भारतीय जंगी जहाजों को इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम से लैस करने की तैयारी है. इसके लिए भारत और यूनाइटेड किंगडम (यूके) की सरकार के बीच बातचीत चल रही है. इसका नतीजा सुखद रहा तो इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम भारत में विकसित किए जाएंगे, जिनसे लड़ाकू जहाजों को ऊर्जा मिलेगी. आइए जानने की कोशिश करते हैं कि भारत और ब्रिटिश सरकार के बीच किस तरह के समझौते की चर्चा है और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम क्या होता है. भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इसी साल जनवरी में दो दिन के दौरे पर यूके गए थे, तब एक बार फिर से इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम पर अलग-अलग स्तरों पर बातचीत हुई थी. फरवरी में यूके की चीफ ऑफ नॉवल स्टाफ एडमिरल बेन के ने पुष्टि भी की थी कि उनकी भारतीय नेवी चीफ एडमिरल आर हरि कुमार से बातचीत हुई है कि भारतीय नौसेना के अफसर यूके आकर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन से जहाजों को चलाने के सिस्टम को जान सकते हैं. इसके बाद दोनों देशों ने एक संयुक्त इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन वर्किंग ग्रुप भी बनाया है, जिसकी मुलाकात फरवरी में ही यूके में हो चुकी है. अब यह बातचीत और आगे बढ़ने की चर्चा है.
क्या है इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम और फायदे?
दरअसल, वर्तमान में भारतीय जहाज डीजल इंजन, गैस टर्बाइन या स्टीम टर्बाइन से चलते हैं, जिससे इनकी गति काफी कम होती है. इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम के जरिए और भारी लड़ाकू जहाज आसानी से सागर में दौड़ाए जा सकेंगे. हथियारों को चलाना भी आसान हो जाएगा. इसके लिए भारतीय अधिकारी औपचारिक प्रस्ताव को स्वीकार करने से पहले उसका परीक्षण कर रहे हैं. इससे भारी जहाज समुद्र में ज्यादा गति के साथ चल सकेंगे. अगर यह समझौता होता है तो इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम से जुड़ी ट्रेनिंग, उपकरण और ढांचागत संसाधनों के विकास के लिए यूके की जीई पावर कनवर्जन और भारत की भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड मिलकर काम करेंगी. इंटीग्रेटेड फुल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम के विकास के लिए दोनों कंपनियां समझौते पर हस्ताक्षर भी कर चुकी हैं. यूके रॉयल नेवी के द क्वीन एलिजाबेथ क्लास के एयरक्राफ्ट कैरियर जंगी जहाजों में इंटीग्रेटेड फुल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम पहले से ही काम कर रहा है. भारत में इसे पहले लैंडिंग प्लेफॉर्म डॉक्स पर आजमाया जाएगा. फिर से नए विध्वंसक जहाजों में लगाया जाएगा. भारतीय वॉरशिप में इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम लगाने के लिए UK से बातचीत चल रही है.
ऐसे काम करता है इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम
इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम के तहत पानी के जहाजों में पूरी तरह से या आंशिक रूप से प्रोपल्शन (प्रणोदन) यानी चलाने के लिए और इसके हथियारों को चलाने के लिए इलेक्ट्रिक पावर सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए डीजल, गैस या स्टीम से चलने वाले इंजनों को डीजल जेनरेटिंग सेट से जोड़कर ज्यादा क्षमता वाले इलेक्ट्रिक पावर का इस्तेमाल किया जाता है. इससे पैदा होने वाले पावर का इस्तेमाल जहाज में पावर की सभी तरह की जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जाता है. इसी से इलेक्ट्रिक मोटर के जरिए जहाज को चलाया जाता है. हथियारों और रडार के लिए जरूरी पावर इसी से मिलती है. पावर की अन्य सभी जरूरतें भी इसी से पूरी होती हैं.
कई तरह के होते हैं इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम
इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम कई तरह के हो सकते हैं. इनमें एक है हाईब्रिड इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम, जिसमें इलेक्ट्रिक पावर के साथ ही साथ पारंपरिक या मैकेनिकल प्रोपल्शन का इस्तेमाल भी किया जाता है. रॉयल नेवी टाइप 23 एएसडब्ल्यू जंगी जहाजों में इसी तरह के प्रोपल्शन सिस्टम का इस्तेमाल होता है. इसमें ट्विन शाफ्ट (दोहरे शाफ्ट) होते हैं, जो गैस टर्बाइन के साथ ही साथ इलेक्ट्रिक मोटर से चलाए जाते हैं. इसके अलावा ऑल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम में खास जेनरेटर (प्रोपल्शन पावर जेनरेटर) जहाजों को चलाने के लिए पावर जेनरेट करते हैं. वहीं, इस सिस्टम में जहाजों में पावर की दूसरी जरूरतों को पूरा करने के लिए ऑग्जलरी जेनरेटर होते हैं.
इस सिस्टम के लिए हो रही भारत-यूके में बात
फिर बारी आती है इंटीग्रेटेड इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम की. यह जहाजों को चलाने की अत्याधुनिक तकनीक है. इसमें जहाज की पावर की सभी जरूरतों को इलेक्ट्रिकल पावर से पूरा किया जाता है और यह इलेक्ट्रिकल पावर जहाज में ही पैदा की जाती है. इसमें जहाज को चलाने के लिए पावर (प्रोपल्शन पावर) और जहाज की दूसरी जरूरतों और हथियारों में लगने वाली पावर को एकीकृत (इंटीग्रेटेड) कर उसका इस्तेमाल किया जाता है. इस सिस्टम में एक या इससे अधिक पावर बस का इस्तेमाल होता है, जो एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और इनके जरिए प्रोपल्शन और जहाज की दूसरी सेवाओं के लिए पावर का डिस्ट्रीब्यूट (वितरित) किया जाता है. इस सिस्टम को इंटीग्रेटेड फुल इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन भी कहा जाता है, जिसके लिए भारत और यूके के बीच समझौते की संभावना बन रही है.