अमेरिका द्वारा H-1B वीजा फीस में $100,000 की भारी बढ़ोतरी के ऐलान ने आईटी इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है और लागत बढ़ने की आशंकाएं पैदा कर दी हैं। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इसका भारतीय घरेलू आईटी सर्विसेज कंपनियों पर वित्तीय प्रभाव सीमित ही रहेगा।
कई ब्रोकरेज कंपनियों ने इसको लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इनका कहना है कि यह नई फीस केवल अल्पकालिक बाजार में अस्थिरता ला सकती है, लेकिन कंपनियों के मार्जिन और मुनाफे पर इसका कोई बड़ा असर नहीं पड़ेगा। फाइनेंशियल एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि अमेरिकी कंपनियां अब H-1B वर्कर्स पर अपनी निर्भरता धीरे-धीरे कम कर चुकी हैं और उन्होंने वैकल्पिक डिलीवरी मॉडल्स विकसित कर लिए हैं, जिससे नए शुल्क का प्रभाव काफी हद तक कम हो जाएगा।
फीस केवल नए आवेदन पर लागू ट्रम्प प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि $100,000 की यह अतिरिक्त फीस केवल नई H-1B वीजा आवेदन पर लागू होगी और यह वित्त वर्ष 2027 (FY27) से प्रभावी होगी। FY26 के लिए आवेदन पहले ही फाइनल हो चुके हैं, इसलिए वे इस बढ़ोतरी से अछूते रहेंगे। साथ ही वर्तमान वीजा धारकों और रिन्युअल पर यह बढ़ोतरी लागू नहीं होगी, जिससे इसका तात्कालिक प्रभाव भी सीमित रहेगा। कहा यह भी जा रहा है कि हालांकि इस निर्णय से उद्योग में कुछ अस्थायी अनिश्चितता और हलचल बनी रहेगी, लेकिन दीर्घकालीन दृष्टिकोण से भारतीय आईटी कंपनियां इस बदलाव को अपने व्यवसाय मॉडल में समायोजित कर लेंगी और इस चुनौती का सामना करने में सक्षम होंगी।
क्यों होगा सीमित असर? ब्रोकरेज फर्मों ने इस बात पर जोर दिया है कि बड़ी आईटी कंपनियां इस तरह की चुनौतियों के लिए पहले से ही तैयार हैं।
ब्रोकरेज फर्म सीएलएसए के अनुसार, अगर कंपनियां बढ़ी हुई लागत को पूरी तरह खुद वहन करती हैं, तो इससे वित्त वर्ष 2027 (FY27) की आय में लगभग 6% तक की गिरावट आ सकती है। हालांकि, व्यावसायिक रणनीतियों को देखते हुए उनका अनुमान है कि शुद्ध लाभ (नेट प्रॉफिट) पर वास्तविक प्रभाव केवल 1-3% के बीच ही रहेगा।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज: इस फर्म ने भी माना कि अगर कंपनियां नई H-1B नियुक्तियों पर निर्भर रहती हैं, तो इससे मार्जिन में लगभग 100 आधार अंकों का नुकसान हो सकता है, लेकिन कंपनियां इस लागत को कम करने के लिए नए तरीके अपनाएंगी।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज: इस फर्म का कहना है कि भारतीय आईटी कंपनियां लंबे समय से अपने बिजनेस मॉडल में लोकलाइजेशन (स्थानीयकरण) और उप-ठेकेदारी को अपना रही हैं। यही वजह है कि अचानक हुए नीतिगत बदलावों से उन्हें सुरक्षा मिलती है। फर्म ने यह भी बताया कि H-1B वीजा के लिए सबसे ज्यादा आवेदन भारतीय आईटी कंपनियों से नहीं, बल्कि गूगल, अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट और मेटा जैसी बड़ी अमेरिकी टेक कंपनियों से आते हैं।
नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज: नुवामा का मानना है कि कंपनियां इस बढ़ी हुई लागत से निपटने के लिए अधिक कुशल स्टाफिंग मॉडल का उपयोग करेंगी, जिससे मार्जिन और आय पर प्रभाव कम होगा। वे लागत-कुशल तरीके तलाशेंगी ताकि व्यवसाय प्रभावित न हो।
कुल मिलाकर, ब्रोकरेज फर्मों का मानना है कि यह बढ़ोतरी आईटी कंपनियों के लिए एक चुनौती जरूर है, लेकिन उनकी मजबूत रणनीतियां और ऑपरेशनल मॉडल इस असर को काफी हद तक कम कर देंगे।