घर में बढ़ी तनातनी दूसरी ओर, एनडीए में भी स्थिति बिल्कुल आसान नहीं है। चिराग पासवान इस बार 40 से अधिक सीटों की मांग पर अड़े हैं। वहीं जीतन राम मांझी की पार्टी 20 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं है। उपेंद्र कुशवाहा की भी जातीय आधार पर प्रभाव वाली सीटों पर मजबूत दावेदारी है।

भाजपा और जेडीयू के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वे इन दावेदारियों को किस तरह संतुलित करें। अगर सहयोगियों को उनकी अपेक्षा के अनुसार सीटें नहीं मिलतीं, तो बगावत और असंतोष की स्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।

समीकरण बदल सकते हैं नए खिलाड़ी इस बार के चुनाव में दो नाम ऐसे हैं जिन पर सबकी नजर है। एक प्रशांत किशोर और दूसरा नाम तेज प्रताप यादव का है। जन सुराज पार्टी के संस्थापक PK अभी तक किसी गठबंधन का हिस्सा नहीं बने हैं। उनकी रणनीति अगर सही वक्त पर आई तो कई सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय हो सकता है।

लालू प्रसाद यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव राजद से लगातार नाराज़ चल रहे हैं, तेज प्रताप अगर अंत तक मनाए नहीं गए तो महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बिहार चुनाव 2025 की तस्वीर यह साफ कर रही है कि असली लड़ाई केवल जनता को रिझाने की नहीं है। यह चुनाव गठबंधन के भीतर तालमेल और सीट बंटवारे के संतुलन की भी परीक्षा है।

महागठबंधन और एनडीए- दोनों खेमों में पेंच फंसना तय महागठबंधन और एनडीए – दोनों खेमों में पेंच फंसना तय है। अगर सहयोगियों को नाराज़ किया गया तो वे बगावत कर सकते हैं, और अगर उनकी हर मांग मान ली गई तो बड़े दलों की सीटें घट जाएंगी। ऐसे में राजनीतिक गणित पूरी तरह से बदल सकता है।

यही वजह है कि बिहार की सियासत में आज हर किसी की निगाहें प्रशांत किशोर और तेज प्रताप यादव जैसे अनिश्चितता के केंद्रों पर भी टिकी हैं। कुल मिलाकर, 2025 का बिहार चुनाव सीटों की गिनती से कहीं ज्यादा गठबंधन की जोड़-तोड़ और अंदरूनी राजनीति का इम्तिहान साबित होगा।