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‘’Roads In India: क्यों बार-बार टूटती हैं भारत की सड़कें? क्या हैं नियम और कैसे हो रहा भ्रष्टाचार?”

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शहर का विकास सिर्फ ऊंची-ऊंची इमारतों से नहीं, बल्कि उसकी सड़कों से भी मापा जाता है। सड़कें किसी भी शहर का सबसे अहम हिस्सा होती हैं। ये न केवल आवाजाही का माध्यम हैं, बल्कि व्यापार, अर्थव्यवस्था, सामाजिक मेलजोल और आपातकालीन सेवाओं तक पहुंच की भी रीढ़ हैं।

सड़कों की अहमियत शहर की सड़कें केवल गाड़ियों और लोगों के आने-जाने का रास्ता नहीं हैं। ये पुलिस, एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड जैसी सेवाओं के लिए जीवनरेखा हैं। व्यापारियों और उद्योगों के लिए सामान पहुंचाने से लेकर बच्चों के स्कूल जाने तक, हर काम सड़क पर निर्भर है। सड़कें केवल परिवहन का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक जीवन का भी हिस्सा हैं। यहां लोग मिलते हैं, त्योहार मनाते हैं, जुलूस निकलते हैं और कई बार राजनीतिक सभाएं भी होती हैं।

भारतीय सड़कों की समस्या इतनी केंद्रीय भूमिका के बावजूद, भारत की शहरी सड़कें अक्सर खराब हालत में रहती हैं। टूटी-फूटी सड़कों, गड्ढों, अंधेरी गलियों और खुले नालों के कारण पैदल चलना भी मुश्किल हो जाता है। समस्या का एक कारण यह भी है कि भारतीय शहरों में सड़कों के लिए पर्याप्त जमीन ही नहीं छोड़ी जाती। URDPFI की गाइडलाइन्स कहती हैं कि शहरों में 10-18% जमीन सड़क के लिए होनी चाहिए, लेकिन अधिकांश शहर इस मानक तक भी नहीं पहुंचते। दूसरी ओर, शहरों की आबादी बहुत घनी है, जिससे सड़क पर दबाव और बढ़ जाता है। अमेरिका और यूरोप में औसतन 25-30% जमीन सड़क के लिए होती है, जबकि भारत में यह बहुत कम है।

क्या है समाधान? सड़कें तभी सुधर सकती हैं जब हम उन्हें सिर्फ ट्रैफिक का रास्ता नहीं, बल्कि बहु-उपयोगी सार्वजनिक जगह मानें।

  • बेहतर डिज़ाइन और रखरखाव की ज़रूरत है।
  • नगर निगम और राज्य विभागों के बीच तालमेल होना चाहिए ताकि बार-बार खुदाई से सड़कें खराब न हों।
  • शहरी योजनाओं में सड़कों के लिए अधिक जगह आरक्षित करनी चाहिए। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारतीय शहरों में सड़कों के लिए कम से कम 30% जमीन आरक्षित की जानी चाहिए।

क्यों नहीं बन पाती अच्छी सड़कें।

हाल ही में मुंबई का एक फ्लाईओवर और अटल सेतु के कई वीडियो सामने आए जिन्होंने मुंबई जैसे शहर में सड़क से जुड़े भ्रष्टाचार के बारे में सरकार और प्रशासन दोनों पर सवाल उठा दिए। भारत में सड़क बनाने में भ्रष्टाचार एक आम बात है। छोटे शहरों, कस्बों और गांवों में सड़क भले ही छोटी रहे लेकिन कमीशन का हिस्सा बड़ा रहता है। जबकि शहरों में स्थिति तुलनात्मक रूप से बेहतर है। लेकिन जल निकासी, सड़क की गुणवत्ता और ठेकेदार से लेकर नेताओं तक के भ्रष्टाचार ने इस पर बुरा असर डाला है।

हॉकर जोन का दबदबा शहर की सड़कें आठ अहम इंफ्रास्ट्रक्चर को भी सहारा देती हैं – जल निकासी, पानी की पाइपलाइन, बिजली, सीवर, स्ट्रीट लाइट, ऑप्टिकल फाइबर, गैस पाइपलाइन और ट्रैफिक निगरानी। यानी सड़कें शहर की नसों की तरह हैं, जिनसे पूरा शहर चलता है। भारत में सड़कों का एक और बड़ा रोल है – स्ट्रीट वेंडरों (हॉकर) को जगह देना। संसद ने 2014 में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट पास किया, जिससे फेरीवालों को कानूनी मान्यता मिली। अब नगर निकायों को शहर में वेंडिंग ज़ोन तय करने होते हैं और सिर्फ ‘नो-वेंडिंग ज़ोन’ में ही रोक लगाई जाती है। लेकिन इसका पालन कितना किया जा रहा है, आपको किसी भी शहर की सड़कें बता सकती हैं।