हैदराबाद के दबीरपुरा पुल के नीचे हर दोपहर बहुत से लोग साफ सुथरी दरियों पर कतार बांधकर बैठ जाते हैं और अजहर मकसूसी नाम का एक शख्स बारी-बारी से उन सब की प्लेटों में गर्मागर्म खाना परोसता है. यह सिलसिला पिछले सात साल से चल रहा है. आज सात स्थानों पर 1200 लोग उसकी वजह से एक वक्त भरपेट खाना खाते हैं.
हैदराबाद के पुराने शहर के चंचलगुडा इलाके में जन्मे अजहर के लिए जिंदगी कभी आसान नहीं रही. चार बरस की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया. पांच भाई बहनों के परिवार को पालने की जिम्मेदारी मां पर आ गई. उन दिनों को याद करते हुए अजहर ने बताया कि नाना के यहां से मदद मिलती थी, लेकिन उनकी और भी बहुत जिम्मेदारियां थी इसलिए कभी दिन में एक बार तो कभी दो दिन में एक बार खाना मिलता था लिहाजा भूख से उनका पुराना रिश्ता रहा.
12 साल की उम्र से शुरू किया काम 12 साल की उम्र में उन्होंने ग्लास फिटिंग का काम शुरू किया. उसके बाद कुछ साल टेलरिंग (दर्जी) का काम किया और वर्ष 2000 में तकरीबन 19 बरस की उम्र में प्लास्टर ऑफ पेरिस का काम शुरू किया, जो आज भी उनकी आजीविका का साधन है. इस दौरान उनकी शादी हुई और अब वह तीन बच्चों के पिता हैं.
भूखों को खाना खिलाने के सिलसिले की जानकारी देते हुए अजहर ने बताया कि 2012 में वह दबीरपुरा रेलवे स्टेशन के करीब से गुजर रहे थे तो उन्होंने एक महिला को बुरी तरह बिलखते हुए देखा. पूछने पर पता चला कि वह पिछले दो दिन से भूखी हैं. लक्ष्मी नाम की इस महिला की हालत देखकर अजहर से रहा नहीं गया और उन्होंने फौरन उसे खाना खरीदकर दिया. कहने को यह एक छोटा सा वाकया था, लेकिन इसने उन्हें बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया. अगले दिन वह अपनी पत्नी से खाना बनवाकर लाए और रेलवे स्टेशन के पास 15 लोगों को खाना खिलाया.
भूख का कोई धर्म नहीं होता
इसके बाद यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया. उनका कहना है कि भूख का कोई धर्म नहीं होता लिहाजा वह हर धर्म, जाति, वर्ग, आयु और क्षेत्र के व्यक्ति का पेट भरना चाहते हैं. कुछ महीने ऐसा ही चलता रहा. इस दौरान खाने वालों की तादाद 50 तक पहुंच गई. अजहर के लिए इतने लोगों के लिए घर से खाना बनवाकर लाना मुश्किल होने लगा तो उन्होंने वहीं रेलवे पुल के नीचे खाना बनाने का इंतजाम किया और कुछ प्लेटें और तंबू दरियां भी लाई गईं. आज वहां 120 से ज्यादा लोगों को खाना खिलाया जाता है. खाना बनाने के लिए अब बावर्ची रखे गए हैं.
अजहर बताते हैं कि करीब दो वर्ष तक उन्होंने अपने सीमित संसाधनों से ज्यादा से ज्यादा लोगों का पेट भरने की कोशिश की. इस दौरान लोगों को उनके इस नेक काम के बारे में पता चलने लगा तो कुछ मेहरबान साथियों ने सहयोग दिया. बहुत से लोग ऑनलाइन आर्डर करके भी उन्हें सामान भिजवाने लगे. सामान ज्यादा हुआ तो उन्होंने गांधी मेडिकल अस्पताल के बाहर भी खाना खिलाना शुरू कर दिया. वहां हर रोज तकरीबन 200 लोगों को खाना खिलाया जाता है.
सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं अजहर
अजहर बताते हैं कि वह सोशल मीडिया पर खासे लोकप्रिय हैं. दूसरे राज्यों के कुछ शहरों से भी लोगों ने इसी तरह की मुहिम शुरू करने का इरादा जाहिर किया तो अजहर ने हर तरह से उनकी मदद की. उनकी पहल पर आज बेंगलूर, रायचूर, गुवाहाटी और टांडूर सहित कुल सात स्थानों पर करीब 1200 लोगों को एक वक्त का खाना खिलाया जाता है.
कहते हैं कि ऊपर वाला अपने बंदों को भूखा जगाता तो है पर भूखा सुलाता नहीं. इस दुनिया में अजहर जैसे लोग उसकी इस रहमत पर भरोसा कायम रखते हैं. हालांकि इस तरह की निस्वार्थ सेवा करने वाले लोग ज्यादा नहीं है इसलिए इनके प्रयासों की सराहना करने के साथ ही इन्हें भरसक सहयोग देना चाहिए.