“चीन और भारत का वार? हिलने लगी अमेरिकी नींव” डॉलर का साम्राज्य डगमगाने लगा, टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर भी चीन ने बड़ा दांव ”
नई दिल्ली। विश्व मंच पर अमेरिकी वर्चस्व को अब दो बड़े एशियाई देशों की नीतियों और रणनीतियों से गहरी चुनौती मिल रही है, चीन और भारत। जहां चीन लंबे समय से अमेरिका के साथ आर्थिक, तकनीकी और सैन्य प्रतिस्पर्धा में लगा हुआ है, वहीं भारत ने हाल के वर्षों में जिस तरह से अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत किया है, उसने भी अमेरिकी दबदबे को संतुलित करने की दिशा में नया मोर्चा खोल दिया है।
चीन की रणनीतिक चालें चीन बीते दशक से ही अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती देने के लिए कई मोर्चों पर काम कर रहा है। ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के जरिए चीन ने दुनिया के तमाम विकासशील देशों में अपना आर्थिक दबदबा बना लिया है। इसके अलावा, डॉलर पर निर्भरता को खत्म करने के लिए युआन में व्यापार बढ़ाने की कोशिशें तेज़ हो गई हैं। रूस और ईरान जैसे देशों के साथ मिलकर चीन ने डॉलर की जगह स्थानीय मुद्राओं में लेनदेन को बढ़ावा दिया है।
टेक्नोलॉजी के मोर्चे पर भी चीन ने बड़ा दांव खेला है। हुवावे जैसी कंपनियों को प्रतिबंधित करने के बावजूद, चीन ने 5G, AI और चिप टेक्नोलॉजी में स्वदेशीकरण की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। अमेरिका के लिए यह एक चेतावनी है कि तकनीकी मोर्चे पर भी अब उसे एक शक्तिशाली प्रतिस्पर्धी का सामना करना होगा।
भारत की चढ़ती आर्थिक हैसियत भारत, जो कभी विकासशील देशों की कतार में गिना जाता था, अब विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। तेज़ी से बढ़ती GDP, मजबूत युवा जनसंख्या, तकनीकी स्टार्टअप्स का विस्फोट और वैश्विक निवेशकों का आकर्षण, ये सभी कारक भारत को वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में उभार रहे हैं।
भारत ने भी हाल ही में अमेरिकी दबदबे को संतुलित करने के प्रयासों में हिस्सेदारी ली है, जैसे ब्रिक्स में डॉलर-मुक्त व्यापार की पहल, या वैश्विक साउथ की आवाज़ बनने की कोशिश। अमेरिका को यह भी ध्यान में रखना होगा कि भारत अब केवल रणनीतिक साझेदार नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र वैश्विक खिलाड़ी बनना चाहता है।
डॉलर का साम्राज्य डगमगाने लगा? अमेरिकी अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा हथियार उसका डॉलर आधारित वैश्विक वित्तीय ढांचा रहा है। लेकिन चीन और भारत सहित कई देश अब इस व्यवस्था से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। ब्रिक्स देशों द्वारा एक साझा करेंसी या स्थानीय मुद्राओं में व्यापार की बात अमेरिका के लिए सीधा आर्थिक खतरा बनती जा रही है।